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फिल्म रिव्यूः खिलंदड़पन से भरपूर प्यार की तलाश है सुशांत, परिणिति, वाणी के शुद्ध देसी रोमांस में

साल 2013 को अपनी देसी घी में पकी कभी इमरती सी मीठी तो कभी बीकानेरी सेब सी तीखी लव स्टोरी मिल गई है.अगर जिंदगी में कभी प्यार जैसी लगती किसी चीज के लिए पापड़ बेले हैं, तो ये फिल्म शुद्ध देसी रोमांस आपके लिए है.

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फिल्म शुद्द देसी रोमांस का पोस्टर
फिल्म शुद्द देसी रोमांस का पोस्टर

मूवी रिव्यूः शुद्ध देसी रोमांस

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डायरेक्टरः मनीष शर्मा, राइटरः जयदीप साहनी

एक्टरः सुशांत सिंह राजपूत, परिणिति चोपड़ा, वाणी कपूर, ऋषि कपूर

ड्यूरेशनः 2 घंटे 13 मिनट

पांच में से साढ़े चार स्टार

1. साल 2013 को अपनी देसी घी में पकी कभी इमरती सी मीठी तो कभी बीकानेरी सेब सी तीखी लव स्टोरी मिल गई है.अगर जिंदगी में कभी प्यार जैसी लगती किसी चीज के लिए पापड़ बेले हैं, तो ये फिल्म शुद्ध देसी रोमांस आपके लिए है.एक फिल्म में जो कुछ भी होना चाहिए, वो इसमें हैं. बेहतरीन असली कहानी, याद रह जाने वाले किरदार, सॉलिड एक्टिंग, पैर थिरकाने और जॉनी लीवर को भी गुनगुनाने के लिए मजबूर करते गाने और आखिर में एक सबक.सबक कि प्यार दिमागी धुंध के परे हिम्मत करके जाने का नाम है. अटके रहोगे तो फट जाओगे अपने दिमाग के चक्करों में.

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2.शुद्ध देसी रोमांस कहानी है एक लड़के रघु की, जो जयपुर में रहता है और पर्यटन उद्योग को गति देता हुए फिरंगियों को गोले पिलाता है. रघु की शादी हो रही है तारा से, मगर ऐन लास्ट में उसको कन्फ्यूजन हो जाता है.और अब जब हो ही गया, तो भाई साहब कट लेते हैं. कट होता है और जनाब अपनी ही बारात में मिली गायत्री के साथ प्यार के गीत गा रहे होते हैं. मगर कन्फ्यूजन यहां भी पीठ पर बैताल की तरह सवार रहता है. एक और कट होता है और चीजें कुछ रिवाइंड सी होती हैं. तो फिर गायत्री गॉन और तारा ऑन. मगर लाइफ का लट्टू तो वहीं जाकर रुकता है न, जहां हाथ बढ़ाने पर भी चीजें हाथ न आएं. आखिर में वैसा ही कुछ होता है और सिली लव लाइफ एक जरूरी लेसन पाती है.

3.रघु आज के वक्त का बालक है. हमारे आपके जैसा. जिसे जब प्यार होता है, तो ऐसा कि लगता है कि बस अभी दो चार ताज महल खर्च कर दो इस मुमताज का मुंह हां बोलने के लिए खुलवाने को.उसके रोल में सुशांत सिंह राजपूत ने इस यकीन को पुख्ता कर दिया है कि इंडस्ट्री को अगला लवर बॉय मिल गया है. ये बॉय चीज या बटर जैसा अति चिकना और फिसलन भरा नहीं है. ये उस सिल बट्टे की तरह है, जिसकी सॉलिड चिकनाहट के बीच में कुछ खुरदुरापन उकेरा गया है, ताकि चटनी तीखी और मजेदार बने. सुशांत रघु के हर रंग को जिंदा करते हैं. लड़की पटाने के लिए हर बात में हां बोलने वाला रघु. लड़की के बारे में जरा सी उल्टी सीधी बात सुनकर घुन्नाने वाला रिव्यू और लड़की जब चली जाए तो अगली की तैयारी में जुटता रघु. मगर जैसे ही पहली वाली आ जाए तो करंट खाए बालक सा रघु.बहुत ही उम्दा एक्टिंग. मतलब क्यूट और डैशिंग का झमाझम मिश्रण.

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4 परिणिति चोपड़ा हमारे वक्त की काजोल हैं. हल्की सी चब्बी, हाइट भी मॉडलों सी सरसराती नहीं. आवाज भी रेडियो वालों सी प्रफेशनल नहीं. मगर इन सब कच्चेपन में एक जोशीला सच्चापन है. उन्होंने गायत्री के रूप में आज के वक्त की लड़की को जिस्म बख्शा है. एक लड़की जो बाप से दूर है क्योंकि उसे अपने ढंग से जिंदगी जीनी है. जो उम्र की जरूरतों को प्यार के साथ मिसमैच नहीं करती. जो प्यार करती है, तो चूमने या लिवइन के फैसलों के लिए ज्यादा वक्त खर्च नहीं करती. जो सुट्टा मारती है, मगर किसी बड़े के कहने पर उसे कुछ देर के लिए मुल्तवी भी कर देती है. जो ब्रेकअप के लिए लड़के की पहल का वेट नहीं करती.

