'तो, हम जीत गए...' एक भारतीय अधिकारी कहता है. तभी उसका एक साथी सवाल दागता है- 'क्या सच में?' तभी टीम का एक और साथी कहता है, 'लेकिन हम लड़े तो.' फिर से वही सवाल आता है- 'क्या सच में?' और आतंकियों से नेगोशिएट करने पहुंचे चार भारतीय ऑफिशियल, कांधार हवाई अड्डे की छत पर खड़े, एक इंडियन प्लेन को उड़ान भरते देख रहे हैं.
इस प्लेन में वो यात्री और फ्लाइट क्रू है जो थोड़ी देर पहले तक इंडियन एयरलाइन्स की फ्लाइट नंबर IC 814 के साथ आतंकियों के कब्जे में थे. चारों ऑफिशियल आसमान में धीरे-धीरे गायब होते प्लेन को इस तरह देख रहे हैं जैसे वो इतिहास है और उन्हें चिंता है कि ये इतिहास उन्हें कैसे जज करेगा? अनुभव सिन्हा की नेटफ्लिक्स सीरीज 'IC 814: द कांधार हाईजैक' आपको इसी कश्मकश के साथ छोड़ती है.
बिना कमेंट्री के सभी पक्ष रखता शो
अनुभव ने अपने पिछले प्रोजेक्ट्स 'मुल्क', 'आर्टिकल 15', 'अनेक' और 'भीड़' में जो टॉपिक चुने, उनपर किरदारों के जरिए एक तगड़ी सोशल कमेंट्री भी दी. मगर इस बार उन्होंने अपने टॉपिक पर कोई क्लोजिंग कमेंट्री करने का लालच छोड़ा है. जबकि जनता की स्मृति में धीरे-धीरे ये बात घर करने लगी है कि 1999 में, काठमांडू से दिल्ली के लिए निकली इंडियन एयरलाइन्स की फ्लाइट IC 814 के हाईजैक के बाद इंडियन डिप्लोमेसी ने जो कुछ किया, वो एक राजनीतिक फेलियर था.
अनुभव ने IC 814 के कैप्टन देवी शरण और सृंजॉय चौधरी की किताब 'फ्लाइट इनटू फियर' को अपने शो का आधार बनाया है. फैक्ट्स के लिए उन्होंने संजय शर्मा की किताब 'IA's Terror Trail' का भी रेफरेंस दिया है. और वो दर्शक को ये इम्प्रेशन देते हैं कि उन्होंने इस बड़ी घटना को पूरे ऑथेंटिक तरीके से पेश करने वाला माहौल अपने शो में बनाया है. ये कितना ऑथेंटिक है, कितना नहीं, ये तो एक्सपर्ट्स ही बता सकते हैं. मगर एक शो के तौर पर घटनाओं को न्यूट्रल और ऑथेंटिक होकर दिखाता हुआ फील तो जरूर होता है.
अनुभव का शो उस सिचुएशन की टेंशन और गंभीरता पूरी तरह महसूस करवाता है, जब भारतीय डिप्लोमेसी पर एक तरफ अपने 180 नागरिकों की जान बचाने की नैतिक जिम्मेदारी थी. और दूसरी तरफ, देश के सैनिकों द्वारा जान की बाजी लगाकर पकड़े गए आतंकवादियों को छोड़कर, देश की सुरक्षा के लिए एक पोटेंशियल रिस्क तैयार कर लेने का डर. 'IC 814' इसी तराजू को एक पक्ष से दूसरे पक्ष में झूलते और आखिरकार, नागरिकों को बचाने की तरफ झुकते हुए दिखाता है.
