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Indian Police Force Review: सिद्धार्थ की पर्सनालिटी, दमदार शिल्पा शेट्टी भी नहीं फूंक सके बोरियत भरे शो में जान

रोहित शेट्टी के कॉप यूनिवर्स में लेटेस्ट एंट्री बनकर आया है उनका शो- इंडियन पुलिस फोर्स. सिद्धार्थ मल्होत्रा के लीड रोल वाले इस शो से उम्मीद थी कि ये रोहित शेट्टी की पुलिसिया फिल्मों के मजे को और आगे ले जाएगा. क्या शो ऐसा कर पाया? आइए बताते हैं इस रिव्यू में...

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'इंडियन पुलिस फोर्स' में सिद्धार्थ मल्होत्रा
'इंडियन पुलिस फोर्स' में सिद्धार्थ मल्होत्रा
फिल्म:इंडियन पुलिस फोर्स
1/5
  • कलाकार : सिद्धार्थ मल्होत्रा, शिल्पा शेट्टी, विवेक ओबेरॉय, श्वेता तिवारी
  • निर्देशक :रोहित शेट्टी, सुश्वंत प्रकाश

रोहित शेट्टी की पिछली रिलीज 'सूर्यवंशी' बहुत से लोगों को बहुत लंबी लगी थी. अक्षय कुमार की फिल्म में रोहित के पिछले भौकाली कॉप सिंघम और सिम्बा की एंट्री से पहले मामला बहुत सुस्त लग रहा था, तूफानी एक्शन होने के बावजूद. लेकिन 'इंडियन पुलिस फोर्स' देखने के बाद आपको 'सूर्यवंशी' अच्छी लगने लगेगी, क्योंकि आपको समझ आ जाएगा कि रोहित मूड में आ जाएं तो किस हद तक बोर कर सकते हैं! 

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रोहित का कॉप यूनिवर्स, जो अब इंटरनेशनल होने की तमन्ना में कुलांचे भर रहा है, 'इंडियन पुलिस फोर्स' तक आते-आते लॉजिक से परे जा चुका है. 'सिंघम', 'सिम्बा' और 'सूर्यवंशी' जैसी फिल्मों की आलोचना में अबतक एक बड़ा पॉइंट ये था कि रोहित अपने हीरो को 'वन मैन आर्मी' बना देते हैं और ऐसा लगता है कि बाकी फोर्स बस खड़े रहने के लिए है. 'इंडियन पुलिस फोर्स' में मामला उल्टा है, एक हीरो की बजाय पुलिस फोर्स के काम को ट्रिब्यूट देने की कोशिश की गई है. लेकिन रोहित की पुलिस फोर्स जिस तरह लॉजिक को धता बताने वाली चीजें कर रही है, उससे अच्छा था कि वे चुपचाप खड़े ही रहते. 

प्लॉट वगैरह 
शो का इंजन दिल्ली में हुए सीरियल बम ब्लास्ट से स्टार्ट होता है. दिल्ली पुलिस के सुपरकॉप कबीर मलिक (सिद्धार्थ मल्होत्रा) और उसके सीनियर विक्रम बख्शी (विवेक ओबेरॉय) एंट्री लेते हैं और दो जगह मिले जिन्दा बमों को निपटाते हैं. और 'पुलिस पर सवाल खड़े हो रहे हैं' की पारंपरिक उद्घोषणा के साथ जांच शुरू हो जाती है. 

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दिल्ली पुलिस की मदद करने गुजरात पुलिस की स्पेशल सेल से एक ऑफिसर तारा शेट्टी (शिल्पा शेट्टी) आती हैं और एकदम 90s स्टाइल फिल्मों की तरह डायलॉगबाजी में आपको बताया जाता है कि तारा और विक्रम ट्रेनिंग में साथ थे. और उनमें अपने-अपने काम करने के स्टाइल को लेकर एक तनातनी रहती है, जिसे रूटीन से भी ज्यादा घिस चुके बातचीत के स्टाइल में दिखाया जाता है. इनके साथ एक तीसरा भी था, जिसकी एंट्री कहानी में बहुत बाद में होती है और आपको समझ नहीं आता कि इस किरदार को क्यों हाइप कर रहे थे? ब्लास्ट के मास्टरमाइंड को पकड़ने निकले ये लोग चकमा खा जाते हैं और वो आतंकवादी आगे के मिशन पर निकल पड़ता है. तो सवाल ये है कि क्या ये टीम उसे रोक पाएगी? 

