फिल्म: हैदर
कलाकार: तब्बू, शाहिद कपूर, केके मेनन, श्रद्धा कपूर
निर्देशक: विशाल भारद्वाज
रेटिंग: 2.5 स्टार
विशाल भारद्वाज की फिल्म 'हैदर' विलियम शेक्सपीयर के नाटक हैमलेट का रूपांतरण है. फिल्म की कहानी एक कश्मीरी छात्र के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसके डॉक्टर पिता अचानक लापता हो जाते हैं. वहां अधिकारी लोगों को उग्रवादियों की जानकारी निकलवाने के लिए शक के बिनाह पर ले जाते हैं. यह कहानी एक बेटे की पिता को ढूंढ़ने या फिर उनकी मौत का बदला लेने के आसपास घूमती है.
'हैमलेट' की कहानी को लेना और उसे 1995 के कश्मीर के आधार पर फिल्माना विशाल भारद्वाज का एक जबरदस्त आइडिया है. यहां हिंसा है, उग्रवाद है, लोग ऐसे ही अचानक गायब हो सकते हैं, यहां जीवन बेकार है. युद्ध के माहौल में एक संवेदनशील बच्चे का मानसिक संतुलन इतना बिगड़ जाता है कि उसे अजीबोगरीब आभास होने लगते हैं, उसे अपने पिता का भूत नजर आने लगता है, वह वास्तविकता से दूर हटता चला जाता है. विशाल का इस पर फिल्म बनाना निश्चित ही एक लाजवाब आइडिया है.
'हैदर' न तो हैमलेट के बारे में और न ही कश्मीर के बारे में, ये कहना मुश्किल है कि ये क्या है. फिल्म सर्द कश्मीर के दृश्यों से शुरू होती है, ऐसे दृश्य जो मैंने पहले कभी नहीं देखे. मैंने विशाल भारद्वाज की ओमकारा, मकबूल और कमीने कई बार देखी है, लेकिन फिल्म के बीच 10-15 मिनट मेरी रुचि इससे हट रही थी. फिर मैंने खुद को कहा कि यह हैमलेट का संस्करण है और कई फिल्म देखने आए लोग तो इस नाटक के बारे में जानते भी नहीं है, बस फिल्म को देखते जाओ जैसे ये चलती जा रही है.
जब मैं एक इमोशनल फिल्म देखने जाती हूं तो मुझे रोने में कोई परहेज नहीं होता है. हालांकि इस फिल्म में भी कई रोने के सीन थे, लेकिन मेरी आंखें नम नहीं हुई, फिल्म के कलाकारों ने खूब आंसू बहाए और दर्शकों के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा.
फिल्म में तब्बू को छोड़ सबका अभिनय आत्मा को छूने वाला है. शाहिद कपूर हैदर के किरदार के साथ इंसाफ करने के लिए पूरी गहराई पर उतरे हैं. फिल्म में उनकी अद्भुत प्रतिभा का पूरा प्रदर्शन हुआ है. शाहिद ने साबित कर दिया है कि वह बेहतरीन अदाकार पंकज कपूर के बेटे हैं. फिल्म में शाहिद की चुप्पी, उनका गुस्सा, उनका पागलपन सब आपको गहराई से छूएगा.
अर्शिया के रूप में श्रद्धा का किरदार बहुत जोरदार है. उन्होंने किरदार को खूब जीया. वहीं, एक षड्यंत्रकारी जीजा के रूप में केके का किरदार कहानी के एक हिस्से के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा. फिल्म में जब एक या दो किरदार ठोस कश्मीरी भाषा में बात करते हैं तो मजा आ जाता है, लेकिन सभी कलाकारों को ये करने के लिए क्यों नहीं कहा गया, इसमें कोई संदेह नहीं है कि सभी कलाकार ये करने में सक्षम हैं.
विशाल के पास इस फिल्म के लिए भरपूर मसाला था, लेकिन उलझे हुए और चकरा देने वाले स्क्रीनप्ले ने फिल्म को कमजोर बना दिया. विशाल ने हमेशा ऐसी फिल्में बनाई हैं, जिससे दर्शक जुड़ते हैं, लेकिन 'हैदर में उन्होंने दर्शकों को बेवकूफ समझा. थोड़ी कहानी के बाद ही फ्लैशबैक, हर छोटे बात को विस्तार से समझाते हैं. मुझे लगता है विशाल को कुछ भरोसा दर्शकों पर दिखाना चाहिए थे, लोग बेवकूफ नहीं है, सबको समझ आता है.
फिल्म ने न सिर्फ एक अच्छा मौका खोया है, बल्कि कमजोर स्क्रीनप्ले के कारण दिल छू लेने वाली एक्टिंग, परफेक्ट कॉस्च्यूम और प्रोडक्शन डिजाइन की भी बर्बादी हुई है.