Janhit Mein Jaari Movie Review: रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर रोज अबॉर्शन से लगभग 8 महिलाओं की मौत हो जाती है. महिलाओं की मौत का आंकड़ा ये चौंकाने वाला है. मुझे नहीं पता कि आप में से कितने लोग इस सच से वाकिफ हैं, लेकिन हां नुसरत भरूचा की फिल्म जनहित में जारी देखने के बाद ये फैक्ट गूगल जरूर करेंगे. चलिये जानते हैं कि समाज को आईना दिखाने का दावा करती ये फिल्म सबकी उम्मीदों पर कितनी खरी उतरी.
जनहित में जारी की कहानी
हमारे देश में सेफ सेक्स एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर बात करना जरूरी है, लेकिन करता कोई नहीं. इस फिल्म की कहानी सेफ सेक्स पर ही आधारित है. मध्यप्रदेश की एक लड़की है मनोकामना त्रिपाठी (नुसरत भरूचा) जो मीडिल क्लास फैमिली से आती है. घरवाले चाहते हैं कि सही समय पर उसकी शादी हो जाये, लेकिन मनोकामना को करियर में आगे बढ़ना है. शादी से बचने के लिये मनोकामना एक कंडोम कंपनी में काम करने लगती है.
अच्छी जॉब मिलने के बाद मनोकामना को रंजन (अनुद सिंह ढाका) के रूप में उसका प्यार मिलता है और शादी हो जाती है. हांलाकि, ससुराल वालों को ये नहीं पता है कि उनकी बहू कंडोम कंपनी में जॉब करती है. जब उन्हें इसका पता चलता है, तो नॉर्मल मीडिल क्लास फैमिली की तरह क्या... क्या... और छी जैसे रिएक्शन सामने आते हैं. पर मनोकामना को हिंदुस्तान की महिलाओं की टेंशन है और सेफ सेक्स के लिये मर्दों को कंडोम इस्तेमाल करने के लिये मोटिवेट करती है. यहां तक कि इसके लिये वो अपनी शादी तक दांव पर लगा देती है. क्या मनोकामना अपने मकसद में कामयाब होती है या फिर वो अपनी शादी बचाने के लिये कंडोम कंपनी की नौकरी छोड़ देती है. ये जानने के लिये आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
फिल्म का प्लस पॉइंट क्या है
जनहित में जारी एक छोटे बजट की फिल्म है, जो दमदार कहानी के साथ आपको पूरी मूवी देखने पर मजबूर करती है. फिल्म के पंचलाइन काफी अच्छे हैं. जैसे- 'शादीशुदा मर्दे एक फटी चड्डी की तरह होता है, जिसकी एक टांग घरवालों के अंदर और दूसरी बीवी के पास होती है.' फिल्म की कहानी समाज की दकियानूसी सोच को तोड़ती नजर आई. कई सीन्स ऐसे हैं जो आपको हंसाने के साथ आंखों में आंसू तक ला देते हैं. वहीं नुसरत भरूचा की एक्टिंग की भी तारीफ करनी होगी, जो वो अकेले अपने दम पर पूरी फिल्म चलाने में सफल हुईं
कहां हुई गलती
इसमें कोई दोराय नहीं है कि फिल्म आपको हंसाते-हंसाते बहुत बड़ी सीख दे जाती है. पर फिल्म में कुछ खामियां भी हैं. फिल्म की स्टोरी लाइन ब्रेक करके-करके दिखाई गई है. फिल्म के कुछ सीन काफी फेक लगते हैं कि जैसे कि रंजन का फौरन मनोकामना की मुहिम में साथ देना. फिल्म के अंत में ऐसा लगता है कि विजय राज कुछ खतरनाक करते दिखाई देंगे, लेकिन फिल्म का अंत काफी हल्का रहा. फिल्म की गंभीर स्टोरी लाइन कभी रोमांस पर आती, तो कभी किसी दूसरे एंगल पर चली जाती है. बस इतना है कि टूटी हुई स्टोरीलाइन में भी ये फिल्म आपका मनोरंजन करने में कामयाब होती है. इसलिये आप पूरी फिल्म अंत तक देखने पर मजबूर होते हैं.
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जय बसंतू सिंह के निर्देशन में बनी फिल्म का निर्देशन अच्छा था, लेकिन इसे और बेहतर किया जा सकता था. नुसरत भरूचा के अलावा फिल्म में अनुद सिंह ढाका, परितोष त्रिपाठी और विजय राज ने भी बेहतरीन काम किया है.
नोट- सच कहें तो बॉलीवुड में रोमांस, थ्रिलर, और बायोपिक तो बहुत बनती है. पर ऐसे टॉपिक पर बोलने की हिम्मत कम ही लोग करते हैं. इसलिये आपको फिल्म मिस नहीं करनी चाहिये. देखकर पैसा बर्बाद करने वाली फील नहीं आयेगी.