scorecardresearch
 

Film Review: तारीख पे तारीख का सही उदाहरण है 'कोर्ट'

फिल्म का नाम: कोर्ट डायरेक्टर: चैतन्य तम्हाने स्टार कास्ट: वीरा साथीदार, विवेक गोम्बर, गीतांजलि कुलकर्णी अवधि: 116 मिनटसर्टिफिकेट: U/Aरेटिंग: 2.5 स्टार

Advertisement
X
A scene from film 'Court'
A scene from film 'Court'

फिल्म का नाम: कोर्ट
डायरेक्टर: चैतन्य तम्हाने
स्टार कास्ट: वीरा साथीदार, विवेक गोम्बर, गीतांजलि कुलकर्णी
अवधि: 116 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 2.5 स्टार

Advertisement

भारतीय फिल्मों में जब भी किसी कोर्ट केस की बात होती है तो सबसे पहले 'दामिनी' फिल्म का डायलॉग याद आता है 'तारीख पे तारीख... और इन्साफ नहीं मिलता' बस इसी कथन को सच करती है राइटर डायरेक्टर चैतन्य तम्हाने की फिल्म 'कोर्ट' . साल 1986 में डायरेक्टर बासु चटर्जी ने 'एक रुका हुआ फैसला' फिल्म बनाई थी जो कि एक कोर्टरूम ड्रामा था लेकिन यह फिल्म उससे कहीं हट कर है आइए जानते है क्या है कहानी 'कोर्ट' की:

नारायण कांबले (वीरा सथिदर) एक मराठी लोक गायक होने के साथ साथ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाता है. नारायण को एक गटर सफाई कर्मचारी 'वासुदेव' के सुसाइट केस  के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया जाता है और फिर  केस शुरू हो जाता है. नारायण की तरफ से वकील विनय वोरा (विवेक गोम्बर) हैं तो वहीं सरकारी पक्ष की वकालत करती हैं नूतन (गीतांजलि कुलकर्णी) केस चलता रहता है, अलग-अलग तथ्य और सबूत रखे जाते हैं. अब क्या नारायण को न्याय मिल पाता है या नहीं यही कहानी लेकर आए हैं डायरेक्टर चैतन्य.

Advertisement

महाराष्ट्र की पृष्टभूमि पर आधारित इस फिल्म के जरिए बड़े ही बेहतर तरीके से कोर्ट के भीतर और बाहर होने वाले क्रियाकलापों को व्यंग्य के साथ दिखाया गया है. कभी वकील के हिसाब से जज के द्वारा तारीख दिया जाना, वकील के मन में जज बनने की चाह रखना, केस को जल्दी और देरी से खत्त करने वाले जजों की व्याख्या, और असल जिंदगी में कोर्ट रूम की कहानी दिखाई गई है.

फिल्म में मझे हुए एक्टर्स की भरमार है चाहे वो वीरा सथिदर, विवेक गोम्बर हो या फिर अभिनेत्री गीतांजलि कुलकर्णी. फिल्म की भाषा का भी विशेष ध्यान रखा गया है ताकि आम आदमी तक फिल्म का संदेश आसानी से पहुंचाया जा सके. 'कोर्ट' फिल्म आपको वकील, जज और आम आदमी की जिंदगी से भी तार्रुफ कराती है. वैसे तो फिल्म लगभग 2 घंटे की बनायी गई है लेकिन बड़े-बड़े शॉट्स थोड़े छोटे हो सकते थे विशेषकर फिल्म के आखिरी 10 मिनट.

हिंदी फिल्मों में आपने अभी तक जितनी भी फिल्मों के कोर्ट के सीन देखें हैं इस फिल्म में कोर्ट के सीन उनसे हटकर हैं. फिल्म में कोर्ट के कटघरे असली कोर्ट जैसे हैं, गीता पर हाथ रखकर कसम खाता हुआ कोई भी नहीं दिखेगा और जिस तरह से असल जिंदगी में कोर्ट में सुनवाई होती है उसी को रूपांतरित किया गया है.

Advertisement

तो अगर आप इस तरह का सिनेमा पसंद करते हैं तो एक बार राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म 'कोर्ट' देख सकते हैं.

Advertisement
Advertisement