5 फिल्म का सरप्राइज और सुरीला सा पैकेज हैं वाणी कपूर. दो मंझे हुए एक्टर्स के बीच उन्होंने अपना अलग ही सतरंगी आसमां बुना है. कभी शोख, कभी सख्त. तारा भी आज की लड़की है, इसलिए बेचारगी के बुहारे जा चुके रंग ढंग को नहीं ओढ़ती. जब वाणी कपूर शोख केसरिया रंग की साड़ी पहनकर हाथ में कोक पकड़ बस पर चढ़ती हैं, तो आप उस बस में बगल की खाली सीट तलाशने लगते हैं. जब वो जाते जाते ठिठकती है, तो आप एक और मुस्कान को रास्ता देने लगते हैं. बढ़िया एक्टिंग. कहीं से नहीं लगा कि पहली बार बड़े पर्दे पर आ रही हैं मोहतरमा. और हां कैमरा भी खुश हो जाता है ऐसी ब्यूटी के हर एंगल को कैद करने में.

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6 इन तीन बच्चों को एक्टिंग के कुछ नए पाठ सिखाए हैं साड्डे अंकल ऋषि कपूर ने. यहां पर वह शादी करवाने वाले बुजुर्ग व्यापारी गोयल जी बने हैं. कैटरिंग का धंधा है, मगर राजस्थानी रंग ढंग का.ऋषि ऐसे एक्टिंग कर रहे हैं, जैसे सेकंड इनिंग में हर रोल से खुद को नए सिरे से साबित करने की जिद्दी धुन पाल बैठे हों.गट्टे की सब्जी खाते, धोती संभालते, चाय सुड़कते और उन सबके बीच चश्मे को ढलान पर उतार नजर नीची कर ये अपने नीचे पलती पनपती नई जेनरेशन को देखते और कभी कभार संभालते गोयल जी. उन्हें देख लगता है कि क्या यार, बुजुर्ग इतने ही कूल क्यों नहीं हो सकते सबके.

7 अब बात उस इंसान की, जिसने इस शाहकार को अपनी कोख में पाला और फिर दुनिया को दिया. जयदीप साहनी. कंपनी,खोसला का घोसला, चक दे इंडिया, रॉकेट सिंह-सेल्समैन ऑफ द ईयर जैसी उम्दा और ईमानदार कहानियां लिखने वाला शख्स. उन्होंने ही गढ़ी है ये रघु, गायत्री और तारा की कहानी. दिल्ली के लाजपत नगर के रहने वाले जयदीप मध्यवर्ग के वो दुलारे राजकुमार हैं, जो बारीकियों में बसे ब्यौरों से किस्सा गुनते हैं. इसीलिए उनकी कहानी में हर वक्त आप किसी किरदार में किसी जान पहचान वाले को और अक्सर खुद को खोजते और महसूसते नजर आते हैं.शुद्ध देसी रोमांस में कोई भी किरदार बस यूं ही आया या बोलता नहीं लगता और एक कहानीकार के लिए सच्ची दुनिया के बराबर का झूठा सच पैदा करने से बड़ा कोई काम या इत्मिनान नहीं हो सकता.

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8 डायरेक्टर मनीष शर्मा ने बैंड बाजा बारात से जो उम्मीद जगाई थी, उसे यहां नए पर लगा दिए हैं. चूंकि वो इसी उम्र के हैं, इसलिए उनके किस्से दिखाने के अंदाज में एक तीखापन होता है, जो जबान पर लग जाता है. इस लव स्टोरी में सब कुछ इतने कन्विसिंग तरीके से हुआ है, कि आपको कभी भी कहानी के बीच रुक किसी अभी अभी हुई चीज के लिए कोई वजह तलाशने की जरूरत नहीं पड़ती. फिल्म में गाने भी आते हैं, कुछ स्लो पॉज टाइप मोमेंट्स भी. लेकिन ये अपने हिस्से के जिए हुए लमहे लगते हैं, जरूरी गाढ़ेपन के साथ.

9 फिल्म में चार गाने आते हैं, चारों लुभाते हैं. तेरे मेरे बीच में क्या है, एक ऐसी चुहल भरी बांसुरी की तरह है, जो हर खाली वक्त में बहती हवा के साथ गानों को याद आ जाती है.शाम गुलाबी शहर की सबसे ऊंची जगह पर कुछ पलों का बसेरा बनाने वाले प्यार के उन अमर पलों को आवाज देती है. रैंडम रोमैंस इस मेकअप ब्रेकअप जेनरेशन के कुछ फलसफे बयान करती है. और आखिर में जब आप तृप्त होकर निकलते हैं, तो बजता है शुद्द देसी रोमैंस का टाइटल ट्रैक.

10 इस फिल्म को देखिए और अपने बीते हुए वक्त को टटोलने का एक मौका पाइए. इस फिल्म को देखिए और अपने आने वाले वक्त में कुछ गुदगुदी, कुछ हरारत और कुछ शरारत भरने के लिए नए रंग पाइए. शुद्द देसी रोमांस उस चौराहे पर रचा चरित है, जहां से एक तरफ 21वीं सदी का एक्सप्रेसवे जाता है, जो लिव इन, कमिटमेंट पर साफ बात और जेंडर भेद को ठेंगा दिखाकर अपने ढंग से जिंदगी जीने की राह दिखाता है. इसी चौराहे पर एक गली आकर मिलती है, खस्ते सी तली, हरी चटनी से सनी और गॉसिप, ज्ञान, परंपरा के बोझ और कुंठा के टॉन्ट से मुहल्लों से होकर आती.

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अरे आप अभी तक गए नहीं अपना टिकट बुक कराने, जाइए, जाबड़ फिल्म है ये.

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