scorecardresearch
 

असल 'खूबसूरत' का हैंगओवर लेकर न जाएं, अच्छी लगेगी सोनम की खूबसूरत

यह फिल्म 1980 में ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'खूबसूरत' का रीमेक है. एक मध्यवर्गीय सादगी और उससे उपजा साफ-सुथरा तंजो-लतीफ ऋषिकेश के कथानक में अकसर मौजूद रहा है. जैसे हीरो हीरोइन से अचार मांग रहा हो और वह खट्टा खाने के मन को लेकर उसे छेड़ने लगे. लेकिन नई 'खूबसूरत' में इस मध्यवर्गीय सादगी की जगह एक किस्म की भव्यता ने ले ली है. इससे नुकसान यह हुआ है कि वह अतिरिक्त ह्यूमर जो मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि में आ सकता था, नहीं आ पाया.

Advertisement
X
फिल्म 'खूबसूरत' का पोस्टर
फिल्म 'खूबसूरत' का पोस्टर

फिल्म रिव्यू: खूबसूरत
स्टार कास्ट: सोनम कपूर, फवद खान, रत्ना पाठक शाह, किरण खेर,  आमिर रजा
डायरेक्टर: शशांक घोष
ड्यूरेशन: 130 मिनट
रेटिंग: 3

यह फिल्म 1980 में ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'खूबसूरत' का रीमेक है. एक मध्यवर्गीय सादगी और उससे उपजा साफ-सुथरा तंजो-लतीफ ऋषिकेश के कथानक में अकसर मौजूद रहा है. जैसे हीरो हीरोइन से अचार मांग रहा हो और वह खट्टा खाने के मन को लेकर उसे छेड़ने लगे. लेकिन नई 'खूबसूरत' में इस मध्यवर्गीय सादगी की जगह एक किस्म की भव्यता ने ले ली है. इससे नुकसान यह हुआ है कि वह अतिरिक्त ह्यूमर जो मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि में आ सकता था, नहीं आ पाया.
Film Review: फाइंडिंग फैनी

ऋषिकेश वाली फिल्म में रेखा ने शानदार परफॉर्मेंस दी थी. इस फिल्म में सोनम कपूर के काम को औसत आंका जा सकता है, पर बुरा नहीं. सोनम एक समृद्ध फिल्मी बैकग्राउंड से आती हैं और उनकी छवि एक फैशन आइकन की भी है. ऐसे में उनके एक्टिंग पक्ष को लेकर बहुत सारे क्रिटीक आलोचक मुद्रा में ही रहते हैं और उन्हें खारिज करना अपना फर्ज समझते हैं. लेकिन यह तय करना पड़ेगा कि फिल्म में दर्शक सोनम कपूर की शख्सियत को देखने जाते हैं या सोनम कपूर एक्ट्रेस को. उस बैगेज को पीछे छोड़े जाने की जरूरत है.

सोनम के रोमांटिक सीन अच्छे लगे हैं, लेकिन ह्यूमर के मामले में वह औसत रही हैं. आवाज और इमोशंस के उतार-चढ़ाव उनके चेहरे पर बहुत अच्छे से नहीं आ पाए. फिर भी उनकी परफॉर्मेंस बुरी नहीं लगती.
मूवी रिव्यूः बिपाशा बसु की क्रीचर 3डी

पाकिस्तानी एक्टर फवद खान ने शानदार काम किया है. लड़कियों को वह 'यम्मी', 'डैशिंग' और 'क्यूट' लगेंगे. पहले हाफ की परफॉर्मेंस में स्टोरी की डिमांड के मुताबिक उनके किरदार में एक रिजर्वनेस है. उनका किरदार सेकेंड हाफ में खुलता है, पर थोड़ी झिझक के साथ. फवद के बारे में खास बात यह है कि उन्हें मुस्कुराना आता है. एक मुस्कुराना होता है, एक होता है दांत फाड़ना, एक दांत दिखाते हुए हंसना और एक होता है आंखों से मुस्कुराना. आंखों से मुस्कुराना सौंदर्यशास्त्र में सबसे उत्तम माना गया है. फवद को वह आता है. लड़कियां उन्हें पसंद करेंगी और हॉल में उन्हें देखकर 'आउ वाऊ' प्रकार की आवाजें निकालेंगी.

कहानी: रॉयल फैमिली में पंजाबी तड़का
राजस्थान में एक जगह है संबलगढ़. एक एक्सीडेंट में चलने-फिरने की ताकत खो चुके राजा साहब यहां अपने परिवार के साथ रहते हैं. रानी साहिबा थोड़ी सख्तमिजाज हैं और उनकी अनुशासन की बेंत तले सब लोग रहते हैं. ऋषिकेश मुखर्जी की खूबसूरत में यह रोल दीना पाठक ने किया था. इस फिल्म में उनकी बेटी रत्ना पाठक ने किया है. नौजवान राजुकमार है विक्रम. उसकी छोटी बहन है दिव्या. प्रिंस विक्रम की मुंबई की एक लड़की कियारा से सगाई हो चुकी है.

