फिल्म का नाम : गली गुलियां
डायरेक्टर: दीपेश जैन
स्टार कास्ट: मनोज बाजपेयी, नीरज कबि, शहाना गोस्वामी, ओम सिंह, रणवीर शौरी
अवधि: 1 घंटा 57 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 4 स्टार
साल 2016 में दीपेश जैन ने 'इन द शैडोज' नाम की एक फिल्म निर्देशित की थी. यह फिल्म बहुत सारे फेस्टिवल्स में गई और कई जगहों पर अलग-अलग अवार्ड भी जीते. आखिरकार अब भारत में इसे "गली-गुलियां" के नाम से रिलीज किया जा रहा है. मनोज बाजपेयी और नीरज कबि ने फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई है. आइए जानते हैं आखिरकार कैसी है फिल्म.
कहानी:
फिल्म की कहानी पुरानी दिल्ली की गलियों से शुरू होती है जहां एक इलेक्ट्रिशियन खुद्दूस (मनोज बाजपेयी) रहता है. उसके पड़ोस में हमेशा एक पिता (नीरज कबि) अपने बेटे (ओम सिंह) को बेरहमी से पीटता रहता है. जो बात खुद्दूस को बिल्कुल पसंद नहीं आती. वह किसी तरह उस बच्चे की मदद करना चाहता है. वह समय-समय पर अपने दोस्त (रणवीर शौरी) की मदद भी लेता है जिसके साथ ही कहानी में कई सारे पहलू उजागर होते हैं. आखिरकार किन वजहों से वह बेरहम पिता अपने बेटे को मारता है और क्या इस हिंसा से खुद्दूस उस बालक को बचा पाता है? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
जानिए आखिर फिल्म को क्यों देख सकते हैं:
फिल्म की खूबी इसकी कहानी है जो कई परतों से होती हुई, अंततः एक सरप्राइज़ पर खत्म होती है. डायरेक्शन लाजवाब है और जिस तरह से दिल्ली की गलियों को दीपेश जैन ने दर्शाया है लगता ही नहीं कि यह उनकी पहली फिल्म है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बढ़िया है. दर्शक पूरी तरह से कहानी में खुद को लिप्त पाएंगे. स्क्रीनप्ले काफी अच्छा लिखा गया है और परत-दर-परत जब चीजें खुलती हैं तो कहानी सोचने पर विवश करती है. कहीं-कहीं ड्रोन कैमरे का प्रयोग है, तो कभी-कभी लॉन्ग शॉट और प्रोजेक्ट में चीजें और निखर कर सामने आती हैं. मनोज बाजपेयी ने इलेक्ट्रिशियन के काम को बखूबी निभाया है. किरदार में पूरी तरह से लिप्त नजर आते हैं. इसी के साथ बेरहम पिता का किरदार नीरज कबि ने सराहनीय तरीके से निभाया है जिसकी वजह से शायद आप उनसे घृणा भी करने लगे. पहली बार ओम सिंह किसी फिल्म में काम कर रहे हैं. असल जिंदगी में वह एक अनाथालय से लाया गया बच्चा है जिसे फिल्म में दीपेश जैन और मनोज बाजपेयी ने काम करवाया है. ओम सिंह काफी नेचुरल अभिनय करते हुए नजर आते हैं. रणवीर शौरी और शहाना गोस्वामी ने भी सहज अभिनय किया है.
कमज़ोर कड़ियां:
यह टिपिकल मसाला फिल्म नहीं है जिसकी वजह से शायद एक खास तरह की ऑडियंस ही इस फिल्म को देखना पसंद करेगी. साथ ही साथ बॉक्स ऑफिस पर यह 100 या 200 करोड़ कमाने वाली फिल्म नहीं है. लेकिन अभिनय और कहानी की वजह से जरूर सराही जाएगी. फिल्म का कोई ऐसा गीत भी नहीं है जो रिलीज से पहले प्रसिद्ध हुआ हो. यही कारण है कि अभिनय और कहानी पर ध्यान देने वाले दर्शक भी इस फिल्म को नजदीकी सिनेमाघरों में खोज पाएंगे.
बॉक्स ऑफिस:
फिल्म का बजट ज्यादा नहीं है, लेकिन इसकी खास तरह की ऑडियंस खुद-ब-खुद सिनेमाघर तक पहुंच जाएगी.