'बिहार' हिंदुस्तान का वो राज्य जिसका नाम सुनते ही दिमाग में राजनीति, गैंगस्टर और क्राइम जैसे शब्द आते हैं. हाल ही में बिहार में होने वाले क्राइम पर बनी एक सीरीज भी रिलीज हुई है. नाम है 'खाकी: द बिहार चैप्टर'. सीरीज की कहानी Bihar Diaries: The True Story of How Bihar's Most Dangerous Criminal Was Caught किताब पर आधारित है. ये बुक 1998 बैच के आईपीएस अधिकारी अमित लोढ़ा ने लिखी है. 'खाकी: द बिहार चैप्टर' आपको क्यों देखनी चाहिये और क्यों नहीं. ये जानने के लिये आपको एक बार रिव्यू पढ़ लेना चाहिए.
-'खाकी: द बिहार चैप्टर'
'खाकी: द बिहार चैप्टर' की कहानी दिल्ली आईआईटी से ग्रेजुएट और आईपीएस अधिकारी अमित लोढ़ा (करण टैक्कर) की कहानी है. अमित लोढ़ा 1998 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं, जिन्होंने पहली बार में ही यूपीएससी परीक्षा पास कर ली थी. अमित लोढ़ा की पहली पोस्टिंग बिहार में हुई थी. शादी के एक हफ्ते बाद वो ड्यूटी जॉइन करने के लिए बिहार पहुंच जाते हैं.
25 साल के अमित लोढ़ा IPS बनकर बिहार, तो पहुंच गए थे, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि वहां उनके सामने कितने चैलेंजेस आने वाले हैं. राज्य में पहुंचते ही अमित लोढ़ा ने अपराध और भ्रष्टाचार को रोकने के लिये कदम आगे बढ़ाए. इस बीच उनका सामना होता बिहार के सबसे बड़े गैंगस्टर चंदन महतो (अविनाश तिवारी) से. बिहार के सबसे बड़े गैंगस्टर को पकड़ना अमित लोढ़ा के लिये बिल्कुल आसान नहीं रहा. पर उन्होंने ठान लिया था कि वो 15 अगस्त को आजादी वाले दिन, बिहार की मासूम जनता को इस अपराधी से जरूर बचाएंगे. साम, दाम, दंड, भेद अपनाकर अमित लोढ़ा चंदन महतो को गिरफ्तार करने में लग जाते हैं. अब अंत में जीत अमित लोढ़ा की होती है. या फिर चंदन महतो की. ये जानने के लिये आपको सीरीज देखनी चाहिए.
क्यों दिलचस्प लगती है कहानी?
ऐसा नहीं है कि बिहार की राजनीति और क्राइम को लेकर पहली सीरीज बनाई गई है. इससे पहले 'गंगाजल' और 'महारानी' जैसी फिल्म-सीरीज के जरिये बिहार की असलियत को स्क्रीन पर दिखाया जा चुका है. पर नीरज पांडे की ये सीरीज कई मायनों में काफी अलग महसूस कराती है. 'खाकी: द बिहार चैप्टर' में दिखाया गया है कि कैसे एक डीजल चोरी करने वाला चंदनवा बिहार का गैंगस्टर चंदन महतो बन जाता है. चंदन महतो के राज को खत्म करने के लिए अमित लोढ़ा कई मुश्किलों से गुजरते हैं. खाकी की कहानी बिहार पुलिस और गैंगस्टर की लड़ाई को दर्शाती है. स्क्रीन पर शातिर अपराधी और होशियार IPS अधिकारी को आपस में भिड़ते देखना दिलचस्प लगता है.
कैसा है अभिनय?
सीरीज में रवि किशन (माफिया डॉन अभ्युदय सिंह) के रोल में हैं. रवि किशन का किरदार छोटा, लेकिन संमा बांधने लायक रहा. रवि किशन की दमदार एक्टिंग कहानी देखने में दिलचस्प बनाए रखती है. इसके बाद मुक्तेश्वर चौबे के किरदार में आशुतोष राणा के मजेदार डायलॉग दिल जीत लेने वाले हैं. बाकी आशुतोष राणा की एक्टिंग के बारे में कुछ भी बयां करना कम ही लगता है. चवनप्राश साहू (जतिन सरना) और उनकी पत्नी मीता के रोल में ऐश्वर्या सुष्मिता भी लोगों के दिलों में उतरती दिखती हैं. वहीं अनूप सोनी, अभिमन्यु सिंह और निकिता दत्ता ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है.
अब आते हैं सीरीज के मुख्य किरदार अमित लोढ़ा और चंदन महतो पर. खाकी में अमित लोढ़ा का रोल करण टैक्कर ने अदा किया है. यकीन मानिए IPS के रोल में ढलने के लिये करण ने किसी तरह की कमी नहीं छोड़ी. स्क्रीन पर करण टैक्कर को देख कर ऐसा लगा कि जैसे हम वाकई रियल अमित लोढ़ा को टीवी पर देख रहे हैं. वहीं चंदन महतो के रोल में अविनाश तिवारी ने काफी बेहतरीन काम किया है. सीरीज में कुल सात एपिसोड है. लेकिन एक भी एपिसोड में आपको अमित लोढ़ा (करण टैक्कर) और चंदन महतो के रोल में (अविनाश तिवारी) ने आपको निराश नहीं किया.
रियल लगते हैं सीन
कई बार होता है कि सीरीज देखते हुए आपको कई सीन्स फेक नजर आते हैं. पर नीरड पांडे की सीरीज इस मामले भी आपको बिल्कुल निराश नहीं होने देगी. बिहार के अपराधी किस तरह गोलियों से भूनकर मासूमों की लाश बिछाते हैं. बिहार के लोग किस तरह बाहर से आए लोगों को अपना बना लेते हैं. पुलिसवाले कैसे चीजों के अभाव में गुजारा करते हैं. एक IPS किस तरह अपनी जान की बाजी लगाकर अपराधी के पीछे भागता है. ये सारी चीजें खाकी में काफी रियल लगती हैं.
क्यों देखनी चाहिये सीरीज?
अमित लोढ़ा की लिखी हुई किताब पर नीरज पाडे ने दर्शकों के सामने फ्रेश और लॉजिकल कहानी पेश की. सीरीज के संवाद, डायलॉग, कलाकारों की एक्टिंग और स्क्रीन प्ले सबकुछ बेहतरीन है. खाकी नेटफ्लिक्स पर आ चुकी है, जिसे आपको देखना चाहिए.
बाकी आप सीरीज देखिये, फिर रिव्यू भी बता दीजिएगा.