फिल्म का नाम: तमाशा
डायरेक्टर: इम्तियाज अली
स्टार कास्ट: दीपिका पादुकोण, रणबीर कपूर, जावेद शेख, निखिल भगत, फराज सरवैया, पूनम सिंह, पियूष मिश्रा
अवधि: 2 घंटा 31 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 3 स्टार
इम्तियाज अली ने अपने फिल्मी करियर में 'जब वी मेट', 'लव आज कल', 'रॉकस्टार' जैसी एक से बढ़कर एक फिल्में बनाई हैं और कहीं ना कहीं वो कहानियां दर्शकों का मनोरंजन भी करती हैं. इस बार इम्तियाज ने रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण के साथ एक अलग तरह की लव स्टोरी पेश करने की कोशिश की है, जहां एक तरफ दीपिका अपने करियर के शीर्ष पर हैं वहीं रणबीर की एक्टिंग की सराहना तो हर फिल्म में होती है लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी पिछली कुछ फिल्में नाकामयाब रहीं हैं. अब क्या इम्तियाज अली का 'तमाशा', रणबीर- दीपिका की जोड़ी, दर्शकों का मनोरंजन कर पाएगी? आइए जानें फिल्म समीक्षा में:
कहानी
यह कहानी है शिमला में रहने वाले वेद वर्धन साहनी (रणबीर कपूर) की, जिसका पढ़ाई में जरा सा भी मन नहीं लगता, लेकिन उसके पिता (जावेद शेख) की
जिद है कि वेद गणित की पढ़ाई के साथ-साथ इंजीनियरिंग भी करें. वेद को अलग-अलग तरह की कहानियां सुनने और सुनाने का बड़ा शौक है. पिता की
बात को मानते हुए अपने सपनों को छोड़ कर वेद जॉब करने लगता है, उसी बीच तारा माहेश्वरी (दीपिका पादुकोण) से मुलाकात के बाद वेद के भीतर अपने
सपनों को सच करने की आशा जाग उठती है. दोनों कोर्सिका(फ्रांस) की ट्रिप पर मिलते हैं और अलग-अलग तरह के फिल्मी डायलॉग्स के साथ एक दूसरे से
फ्लर्ट करने लगते हैं. फिर तारा को लगता है कि कहीं उसे वेद से प्यार ना हो जाए, इसलिए वो कोर्सिका छोड़कर भारत वापस आ जाती है लेकिन एक बार
फिर से वेद और तारा की मुलाकात दिल्ली में होती है और फिर कहानी चल पड़ती है. वेद और तारा के बीच काफी लड़ाई झगड़े होते हैं जिसकी वजह से ये
रिश्ता कहीं और जाने लगता है, अब क्या यह सफरनामा कामयाब हो पाता है? क्या वेद और तारा की लव स्टोरी कामयाब हो सकेगी या लैला-मजनू, हीर
रांझा जैसा हाल होगा? इसका जवाब आपको फिल्म देखकर ही मिलेगा.
स्क्रिप्ट
फिल्म की एक टैग लाइन है 'why always The same story? और कहानी को अलग बनाने के चक्कर में इम्तियाज ने एक अलग तरह का प्रयोग किया
है. वेद और तारा का किरदार अच्छा लिखा गया है लेकिन बाकी कहानी और भी बेहतर हो सकती थी. फिल्म की शुरुआत में बचपन के वेद और उसकी
कल्पनाओं को आखिर तक पहुंचा पाने में इम्तियाज सक्षम हो पाए हैं लेकिन बीच-बीच में कहानी काफी खींचती जाती है, जिसे और छोटा किया जा सकता
था. इतनी अच्छी लोकेशंस और उम्दा कलाकारों के साथ फिल्म की कहानी क्रिस्प होती तो तारीफ ए काबिल कहलाती.
अभिनय
दीपिका और रणबीर ने काफी सहज तरीके से अभिनय किया है. इस फिल्म में हास्य, रौद्र, करुण और श्रृंगार ये चारो रस हैं, जिसको अभिनय के
दौरान दीपिका और रणबीर ने शत प्रतिशत अंजाम दिया है. कुछ ऐसे सीन हैं जहां अल्फाज तो नहीं हैं लेकिन चेहरे के भाव देखकर ही हंसी आ जाती है तो
कहीं भीतर का गम भी बाहर निकलता है. पीयूष मिश्रा और बॉस के रूप में विवेक मुश्रान ने भी ठीक काम किया है.
संगीत
फिल्म का संगीत प्लॉट के हिसाब से सही है और गानों की वजह से फिल्म में निखार भी आता है. 'मटरगश्ती', 'अगर तुम साथ हो', 'हीर' जैसे गाने
पहले से ही काफी पसंद किए जा रहे हैं. ए. आर रहमान का संगीत और इरशाद कामिल के अल्फाज वाकई कानों में रस भरने जैसे हैं.
कमजोर कड़ी
फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी स्क्रिप्ट है जो कहीं-कहीं बीच में अपनी पकड़ खोती नजर आती है. स्क्रिप्ट थोड़ी और क्रिस्प हो सकती थी. फ्लैश बैक और हाल
फिलहाल में चल रही कहानी में दोहराव कई जगह पर नजर आता है.
क्यों देखें
अगर आप रणबीर-दीपिका की जोड़ी और इनके अभिनय के कायल हैं, साथ ही अगर आप इम्तियाज अली की फिल्मों से इत्तेफाक रखते हैं, तो 'तमाशा'
जरूर देखें.