कलाकारः निखिल द्विवेदी, ऋचा चड्ढा, दमनदीप सिंह
डायरेक्टरः नवनीत बहल
रेटिंगः 2 स्टार
बॉलीवुड में ऐसी फिल्में बहुतायत में बन रही हैं, जिनके पीछे कोई सॉलिड सोच नहीं होती है. सिर्फ मसाला फिल्म बनाए जाने के लिए बनाई गई होती हैं. तमंचे देसी अंदाज और उत्तर भारतीय टच समेटे हुए ऐसी ही फिल्म है. लेकिन फिल्म 1980 के दशक के फॉर्मूले जैसी लगती है. इसमें लव स्टोरी को आपराधिक पृष्ठभूमि में रचा गया है. नएपन का नितांत अभाव है, आज के दौर जैसी बातें बहुत कम नजर आती हैं. फिल्म की कहानी भी कोई उत्साह पैदा नहीं करती है. हालांकि ऋचा और निखिल ने काफी मेहनत की है, लेकिन कमजोर पटकथा उनको खास आगे लेकर जाती नजर नहीं आती है.
कहानी में कितना दम
यह कहानी दो अपराधियों बाबू (ऋचा चड्ढा) और मुन्ना (निखिल द्विवेदी) की है. दोनों इत्तेफाक से टकरा जाते हैं. पुलिस से बचने के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाते हैं, और दोनों मिलकर हालात से जूझते हैं. मुन्ना बाबू के मोहपाश में फंस जाता है और फिर कुछ ऐसा होता है कि हालात बदल जाते हैं. बस, इसी तरह से पूरी कहानी चलती है. कहानी काफी कमजोर है. पहला हाफ काफी धीमा है, और सतही है. डायलॉग गढ़े हुए लगते हैं.
स्टार अपील
ऋचा अपनी पिछली फिल्मों में काफी लाउड नजर आई हैं और तमंचे में भी ऐसा ही है. हालांकि फिल्म में वे हॉट अंदाज भी लेकर आई हैं. लेकिन यह उस तरह का रोल नहीं है जिसके लिए ऋचा को पहचाना जाता है. बेशक वे बाबू के रोल में जमी हैं, लेकिन जबरदस्त नहीं है. निखिल अपने करियर को स्थापित करने के लिए जूझ रहे हैं. तमंचे उसी कड़ी में एक कोशिश है. उन्होंने जमकर कोशिश की है. लेकिन कमजोर कहानी की वजह से वे कोई चमत्कार करते नजर नहीं आते हैं. फिल्म में दमनदीप सिंह राणा के रोल में जमे हैं.
कमाई की बात
फिल्म में ऐसे फैक्टर्स हैं जो मजेदार लगते हैं, यह बाबू और मुन्ना की नोक-झोंक हो या फिर उनके बीच की केमिस्ट्री. लेकिन ऐसे फैक्टर कम हैं जो इसे एक्स फैक्टर दें. फिल्म के गाने भी सामान्य हैं. जहां तक फिल्म के प्रदर्शन की बात है तो यह उत्तर भारत के सिंगल स्क्रीन थिएटर में उन दर्शकों को खींच सकती है जो आज भी अपराध और इश्क के मेल वाली कहानियों को पसंद करते हैं.