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Film Review: जानें कैसी है माधुरी दीक्षित और जूही चावला की 'गुलाब गैंग'

महिला दिवस पर बॉलीवुड का औरतों को इससे बेहतर तोहफा कुछ और नहीं हो सकता था. इस शुक्रवार को कंगना रनोट की क्वीन और माधुरी-जूही की गुलाब गैंग रिलीज हुई है. जानें गुलाब गैंग में क्या है खास...

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Madhuri in Gulaab Gang
Madhuri in Gulaab Gang

स्टार कास्ट: माधुरी दीक्षित, जूही चावला और तनिष्ठा चटर्जी
डायरेक्टर: सौमिक सेन
स्टार: 3.5

महिला दिवस पर बॉलीवुड की ओर से महिलाओं के लिए इससे बेहतर तोहफा और कुछ नहीं हो सकता था. इस शुक्रवार को कंगना रनोट की 'क्वीन' और माधुरी-जूही की 'गुलाब गैंग' रिलीज हुई है. 'गुलाब गैंग' में माधुरी दीक्षित और जूही चावला की जोड़ी बिल्कुल अलग संसार में ले जाती है, जिसमें संघर्ष है, खुद को पाने की जद्दोजहद है और सामाजिक रूढ़ियों से टकराव भी है. माधुरी-जूही का संगम गजब ढाता है. यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि फिल्म देखने लायक है. कह सकते हैं कि हिंदी पट्टी में इसका रंग खूब जमेगा. बॉलीवुड में इस तरह की फिल्में कम बनती हैं. जिनमें ऐक्शन हो और उसकी दोनों लीड किरदार महिलाएं हों. सौमिक सेन ने यह कर दिखाया है.  

कहानी में कितना दम
कहानी उत्तर भारत के माधोपुर की है. जहां रज्जो (माधुरी) महिलाओं का आश्रम चलाती है. कुटीर उद्योग के जरिए उन्हें अपने पांवों पर खड़ा करती है. उनका पूरा एक समूह है जो महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाता है. फिर राजनीति का खेल होता है. रज्जो का बढ़ता प्रभाव कुछ लोगों को खटकता है. फिर आती हैं सुमित्रा देवी (जूही) जो पूरे सीन को बदल कर रख देती हैं. वह नेता हैं और रज्जो की लोकप्रियता का इस्तेमाल करना चाहती है. फिर शुरू होता है, चालबाजियों का खेल, जबरदस्त ऐक्शन. माधुरी ने जिसे बखूबी परदे पर उतारने की कोशिश की है और वह अपनी इस दूसरी पारी में धक-धक गर्ल की इमेज से बाहर निकलने की कोशिश करती दिखती हैं. फिल्म में होली है, राजनीति है, औरतों की दास्तान है, कोर्ट सीन हैं, जेल भी है और भरपूर भावनाएं भी हैं. यानी भरपूर मसाला है.

स्टार अपील
यह कहना गलत नहीं होगा कि गुलाब गैंग का माधुरी और जूही की वजह से देखना लाजिमी हो जाता है. दोनों ने बेहतरीन एक्टिंग की है. कई सीन में तो जूही माधुरी पर भारी पड़ जाती हैं. कुल मिलाकर दोनों अपने कैरेक्टर में घुस जाती हैं और गहराई तक अपील करती हैं. बस यही बात चुभती है कि दोनों ही एक्ट्रेस थोड़े 'सॉफ्ट फेस' वाली हैं, कहीं न कहीं इस बात का एहसास होता है. उनके साथ नजर आईं तनिष्ठा चटर्जी, प्रियंका बोस और दिव्या जगदाले ने भी ध्यान खींचा है.

कमाई की बात

फिल्म की कहानी थोड़ी नई है. हिंदी पट्टी के दर्शकों को कनेक्ट करती है. संपत पाल की जिंदगी को भी बखूबी दिखाती है. सौमिक की राइटिंग और डायरेक्शन दोनों ही अच्छे हैं. फिल्म का बजट भी मीडियम बताया जाता है. फिर जूही और माधुरी की कमाल एक्टिंग फिल्म को एक बार देखने लायक तो बनाती ही है. वैसे भी बॉलीवुड में औरतों को लेकर इस तरह की सार्थक ऐक्शन फिल्म बनाना, वाकई नई कोशिश है. बाकी सब ऑडियंस कनेक्ट पर है.

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