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Film Review: अंधेर नगरी, चौपट व्यवस्था यानी कटियाबाज

कानपुर की बिजली की समस्या को नए दौर के डायरेक्टर दीप्ति कक्कड़ और फहद मुस्तफा दिलकश अंदाज में लेकर आए हैं. जानें कैसी है कटियाबाज...

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फिल्म कटियाबाज का पोस्टर
फिल्म कटियाबाज का पोस्टर

स्टार: 3.5
डायरेक्टरः फहद मुस्तफा और दीप्ति कक्कड़

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अगर तापमान 47 डिग्री हो और बिजली कटौती अपने चरम पर हो तो सोचिए क्या हाल होगा? बेशक अफरा-तफरी. ऐसा ही कुछ फहद मुस्तफा और दीप्ति कक्कड़ की डॉक्यमेंट्री फिल्म कटियाबाज भी बताती है. कहने को तो फहद ने बिजली चोरी, कटौती और अव्यवस्था को लेकर डॉक्युमेंट्री बनाई है. लेकिन इसमें हर वह मसाला है, जो किसी फीचर फिल्म के लिए जरूरी होता है या उसमें नजर आता है. बिजली चोरी करने वाला है, जो लोगों का हीरो है. एक आईएएस ऑफिसर है जो बिजली चोरी पर लगाम कसने आई है. वह नेता और बिजली चोरों के लिए किसी विलेन से कम नहीं है.

फिल्म का केंद्र बिंदु कानपुर शहर है और वहां की बिजली की समस्या. वहां के स्थानीय लोग बिजली कटौती से बेहाल हैं और उन्हें इस मुश्किल से तारने का काम करता है, लोहा सिंह. वह कंटिया लगाने में माहिर है और सारी समस्याओं का समाधान करता है. कभी-कभी वह समस्या पैदा करने का भी काम करता है यानी जब उसे कंटिया लगानी होती है तो वह ट्रांसफॉर्मर को खराब कर देता है और फिर अपने काम में जुट जाता है. वह मस्त रहता है. अपने बिजली चोरी के काम को बहादुरी बताता है. इस काम को करते हुए हादसे का शिकार होता है. उसकी ऊंगली पर इसकी मार पड़ती है. अपनी चोटें यूं दिखाता है जैसे राणा सांगा के घाव, “कहते हैं न टेढ़ी उंगली से घी निकला है, इसलिए यह हो गया...” वह जिंदादिल है. उसकी मां भी है जो उसके इस काम से डरती है.

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असल हालात और असल लोगों के साथ फहद और दीप्ति ने आम आदमी की समस्या को दिखाने की कोशिश की है. डॉक्युमेंट्री में आखिर तक समझ नहीं आता है कि लोहा या बिजली चोरी की जुगत में लगी जनता गलत कर रही है या लोगों से सख्ती से पेश आ रही अधिकारी गलत है, जो आखिर में सत्ता पक्ष का शिकार हो जाती है और उसका तबादला हो जाता है. फिल्म विडंबना को व्यक्त करती है, जिसमें बिजली चोर, नेता, अधिकारी और आम जनता चक्र भर है.

यह फिल्मों में नए दौर का आगाज है. जिसमें फहद और दीप्ति जैसे लोग आम आदमी की समस्या को नए अंदाज में लेकर आते हैं और उन्हें अनुराग कश्यप जैसा सहारा भी मिल जाता है. डॉक्यमेंट्री होते हुए भी यह पूरा मजा देती है और बहुत ही जाने-पहचाने सब्जेक्ट को मजेदार बना देती है. इस तरह की कोशिशें होने से वाकई सिनेमा समृद्ध होता है. बिजली कटौती की शिकार आम जनता, इससे डेफिनेटली कनेक्ट कर पाएगी. जनता के दिल की बात और वह भी सीधे-सादे अंदाज में. बोले तो, कानपुरी अंदाज का मजेदार रोजनामचा.

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