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Film Review: विद्या चुस्त, लेकिन सेकंड हाफ में स्टोरी सुस्त, ये है 'बॉबी जासूस'

पुराने हैदराबाद के मोगलपुरा इलाके में एक मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार है. इस परिवार की बड़ी बेटी है बिलकिस उर्फ बॉबी. बॉबी जासूस बनना चाहती है, मगर ...जानिए कैसी फिल्म है 'बॉबी जासूस'...

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Bobby Jasoos
Bobby Jasoos

फिल्म रिव्यूः बॉबी जासूस
एक्टरः विद्या बालन, अली फैजल, सुप्रिया पाठक, जरीना वहाब, अर्जन वाजबा, किरण कुमार
डायरेक्टरः समर शेख
ड्यूरेशनः 2 घंटे 1 मिनट
रेटिंगः 5 में 2.5 स्टार

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पुराने हैदराबाद के मोगलपुरा इलाके में एक मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार है. इस परिवार की बड़ी बेटी है बिलकिस उर्फ बॉबी. बॉबी जासूस बनना चाहती है. मगर तमाम स्थापित डिटेक्टिव एजेंसी उससे फूटने को कहती हैं क्योंकि उसके पास डिग्री और प्रफेशनल तमीज नहीं. ऐसे में बॉबी मुहल्ले की चुगलखोरी लेवल की जासूसी कर अपने पैशन को जिंदा रखती है. इसमें उसके दो दोस्त कम हेल्पर कैफे ओनर शेट्टी और वेटर अली मदद करते हैं. बॉबी के कस्टमर में पड़ोस की बुआ और एक टीवी एंकर तसव्वुर भी है. बाद में यही तसव्वुर बॉबी का दोस्त भी बन जाता है. खैर, मसला ये नहीं है. मसला ये है कि भरे पूरे परिवार से आई बॉबी के बाप को उसका यूं दिन रात डोलना पसंद नहीं. अब्बू बड़ी बेटी से बात नहीं करते और अम्मी उसे आंखों में बसाकर रखती हैं.

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फिर आता है बॉबी का बड़ा ब्रेक. रुकती है एक लंबी गाड़ी, उतरता है भारी आवाज वाला सेठ और देता है उसे एक काम. एक लड़की को खोजने का. खोज का ये सिलसिला चलता है और बॉबी मालामाल होने लगती है. मगर फिर एक हकीकत जानकर उसके पैरों तले की जमीन खिसक जाती है. इन सबके बीच गली के गुंडे लाला की हरकतें और तसव्वुर का कन्फ्यूजन भी जारी है. बॉबी जासूस सिर्फ केस ही नहीं अपनी लाइफ के भी कुछ पजल्स आखिरी में सॉल्व कर लेती है और सब ठीक हो जाता है. एक कथित तौर पर अच्छी हिंदी फिल्म की तरह.

फिल्म की कहानी में कुछ चीजें नई ताजी हैं. जैसे बिना लाउड और फनी हुए एक लेडी जासूस का किरदार पेश करना. बॉबी हमारे गली मुहल्ले की ही एक लड़की लगती है. वह न तो गाजर खाती है और न ही तकियाकलाम पेश करती है. भरपूर नॉर्मल लगती है. बॉबी के अलावा शहर हैदराबाद भी खालिस घरेलू और अंदरूनी अंदाज में सामने आया है. लेकिन सेकंड हाफ में जासूसी केस के अलावा जिंदगी के तमाम पेच खोलने के फेर में कहानी उलझ जाती है. राइटर और डायरेक्टर सब कुछ समेटने के फेर में धीमे हो जाते हैं. और रही सही कसर बीच बीच में ठूंस दिए गए गाने पेश कर देते हैं. कहानी अंत से पहले ही खुल जाती है और ये अंदाजा लगाना कठिन नहीं होता कि ये भागादौड़ी का खेल क्यों चल रहा होगा. और यहीं पर फिल्म कुछ मात खाती नजर आती है.

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फिल्म में विद्या बालन की एक्टिंग उनके स्तर और ख्याति के अनुरूप है. उनकी और अली फैजल की जोड़ी फ्रेश और क्यूट लगी है. अली फैजल को भी गुड मार्क्स क्योंकि विद्या बालन के साथ फ्रेम शेयर करना और कच्चा न पड़ना शाबासी का काम है. फिल्म के बाकी किरदारों का चयन समझदारी के साथ हुआ है. राजेंद्र गुप्ता, सुप्रिया पाठक शाह, जरीना वहाब जैसे कई एक्टर फिल्म में दिखे और अपने किरदार में खूब जज्ब दिखे.

डायरेक्टर समर शेख ने अपनी पहली फिल्म में कई अच्छी चीजें की हैं. मगर बेहतर होता कि वह स्टोरी की रफ्तार पर काम करते और चालू चोंचलों मसलन बिला वजह गानों से बचते. फिल्म का प्लस प्वाइंट हैं नए किस्म की थीम, विद्या की एक्टिंग और अली के साथ उनकी पेयरिंग. माइनस प्वाइंट हैं कुछ सुस्त और फैला सेकंड हाफ और उसमें गानों की ठूसम ठूसी. तो बॉबी जासूस है फिफ्टी फिफ्टी मामला.

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