दमदार एक्टर्स के साथ ने बनाया माहौल
'IC 814' में अनुभव को एक ड्रीम कास्ट का साथ मिला है. नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा, आदित्य श्रीवास्तव, अरविंद स्वामी और दिब्येंदु भट्टाचार्य जैसे एक्टिंग के गुरु माने जाने वाले एक्टर्स के साथ विजय वर्मा और पत्रलेखा. ये एक ऐसी कास्ट है जो किसी भी बॉलीवुड डायरेक्टर का सपना है. और ये सभी अपने किरदारों को इस तरह निभाते हैं कि त्रिशांत श्रीवास्तव और एड्रियन लेवी का की लिखी कहानी में वजन बहुत बढ़ जाता है.
विजय वर्मा कहानी में IC 814 के पायलट बने हैं, जो प्लेन हाईजैक होते ही ये तय कर चुका है कि पैसेंजर्स की जान उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है. प्लेन हाईजैक करने वाले 5 आतंकियों में से एक लगातार उसकी गर्दन में गन धंसाए बैठा है और ऐसे में उसकी आंखों चेहरे पर आपको लगातार उसका डर दिखेगा. शो की कहानी रियल घटना पर है, यानी किरदार कोई अल्ट्रा-फिल्मी, आतंकियों से भिड़ जाने वाला हीरो नहीं है. लेकिन इस लिमिटेड रियल लाइफ घटना में वो ऐसा हीरो है जिसकी समझदारी, उसका शांत बने रहकर कुछ 'फिल्मी' स्टंट ट्राई न करना ही, पैसेंजर्स की जान सुरक्षित रहने की गारंटी है.
पत्रलेखा और अदिति गुप्ता इस प्लेन की एयर होस्टेस हैं, जिन्हें आतंकियों ने यात्रियों की हर हरकत का जिम्मेदार बना दिया है. ये दोनों क्लास की मॉनिटर की तरह हैं. एक ऐसी क्लास जिसमें सबको अपनी या अपने बच्चों या अपने साथी की जान का डर है. डर के अलावा खाना, पानी और टॉयलेट जैसी बेसिक जरूरतों की कमी भी है. इसी में एक बीमार बुजुर्ग भी हैं जो अपनी दवा लिमिटेड ही लाए थे क्योंकि फ्लाइट में एक ही घंटा लगना था. इसी फ्लाइट में एक बच्चा भी है जो डिफरेंटली एबल्ड है. 8 दिन तक चले डर और टेंशन की एक सूरत ये दोनों एयर होस्टेस भी हैं.
आसमान से ज्यादा जमीन पर है स्ट्रगल
शो का एक हिस्सा आसमान में फ्लाइट के साथ चल रहा है और दूसरा हिस्सा जमीन पर क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप के साथ चल रहा है. पंकज कपूर विदेश मंत्री हैं, नसीरुद्दीन शाह नेशनल सिक्योरिटी एडवाइसर. अरविंद स्वामी और दिब्येंदु भट्टाचार्य विदेश मंत्रालय के अधिकारी हैं. आदित्य श्रीवास्तव और कुमुद मिश्रा रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के अधिकारी हैं, जबकि कंवलजीत सिंह और मनोज पाहवा आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) के. इनके साथ सुशांत सिंह भी हैं जो एन.एस.जी. कमांडो फोर्स के ऑफिसर हैं.
इन 9 किरदारों के बीच कहानी का जितना हिस्सा है, वो बेहतरीन है. ये सभी किरदार, हर उस पक्ष को रिप्रेजेंट करते हैं जो 1999 में इस रियल क्राइसिस के दौरान फैसला लेने के लिए जिम्मेदार थे. और इस क्राइसिस मैनेजमेंट के शुरू होने पर में हर पक्ष अपनी चूक छिपाने और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की फिराक में नजर आता है. एक एजेंसी दूसरी को जिम्मेदार ठहराने पर लगी है.
कमांडो ऑपरेशन के लिए तैयार हैं, लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री की परमिशन चाहिए और मुख्यमंत्री साहब को खुद विदेश मंत्री की इजाजत चाहिए. परमिशन के इस खेल में फ्रस्टेट हो चुके मनोज पाहवा एक सीन में 'टू मच डेमोक्रेसी' वाली चुटकी भी लेते नजर आते हैं. एक फेज आता है जब पायलट को ही बलि का बकरा बना दिया जाता है.
