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Film review: सरल सुन्दर और सुशील है 'दम लगाके हईशा'

यशराज फिल्म्स के बैनर तले आजकल काफी छोटे बजट वाली फिल्में भी बनाई जा रही हैं. पिछले सालों में जहां 'शुद्ध देसी रोमांस', 'औरंगजेब' और 'बेवकूफियां' जैसी फिल्में आई हैं वहीं एक बार फिर से आयुष्मान खुराना के साथ छोटे शहर और कम बजट वाली फिल्म 'दम लगाके हईशा' रिलीज हो गई है.

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डायरेक्टर: शरत कटारिया

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स्टार कास्ट: आयुष्मान खुराना , भूमि पेडणेकर , संजय मिश्रा, विदुषी मेहरा

अवधि: 111 मिनट

सर्टिफिकेट: U/A

रेटिंग: 3 स्टार

यशराज फिल्म्स के बैनर तले आजकल काफी छोटे बजट वाली फिल्में भी बनाई जा रही हैं. पिछले सालों में जहां 'शुद्ध देसी रोमांस', 'औरंगजेब' और 'बेवकूफियां' जैसी फिल्में आई हैं वहीं एक बार फिर से आयुष्मान खुराना के साथ छोटे शहर और कम बजट वाली फिल्म 'दम लगाके हईशा' रिलीज हो गई है. 'भेजा फ्राई' और यशराज फिल्म्स की 'तितली' लिखने वाले राइटर शरत कटारिया को पहली बार मौका मिला है फिल्म लिखने के साथ-साथ डायरेक्ट भी करने का, आइये जानते हैं कैसी है दम लगाके हईशा.

कहानी:

1995 के हरिद्वार के पृष्टभूमि पर आधारित ये कहानी है प्रेम प्रकाश तिवारी (आयुष्मान खुराना ) और संध्या वर्मा ( भूमि पेडणेकर ) की. प्रेम एक ऑडियो कैसेट की दुकान में काम करता है जो कि गायक कुमार सानू का बहुत बड़ा फैन है. सोते जागते सिर्फ और सिर्फ हर परिस्थिति में उसे सिर्फ कुमार सानू के ही गाने याद आते हैं. वहीं संध्या वर्मा एक स्कूल टीचर है जिसका वजन काफी ज्यादा है. प्रेम को अपने पिताजी (संजय मिश्रा) से बहुत डर लगता है क्योंकि उसके पिताजी को प्रेम निकम्मा ही लगता है. प्रेम के पिताजी ने अपने दोस्त से वादा किया था की बड़े होने पर प्रेम की शादी संध्या से ही कराएंगे और प्रेम को अपने पिताजी की बात मानकर भारी भरकम संध्या के साथ विवाह करना ही पड़ता है. अब इस शादी से प्रेम काफी शर्मिंदा सा रहता है लेकिन वैवाहिक जीवन को आगे बढ़ाने के लिए बिना किसी से कुछ कहे संध्या से दूरी बनाके रखता है. संध्या पूरी कोशिश करती है प्रेम को खुश रखने की लेकिन कोशिश नाकामयाब रहती है.

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इन सभी परिस्थितियों के बीच प्रेम की मां ने प्रेम को एक खास तरह की दौड़ में हिस्सा लेने के लिए कहती हैं जहां पति अपनी पत्नी को पीठ पर टांगकर दौड़ पूरी करेगा. अब ये खास मौका होता है जब दोनों की दूरियां नजदीकियों में तब्दील हो सकती हैं. तो कुछ ऐसी ही कहानी है दम लगाके हईशा की.

क्यों देखें:

सरल, सामान्य और 90 के दशक की यादों को ताजा कराएगी यह फिल्म अगर आपको आयुष्मान खुराना पसंद हैं. और अगर कुमार सानू की आवाज आपको आज भी अपनी ओर आकर्षित करती है तो आप जरूर यह फिल्म देखें. अनु मलिक के संगीत वाला 90 का दौर आपको याद आ जायेगा. शरत कटारिया की निर्देशक के तौर पर यह पहली फिल्म है और उन्होंने छोटे शहर के विषय को ठीक तरह से दर्शाया है.

क्यों ना देखें:

अगर आप कोई कमर्शियल फिल्म की तलाश में हैं , जहां बड़े-बड़े सेट लगे हो, ताबड़तोड़ एक्शन हो, बोल्ड सीन की भरमार हो, रोमांस और छोटे -छोटे कपड़ों में आपको अदाकारा दिखें ... तो इनमें से कुछ भी आपको 'दम लगाके हईशा' में नहीं मिलेगा.

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