रेटिंगः 3 स्टार
डायरेक्टरः दिबाकर बनर्जी
कलाकारः सुशांत सिंह राजपूत, स्वास्तिका मुखर्जी, आनंद तिवारी और नीरज कबि
दिबाकर बनर्जी उन डायरेक्टरों में से है जिनकी फिल्म अपने विषय की वजह से पहचानी जाती है जिसमें स्टार फिल्म के कैरेक्टर्स के साथ चलते हैं, फिर चाहे 'खोसला का घोसला' हो, 'ओए लकी लकी ओए', 'लव, सेक्स और धोखा' या फिर 'शंघाई'. हर फिल्म दूसरी से अलग. आम आदमी की कहानी समेटे हुए. अपने जमाने की कहानी और हकीकत. उनकी ताजा पेशकश 'डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी' इससे एकदम अलग है. जो साधारण से दिखने वाले लेकिन जबरदस्त दिमाग रखने वाले बंदे की कहानी है, जिसे जासूसी का जुनून है. कहानी जासूसी की अलग दुनिया, रहस्य-रोमांच और 1940 के दशक के कोलकाता में ले जाती है. लेकिन फिल्म में बहुत ज्यादा दिमाग लगाने और डार्क कलर टोन की वजह से आंखों पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है. टीवी पर आया और हरदिल अजीज बना ब्योमकेश बख्शी जितना देखने-समझने में आसान था, बड़े परदे पर आया ब्योमकेश बख्शी उतना ही मुश्किल नजर आता है.
कहानी में कितना दम
कहानी युवा ब्योमकेश (सुशांत ) की है जिसे अपना पहला केस मिलता है. उसका दोस्त उसके पास अपने पिता के गायब होने का केस लेकर आता है. फिर उसकी मुलाकात ऐसे पात्रों से होती जाती है जिनके साथ कुछ रहस्य जुड़े हुए हैं. जैसे अंगूरी देवी (स्वास्तिका) और डॉ. अनुकूल गुहा (नीरज कबी). अपने जैसा ही तेज-तर्रार दिमाग रखने वाली सत्यवती (दिव्या मेनन) से ब्योमकेश के नैन भी लड़ते हैं. फिर कई सवाल पैदा होते हैं. गुत्थी उलझती जाती है. बतौर डायरेक्टर वे मिस्ट्री को आखिर तक बनाए रखते हैं. फिल्म पूरी तरह से किसी कॉमिक्स की तरह लगती है. ऐसी कॉमिक्स जिसमें 5-10 पन्ने कुछ ज्यादा जोड़ दिए गए हैं. यानी फिल्म की लेंथ थोड़ी-सी ज्यादा है.
स्टार अपील
सुशांत सिंह राजपूत एक मेहनती कलाकार हैं, और उनकी मेहनत फिल्म में साफ नजर भी आती है. वे ब्योमकेश के किरदार में एकदम फिट हैं. सुशांत की कोशिश किरदार को नपे-तुले ढंग से परदे पर लाने की रही है, और दिबाकर के साथ मिलकर उन्होंने ब्योमकेश को परदे पर जीवित करने का काम भी किया है. अन्य सितारे स्वास्तिका, दिव्या, नीरज और आनंद उनको सपोर्ट करते नजर आते हैं, और रहस्य को गढ़ने का ही काम करते हैं.
कमाई की बात
आम आदमी के विषयों को उसी के अंदाज में सिनेमा में पेश करने वाले दिबाकर ने 'डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी' में ऐसी दुनिया पेश की है जिसका संबंध पूरी तरह से फैंटसी से है. शायद दिबाकर ने फिल्म बनाते समय एक खास दर्शक वर्ग को ध्यान में रखा है. फिल्म का म्यूजिक भी उनकी पहली फिल्मों की तरह नहीं है. ये सिंगल थिएटर सिनेमाघरों के लिए कम और मल्टीप्लेक्सेस के लिए ज्यादा नजर आती है. बॉलीवुड के लिए पिछले तीन महीने बहुत हौसले बढ़ाने वाले नहीं रहे हैं और दिबाकर इसे आज तक की अपनी सबसे महंगी फिल्म भी कह चुके हैं, ऐसे में डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी को बॉक्स ऑफिस कमाई की पहेली को भी सुलझाना होगा.