फिल्म: जय हो
कलाकार: सलमान खान, तब्बू, डैनी, डेजी शाह, सना खान
निर्देशक: सोहेल खान
स्टार: ढाई(2.5)
जय हो. आ गया है आम आदमी. जो गुरुत्वाकर्षण शक्ति को स्पाइडर मैन की तरह धता बताता है और आयरन मैन की तरह गुंडों को मुक्का मारता है. और फिर कहता है, मैं हूं आम आदमी. ये देखते ही आपको यकीन हो जाता है कि ऐसा सलमान खान ही कर सकते हैं. बॉलीवुड का यह सुपरस्टार कुछ भी कर सकता है और उसे आम आदमी बनने के लिए किसी टोपी की भी जरूरत नहीं.
मगर इस बार इस सिनेमाई सुपरहीरो उर्फ आम आदमी का एजेंडा सिर्फ कुछ दुष्टों की पिटाई भर नहीं. तमाम इमोशन और ड्रामा के बीच उसे पब्लिक की भलाई के लिए एक मुद्दा और तरीका भी देना है. बदलाव का यह तरीका दरअसल 2006 में आई एक तेलुगू फिल्म ‘स्टालिन’ में दिखाया गया था. इसमें चिरंजीवी लीड रोल में थे. स्टालिन के ज्यादातर टुकड़ों को ज्यों का त्यों उठा लिया गया है. चिरंजीवी ने यह फिल्म ऐसे वक्त में बनाई थी, जब वह असल जिंदगी में अपनी राजनीतिक पार्टी प्रजा राज्यम को शुरू करने की तैयारी में थे. उसी तर्ज पर फिल्म जय हो आम आदमी के पक्ष में बने माहौल को कैश कराने के फेर में है.
जय हो की असली ताकत कहानी या एक्टिंग नहीं, इसका स्टारडम है. इसे देखकर समझ आता है कि तमाम किंतु परंतु के बावजूद किसी भी फिल्म में सलमान खान के होने के मायने क्या हैं. इसे सलमान के भाई सोहेल खान भी अच्छी तरह समझते हैं, जिनके अगले कुछ हफ्ते बॉक्स ऑफिस पर कमाई की गिनती गिनने में बीतेंगे.
सलमान खान फिल्म में भारतीय सेना में मेजर रहे जय अग्निहोत्री के रोल में हैं. वह मदद की एक चेन बनाना चाहते हैं. यह प्लॉट सुनने में भला लगता है, मगर फिल्म में काम करता नजर नहीं आता. जय अपने इस भले काम के फेर में कई ताकतवर दुश्मन बना लेते हैं. ये दुश्मन सिर्फ जय के नहीं, देश के भी दुश्मन हैं. यह हिंदी फिल्मों का बहुत चलताऊ और घिसा हुआ फॉर्मूला है. आखिर में हीरो उन सबको खत्म कर देश को मुक्त करता है. जाहिर है इस अंजाम तक पहुंचने के लिए बहुत सारा ड्रामा और एक्शन चाहिए होगा. यही सलमान फिल्म की असल पूंजी भी होती है.
फिल्म जय हो में एक्टर्स की भरमार है. तब्बू जय की बहन गीता का किरदार जल्द ही भूल जाना चाहेंगी. उनके हिस्से जय की केयरिंग ब्रदर वाली इमेज चमकाना आया है. कहानी के कई घुमाव भी उन्हीं से होकर जाते हैं. साफ तौर पर यह तब्बू की क्षमताओं से कहीं कमतर रोल था. समझ नहीं आता, उन्होंने इसके लिए हां क्यों की.
मगर समझ को किनारे रखकर ही सलमान की फिल्म देखनी होती है. समझ लगाएंगे तो ये आम आदमी वाला फिल्मी तर्क भी पल्ले नहीं पडे़गा. फिल्म आम नहीं बुद्धू आदमी की पार्टी नजर आती है. अगर आप सलमान खान के जाबांज किस्म के फैन हैं, तभी यह फिल्म देखिए. सीटी मारिए और खुश होकर घर जाइए.