रेटिंगः 1.5 स्टार
कलाकारः रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा, के के मेनन और करण जौहर
डायरेक्टरः अनुराग कश्यप
अनुराग कश्यप उन फिल्म डायरेक्टरों में से हैं जिन पर वर्ल्ड सिनेमा और हॉलीवुड के मार्टिन स्कॉरशिजी और क्वेंतिन तारंतिनो जैसे डायरेक्टरों का खासा प्रभाव है. इस बार वे अपनी अब तक की सबसे महंगी फिल्म लगभग 80 करोड़ रु. की 'बॉम्बे वेलवेट' लेकर आए हैं. वे फिल्म में भव्यता, 1960 के दशक का बंबई दिखाने में तो कामयाब रहे, पर कहानी के मामले में चूकते नजर आए. यह फिल्म उनकी रियलिस्टिक सिनेमा की अपनी छवि को तोड़कर कॉमर्शियल सिनेमा में लोहा मनवाने की कोशिश भी नजर आती है, लेकिन बहुत मजा नहीं देती है, और पूरी फिल्म बहुत ही उलझी हुई दिखती है. सेकंड हाफ के बाद तो फिल्म की कहानी ताश के पत्तों की तरह बिखर जाती है और लगता है कि अनुराग ढेर सारे कैरेक्टर्स के मकड़जाल में उलझकर रह गए हैं. फिल्म मनोरंजन करने वाले फैक्टर से बहुत दूर चली जाती है.
कहानी में कितना दम
देश को नई-नई आजादी मिली है. रणबीर कपूर बंबई आता है. यह उस दौर का
बंबई है, जब आजादी के बाद उद्योग से लेकर अपराध की दुनिया तक हर जगह कुछ न कुछ उथल-पुथल हो रही थी. उसे कुछ बड़ा
करना है और वह अपराध की दुनिया से रू-ब-रू होता है. वह पैसा कमाने के लिए स्ट्रीट फाइटर बनता है. उसकी मुलाकात अनुष्का से
होती है और दोनों में इश्क परवान चढ़ने लगता है. इस बीच करण जौहर जैसा काइयां शख्स भी रणबीर की जिंदगी में आता है जिसकी
अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. कहानी आगे बढ़ती जाती है और पात्र आते जाते हैं, और पूरी फिल्म पर पाश्चातय प्रभाव कूट-कूटकर भरा नजर
आता है. यह कहीं समझ नहीं आ पाता है कि अनुराग इसके जरिये कहना क्या चाह रहे थे. आखिर में कुछ रह जाता है, तो सिर्फ यही
कोशिश की उस दौर का मुंबई कैसा हुआ करता था, उसकी क्या दिक्कतें थीं और हॉलीवुड स्टाइल में फिल्म बनाना.
स्टार
अपील
रणबीर कपूर ने ठीक ठाक ऐक्टिंग की है. उनका कैरेक्टर आखिर तक समझ से कोसों दूर रहता है. जॉनी बलराज नाम भी
मार्टिन स्कॉरशीजी की फिल्म मीन स्ट्रीट्स में रॉबर्ट डी नीरो के जॉनी बॉय से ही प्रेरित लगता है. जहां तक जैज सिंगर के तौर पर
अनुष्का का सवाल है तो वह औसत ही लगी हैं, और सारा फोकस उनके होंठों पर ही रहता है. करण जौहर को एक्टिंग से तौबा ही करनी
चाहिए. उन्हें भविष्य में इस तरह की कोशिश से दूर ही रहना बेहतर होगा. वह कहीं भी कुछ भी ऐसा नहीं कर पाते जो याद रहे. फिल्म
के बाकी किरदार और सितारे भी याद नहीं रहते हैं. फिल्म पूरी तरह से पश्चिम सिनेमा के रंग में पगी नजर आती है.
कमाई की बात
'बॉम्बे वेलवेट' अनुराग की अब तक की सबसे महंगी फिल्म है. करण जौहर जैसे कॉमर्शियल डायरेक्टर के
साथ आना भी पहली बार हुआ है. लेकिन इसमें जमीन से कोसों दूर नजर आते हैं और कहानी के मामले में बहुत ही कमजोर हैं.
म्यूजिक भी बहुत लाउड है और ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती कि यह फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' जैसी उनकी फिल्म से आगे निकल
पाएगी. फिल्म का फर्स्ट हाफ ठीक है, लेकिन सेकंड हाफ हांफता लगता है, और प्लॉट बहुत खींचा हुआ लगता है. फिल्म अनुराग के
फैन्स को अच्छी लग सकती है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं जो इसे यादगार बनाए. वैसे भी अनुराग की फिल्में हिंदी पट्टी या टियर2 या
3 शहरों के लिए कम ही होती हैं.