फिल्म रिव्यूः हाईवे
एक्टरः रणदीप हुड्डा, आलिया भट्ट
डायरेक्टरः इम्तियाज अली
स्टारः पांच में डेढ़
इम्तियाज अली की पहली फिल्म ‘सोचा न था’ (2005) से लेकर पिछली फिल्म ‘रॉक स्टार’ (2011) तक मुझे सभी की सभी पसंद आईं. उनके पास रिश्तों के बारीक पेच दिखाने का हुनर है. और इसी के चलते रॉक स्टार के जॉर्डन जैसा अजीब किरदार भी आपको लुभाने लगता है. इस लगाव और ‘हाईवे’ के प्रोमो और गानों के ट्रेलर देखने के बाद उम्मीदें उफान पर थीं. फिल्म हाईवे के जरिए इम्तियाज अली एक नई राह पर चलने की कोशिश करते हैं. ये उनकी स्टाइल से अलग है. ये बॉलीवुड फिल्मों के चलन से भी काफी अलग है. मगर इस अलग के फेर में फिल्म के सिरे कमजोर पड़ गए हैं. इसके अलावा हाईवे बहुत सुस्त फिल्म भी है.
क्या हैं कहानी के छोर
वीरा (आलिया भट्ट) की शादी होने वाली है. जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं. इस भड़भड़ से वीरा परेशान हो जाती है और अपने मंगेतर को फोन करती है. आधी रात को. आओ और मुझे ड्राइव पर ले जाओ ताकि कुछ ताजा हवा ले सकूं. मंगेतर शुरुआती हिचक के बाद गाड़ी हाई वे पर मोड़ देता है. फ्यूल के वास्ते एक गैस स्टेशन पर रुकता है. यहां पीठ सीधी करने को वीरा बाहर निकलती है और बस कुछ ही सेकंड में डकैत आ धमकते हैं और उसका अपहरण कर ले जाते हैं. इसके बाद फिल्म एक घोंघे की पीठ पर सवार हो जाती है और वीरा एक ट्रक पर. सुस्त रफ्तार में एक सूबे से दूसरे सूबे तक का टूरिज्म होता है. अपहरण करने वालों को हाथ साफ करने के बाद पता चलता है कि मोटा माल है. वीरा के पिता बड़े उद्योगपति हैं और मुंहमांगी रकम देंगे. सवाल सिर्फ पैसे का नहीं है. डकैतों के गिरोह का मुखिया महाबीर (रणदीप हुड्डा) अमीरों से नफरत करता है और कुछ और भी साबित करना चाहता है. इसलिए उस पर उन चेतावनियों का भी कोई असर नहीं होता, जो वीरा के बाप के संबंधों और अंजामों से जुड़ी हुई हैं.
शुरुआती मुश्किलों के बाद वीरा के लिए यह ट्रिप ‘इंडिया दैट इज भारत’ को समझने का एक जरिया बनने लगती है. स्टॉकहोम सिंड्रोम (इसे नहीं जानते तो गूगल की मदद लें) की तर्ज पर उसे अपने किडनैपर्स के साथ भी हमदर्दी होने लगती है. वीरा उनसे ऐसे बात करती है, जैसे प्ले स्कूल के साथी हों. इतना क्या कम था. एक डाकू से कहती हैं, इंग्लिश गानों की सीडी लेकर आओ और फिर मोहतरमा उस पर डांस भी करती हैं. जी, ऐसे ही कई अहमकाना दृश्यों की भरमार है फिल्म हाईवे में. एक जगह ट्रक को पुलिस वाले रोकते हैं. वीरा भाग सकती है. मगर ये क्या. वह तो छुप जाती है कि कहीं पुलिस वाले देख न लें. पब्लिक की तो छोड़िए खुद डाकू महाबीर को वीरा की ये हरकत पल्ले नहीं पड़ती. फिर कहानी ऐसे मुकाम पर पहुंचती है कि महाबीर वीरा से पिंड छुडा़ना चाहता है और वीरा उसके पहलू में सिर छुपाना. ये सब कुछ बेहद नकली नजर आता है.
इतना ही नहीं एक साइड स्टोरी भी है. वीरा के एक अंकल हैं, जो बचपन से इस फूल सी बच्ची का यौन शोषण कर रहे हैं. मगर मुश्किल ये है कि इस बेहद खौफनाक मुश्किल को फिल्म के फ्रेम में दुरुस्त ढंग से फिट नहीं किया गया.
फिल्म में कुछ अच्छा भी है क्या
आलिया भट्ट ने वीरा के हर शेड को बखूबी उतारा है. मगर उनके किरदार की रेंज बहुत सीमित रखी गई थी. रणदीप हुड्डा भी ऐसे कुछ बुरे नहीं हैं. कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा ने दूसरे किरदारों के लिए शानदार और नए नवेले अभिनेताओं को मैदान में उतारा है और क्या खूब कमाल किया है. रहमान का म्यूजिक फिल्म का मूड बखूबी सेट करता है. अनिल मेहता की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है. मगर इन सबके बावजूद फिल्म नहीं झेली जाती. इस हाईवे से बचिए. ये आपको कहीं नहीं ले जाएगा.