इसी बीच शो का फोकस कबीर की पर्सनल लाइफ, कहानी के विलेन की लव स्टोरी और फिर बैक स्टोरी पर भी जाता है. लेकिन ये सबकुछ इतना रूटीन है कि आपको अंदाजा लगाने के लिए शो देखने की भी जरूरत नहीं है. टिपिकल रोहित शेट्टी टेम्पलेट स्टाइल में कहानी चलती है कि हीरो की जिंदगी में एक पर्सनल लोचा होगा. उसके साथी ऑफिसर की जान जाएगी और कहानी का विलेन भी इसलिए आतंकी बना है क्योंकि उसने पास्ट में दंगे देखे हैं और अपनों को खोया है. वही फॉर्मूला जो 90s के समय से घिसा चला आ रहा है! 

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भूल-चूक लेनी-देनी
VFX का हद से ज्यादा इस्तेमाल, आंखों पर भारी लगने वाले कलर् और एक ही मिनट में आंखों को नकली लग जाने वाले सेट्स 'इंडियन पुलिस फोर्स' का एस्थेटिक सेन्स पूरी तरह खराब कर देते हैं. एक तो रोहित शेट्टी का हर पुलिस ऑफिसर ऐसे कपड़े पहने हुए है जैसे अभी शर्ट फटेगी और उसमें से 'हल्क' बाहर आएगा. 

संदीप साकेत और अनुषा नंदकुमार की लिखी स्टोरी और स्क्रीनप्ले में जितनी कमी एक्साइटमेंट की है, उससे ज्यादा लॉजिक की. 'इंडियन पुलिस फोर्स' में पुलिस वाले जिस तरह ऑपरेशन्स कर रहे हैं, उसमें किसी भी अपराधी से ज्यादा आम लोगों की जान जाने का खतरा है. रोहित शेट्टी के इस शो में पुलिस की फंक्शनल डिटेल्स पर ध्यान ही नहीं दिया गया है. और हद ये है कि कहानी में दिल्ली पुलिस, अपराधी को पकड़ने बांग्लादेश पहुंची मिलती है, वो भी अंडरकवर ऑपरेशन में. लेकिन इनका कोवर्ट ऑपरेशन करने का तरीका थोड़ा कैजुअल है, जिसमें आधा ढाका तबाह हो चुका है. 

रोहित के पुलिसवाले एक गाड़ी में अपराधी को डालते हैं और बांग्लादेशी इंटेलिजेंस ऑफिसर्स के सामने गाड़ी भगाते हुए, इंडियन बॉर्डर में घुस जाते हैं. बांग्लादेश की बॉर्डर फोर्स के लोग ऊपर मचान से बैठ कर नीचे चल रही ये लूडो देख रहे हैं. उन्हें किसी ने बोल दिया है कि उनकी राइफल में बुलेट नहीं, हाजमोला है. इसलिए वो फायर करने में इसे बर्बाद नहीं करना चाहते.

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'इंडियन पुलिस फोर्स' से न तो भौकाली लेवल का सुपरकॉप निकलता है और न ही पुलिस फोर्स के स्ट्रगल और उनकी हालत पर शो कुछ कह पाता है. कॉप यूनिवर्स के फैन्स को अगर ये उम्मीद है कि उन्हें इसमें रोहित के पिछले पुलिस वालों में से किसी का कैमियो मिलेगा, तो यहां भी आपको निराशा मिलेगी. 'इंडियन पुलिस फोर्स' ना तो एक सॉलिड कहानी देता है, न ही फैन सर्विस करता है. ये बस कुछ करने की कोशिश करता रहता है, और क्या करना चाहता है ये शो की टीम से ही कोई बता सकता है! 

हालांकि, बोरियत का मुजस्समा बन चुके इस शो में पॉजिटिव के नाम पर बस इसके कलाकार हैं. सिद्धार्थ मल्होत्रा पुलिस ऑफिसर के रोल में बहुत जमे हैं, और उन्हें इस तरह वेस्ट करने की बजाय रोहित ने 'सिंघम 3' में छोटा रोल भी दे दिया होता, तो बेहतर होता. एक्शन करती हुई शिल्पा शेट्टी बहुत दमदार लगती हैं और विवेक ओबेरॉय भी जमते हैं. मगर 'इंडियन पुलिस फोर्स' इतना निराश करता है कि इसे बस अपने सब्र का लेवल चेक करने के लिए ही देखा जा सकता है. 

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