दिक्कत यह है कि राजा साहब का इलाज करने जो डॉक्टर आता है, टिकता नहीं है. फिर एक फिजियो लड़की आती है डॉ. मृणालिनी चक्रवर्ती उर्फ मिली. मिली की मां पंजाबी हैं तो वे गुण उसे विरासत में मिले हैं. उसका बेबाक और लाउड व्यक्तित्व रॉयल फैमिली में खप नहीं पाता है. राजा साहब भी इलाज में उसका सहयोग नहीं करते. फिर एक दिन उसे एक कहानी पता चलती है कि विक्रम का एक बड़ा भाई था, अंबर, जिसे राजा साहब ने एक स्पोर्ट्स कार गिफ्ट की थी. उसे लेकर राजा साहब कार में घूमने निकले थे कि एक्सीडेंट हो गया और अंबर की मौत हो गई. राजा साहब कोमा में रहे. जब होश आया तो चलने-फिरने की ताकत जा चुकी थी. मिली को पता चलता है कि राजा साहब अंबर की मौत के लिए खुद को गुनहगार मानते हैं और इसी वजह से ठीक होने के लिए अपनी ओर से एफर्ट नहीं करते हैं. इसके बाद मिली राजा को ठीक करने में नए सिरे से जुट जाती है. इसी बीच मिली और सगाईशुदा विक्रम में प्यार की पींगे बढ़ती हैं और बाकी ट्विस्ट आते हैं. आखिर में कहानी यही स्थापित करती है कि प्यार करने के लिए दो लोगों का एक बैकग्राउंड का होना जरूरी नहीं होता.

रॉयल फैमिली की हवा निकालती पंजाबी मां
फवद खान की कॉमिक टाइमिंग अच्छी है. लेकिन कॉमेडी की सबसे ज्यादा संभावनाओं वाला रोल किरण खेर के हिस्से आया है. वह दिल्ली की मिडल क्लास पंजाबी मां के रोल में हैं, जो अपने चुटीले पंजाबी जुमलों से रॉयल फैमिली की हवा निकाल देती हैं. अब तो लगता है कि पंजाबी मां का रोल किरण खेर के नाम पेटेंट कर दिया गया है. जब-जब वह स्क्रीन पर आती हैं, हंसी के ठहाके फूटने लगते हैं.

राजा के रोल में आमिर रजा ने भी प्रभावित किया है. वह राजा जो दुखी और एकांकी जीवन जीता है, लेकिन एक समय के बाद मिली के साथ बच्चों की तरह चहकता है. इस रोल को आमिर ने बखूबी निभाया है. उन्हें पहले कभी देखा नहीं, हो सकता है देखा हो पर याद नहीं आता है.

कहानी को धीमा नहीं करते हैं गाने

फिल्म की खूबी यह भी है कि गाने रिदम को नहीं तोड़ते हैं. 'तेरी मां का फोन आया' जैसा गाना शुरू में उसी वक्त आकर निकल जाता है, जब स्क्रीन पर कास्टिंग चल रही होती है. गाने बुरे नहीं हैं और जब आते हैं तो अखरते नहीं हैं.

फिल्म की एक खासियत यह भी है कि यह बहुत स्टाइलिश फिल्म है. माना भी जाने लगा है कि जिस फिल्म में सोनम होंगी तो वह स्टाइलिश तो होगी ही. फिल्म में उनकी ड्रेस और उसका कलर कॉम्बिनेशन देखने लायक है. लड़कियां फिल्म देखने जाएंगी तो उनकी ड्रेस पर भी खूब गौर करेंगी. बाकी महल का इंटीरियर, कारें, घोड़े और ऐसी तमाम छोटी-बड़ी बातें पृष्ठभूमि में हैं.

फिल्म ज्यादा लंबी नहीं है. डायरेक्टर शशांक घोष उम्मीद जताते हुए लगते हैं कि आगे चलकर और अच्छा करेंगे. बेहतर होता कि वह हर वक्त कहानी को मिली पर केंद्रित न रखते हुए अन्य छोटे-छोटे किरदारों को भी शामिल किया जाता. लेकिन कुल मिलाकर शशांक का काम भी अच्छा है.

सोनम कपूर की 'खूबसूरत' टाइमपास फिल्म है. आप हंसेंगे और थोड़ी मस्ती करेंगे. अगर सोनम कपूर से परहेज नहीं है तो देखने जाएं. पर ऋषिकेश मुखर्जी की 'खूबसूरत' का हैंगओवर लेकर न जाएं, क्योंकि वह 'कल्ट फिल्म' थी और खूबसूरत चीजों की कॉपी नहीं की जा सकती.

फिल्म क्रिटिक सौरभ द्विवेदी को आप ट्विटर पर फॉलो कर सकते हैं. उनका हत्था है @saurabhaajtak

Advertisement
Advertisement