एक तरफ मीडिया का खेल भी चल रहा है जिसमें दो खिलाड़ी हैं. एक ही मीडिया हाउस में दिया मिर्जा टीवी चैनल वाली पत्रकार हैं और अमृता पुरी प्रिंट मीडिया वाली. एक पूरी डिटेल से ज्यादा खबर ब्रेक करने में दिलचस्पी है, तो दूसरी को हर डिटेल खबर में जोड़ने की भूख. दोनों में लगातार सच बताने और छुपाने का एक स्ट्रगल चल रहा है.
असलहों की नोंक पर हवा में टंगी उन 180 जिंदगियों का फैसला लेने के लिए बैठा हर एक पक्ष, अपना पक्ष चुनने में अटक रहा है, क्योंकि बात जिम्मेदारी की है. और उधर प्लेन दिल्ली की बजाय अमृतसर, लाहौर, दुबई भटक रहा है. शो का फाइनल शोडाउन शुरू होता है जब ये प्लेन तालिबान के कब्जे वाले कांधार पहुंच जाता है.
और वो सवाल जो आजतक बरकरार है
तबतक यात्री और क्रू भी अपने हिस्से का सब्र और हिम्मत खोने की कगार पर हैं. डिप्लोमेसी अपनी साख खोने की कगार पर है और उधर प्लेन हाईजैक करने वाले आतंकी भी अब तिलमिला रहे हैं. और मामला तब एकदम पीक पर पहुंच जाता है जब आतंकियों की मांगों में वो तीन नाम आते हैं, जो तब भारत की जेलों में थे- मौलाना मसूद अजहर, ओमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद जरगर. तब यात्रियों की जान के बदले रिहा किए गए ये तीनों आज भी जिंदा हैं और भारत में फैले आतंकवाद की जड़ में मौजूद सबसे महत्वपूर्ण नामों में शामिल हैं. 'IC 814' में आपका सामना उस महत्वपूर्ण सवाल से होता है कि देश के लिए भविष्य की सुरक्षा पर खतरे को चुनकर, प्लेन में फंसे उन लोगों को फंसाना कितना जरूरी था? ये आपको शो देखकर खुद तय करना है. यहां देखी नेटफ्लिक्स शो 'IC 814' का ट्रेलर:
शो की पूरी राइटिंग टीम और अनुभव सिन्हा को इस बात का पूरा क्रेडिट मिलना चाहिए कि उन्होंने एक एंगेजिंग शो डिलीवर किया है. हालांकि, स्क्रीनप्ले की स्पीड कुछेक जगह स्लो जरूर पड़ी है. यात्रियों की पर्सनल लाइफ के स्ट्रगल को शामिल करने की कोशिश अधपकी सी लगती है. हालांकि, ये एक फिल्मी लालच है जिससे बच पाना डायरेक्टर्स के लिए मुश्किल रहता है.
आतंकियों के चीफ राजीव ठाकुर को छोड़ दें तो बाकी सभी एक्टर्स टॉप फॉर्म में हैं. खासकर क्राइसिस ग्रुप के एक्टर्स के रिएक्शन, एक दूसरे से कन्वर्सेशन और 'बॉयज गैंग' वाली वाइब माहौल बनाए रखती है. मनोज पाहवा की नेचुरल कॉमेडी, सीरियस सिचुएशन को बहुत दिलचस्प बनाती है और उनका किरदार अलग से निकलकर आता है.
कुछ एक सीन्स थोड़े ओवरस्ट्रेच होते हैं. जैसे प्लेन के जाम पड़े टॉयलेट वाला सीक्वेंस. कुछेक जगह सीन्स को लंबा खींचने का वेब-सीरीज फॉर्मेट का लालच भी हावी होता दिखता है. मगर कुल मिलाकर शो की स्ट्रेंग्थ, इसकी कमियों पर काफी भारी पड़ती है.