मोहब्बत में धोखा देना, बदला लेना, मीठी मीठी बातें करके काम निकालना, ये सब इंसानी फितरत है. हर इंसान जाने अनजाने इन सब चीजों से गुजरता ही है. सबकी अपनी एक कहानी होती है, जिसे देखने का नजरिया हर किसी का अलग हो सकता है. मगर जब वो कहानी खुद की बन जाए तो असल एहसास समझ में आता है. अब ऐसी ही कुछ 'दास्तान्स' के साथ नेटफ्लिक्स एक ढाई घंटे की फिल्म लेकर आया है, जिसमें चार अलग अलग कहानियां दिखाई गई हैं. चार शॉर्ट फिल्म कहना गलत नहीं होगा. पहली कहानी है बदले की. दूसरी कहानी ऊंचे और नीचे दर्जे के लोगों की, तीसरी कहानी में प्यारी बातों में फंसा कर काम निकालना और चौथी थकी हुई शादी में रहते हुए बाहर प्यार ढूंढ़ना. चारों कहानियां बहुत कुछ नई नहीं हैं. अक्सर ऐसी चीजें देखने को मिल जाती हैं. तो आइए जानते हैं कि वाकई करण जौहर के प्रोडक्शन तले बनी ये फिल्म या जाहिर तौर पर शॉर्ट फिल्में देखने लायक हैं या नहीं.
फीके स्क्रीनप्ले की नैया पार कराता डायरेक्शन
इन शॉर्ट फिल्मों को चार लोगों ने डायरेक्ट किया है. मजनू को शशांक खैतान ने, खिलौना को राज मेहता ने गीली पुच्ची को नीरज घ्येवान ने और अनकही को कयोज ईरानी ने. मजनू की बात करें तो इसकी स्टोरीलाइन ओके-ओके है और धड़क, बद्रीनाथ की दुल्हनिया, हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया जैसी फिल्मों का निर्देशन करने वाले शशांक खैतान का डायरेक्शन भी ठीक ही है. लेकिन शॉर्ट फिल्म मजनू को खास बनाने के लिए कुछ एक्स्ट्रा एफर्ट देखने को नहीं मिला है.
राज मेहता ने खिलौना को डायरेक्ट किया है, इसकी शुरुआत अच्छी होती है. फिल्म ठीक लाइन पर जाते जाते अचानक खत्म हो जाती है. मतलब ये ही क्लाइमैक्स आपको निराश कर सकता है. ये भी कहा जा सकता है कम समय होने के चलते राइटर को कहानी पूरे तरीके से लिखने का समय नहीं मिला.
गीली पुच्ची, नीरज ध्येवान के कंधों पर थी और इसकी शुरुआत बहुत ही बोरिंग होती है मगर फिर रफ्तार पकड़ती है. ये क्लास की लड़ाई, दलितों के प्रति एक आपके नजरिए को और साफ करेगी. लेकिन अंत ठीक है. चौथी कहानी की बात करें तो अनकही की कहानी और डायरेक्शन अच्छा है, मगर जबरदस्ती का सस्पेंस कहानी को ऊपर-नीचे ढकेलता दिखा. तो ओवर ऑल अजीब दास्तान्स वन टाइम वॉच है.
एक्टिंग
इसमें फातिमा सना शेख, जयदीप अलहावत, नुसरत भरूचा, अदिति राव हैदरी, कोंकणा सेन शर्मा, शेफाली शाह, टोटा रॉय चौधरी, मानव कौल जैसे सितारे हैं. सभी एक्टर्स ने अपना अपना किरदार निभाया. नुसरत भरूचा कामवाली के रोल में कमजोर दिखीं. हालांकि, बाकी सितारे लाइन पकड़े हुए थे और ठीक काम करते नजर आए. अभिषेक बनर्जी मिर्जापुर और पाताल लोक के बाद आगे के रास्ते में और शार्प हो रहे हैं. अरमान रलहान और इनायत वर्मा ने इम्प्रेस किया.
आखिर क्यों देखे करण जौहर की शॉर्ट फिल्में?
अजीब दास्तान्स में कई कहानियां होने से ये फायदा जरुर है कि इंसान अपने इंटरेस्ट के हिसाब से एक फिल्म चूज करके देख सकता है. ये मजबूरी नहीं है कि फिल्म शुरू कर दी है तो पूरे ढाई घंटे देखनी पड़ेगी. स्टार्स की एक्टिंग भी ठीक ठाक है तो एक बार देखी जा सकती हैं. हां ये भी है कि अगर कोई एक्शन-कॉमेडी फिल्मों का शौकीन है तो इसे न देखे. अजीब दास्तान्स केवल असहज-अलग जोनर को पसंद करने वाले लोग ही देखे तो बेहतर है.