scorecardresearch
 

Kisi Ka Bhai Kisi Ki Jaan Review: जबरदस्ती की कहानी, ढीला एक्शन, धीमी रफ्तार, सलमान खान की फिल्म करती है भेजा फ्राई

सलमान खान ने चार सालों एक बाद सिनेमाघरों में वापसी कर ली है. उनकी फिल्म 'किसी का भाई किसी की जान' रिलीज हो चुकी है. भाईजान, उनके भाइयों और लेडी लव की इस कहानी में क्या है खास. क्या वो आपको खुश कर पाएंगे या पकेंगे, जानिए हमारे रिव्यू में.

Advertisement
X
साउथ स्टार वेंकटेश और भाईजान सलमान खान
साउथ स्टार वेंकटेश और भाईजान सलमान खान
फिल्म:किसी का भाई किसी की जान
2/5
  • कलाकार : सलमान खान, पूजा हेगड़े, वेंकटेश, सिद्धार्थ निगम, जस्सी गिल, राघव जुयाल, पलक तिवारी, शहनाज गिल
  • निर्देशक : फरहाद समजी

सलमान खान की फिल्मों का मकसद कुल-मिलाकर एक ही होता है और वो है फैमिली एंटरटेनमेंट. भाई अपने परिवार के करीब हैं और अपने फैंस को उन परिवार के करीब लाना चाहते है. तब वो मसाला के साथ-साथ फैमिली एंटरटेनर फिल्में बनाते है. यही कोशिश उन्होंने एक बार फिर अपनी नई फिल्म 'किसी का भाई किसी की जान' से की है. चार सालों के बाद सलमान खान बड़े पर्दे पर नजर आए हैं. उनके कमबैक से जैसी उम्मीद थी ये फिल्म बिल्कुल वैसी ही है.

Advertisement

फिल्म 'किसी का भाई किसी की जान' एक ऐसे शख्स की कहानी है, जिसका कोई नाम नहीं हैं. उसके भाइयों (राघव जुयाल, सिद्धार्थ निगम, जस्सी गिल) ने उसे बचपन में भाई बुलाना शुरू किया और धीरे-धीरे उसे भाईजान (सलमान खान) कहा जाने लगा. भाईजान दिल्ली की एक बस्ती में रहते हैं. उनके साथ हैं उनके भाई लव, इश्क और मोह. भाई की लाइफ की आइरनी यही है कि वो इन्हीं तीनों चीजों के चलते घर नहीं बसा पाया है.

ये बस्ती भी टिपिकल बॉलीवुड वाला मोहल्ला है, जिसमें चार दुकाने और दो घर हैं. इस छोटे से मोहल्ले में कुछ बेनाम लेकिन मजेदार पड़ोसी भी रहते हैं. लेकिन इस बस्ती पर एक एमएलए (विजेंद्र सिंह) की नजर है, जो जमीन को हथियाकर अपना फायदा करना चाहता था. भाईजान अपने भाइयों के साथ-साथ इस बस्ती का भी ख्याल रखते हैं. ऐसे में एमएलए को भाईजान ही रोकेंगे, क्योंकि वो सिर्फ भाईजान ही नहीं बल्कि सुपरमैन भी है. वो एक हाथ से गाड़ी उठाकर सीधी कर देते हैं. और गुंडों की पिटाई करने से पहले ही उन्हें फ्यूचर भी दिखा देते हैं. भाईजान को किसी का डर नहीं है. बल्कि वो तो दूसरों में खौफ पैदा करने में कोई कमी नहीं छोटे हैं. तभी तो गुंडों को मारने से पहले कहते हैं कि क्यों अपने बूढ़े मां-बाप को अपनी अर्थी उठाने पर मजबूर कर रहे हो.

Advertisement

भाईजान ने अभी तक शादी नहीं की हैं. इस चक्कर में उनके भाई भी कंवारे मर रहे हैं. सबकी अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड्स हैं. लेकिन घर बसाने और भाईजान को दिल की बात बताने में सबको डर लगता है. एक दिन सारे भाई मिलकर भगवान से दुआ मांगते हैं और तुरंत उनकी बस्ती में भाग्या उर्फ भाग्यलक्ष्मी उर्फ बैगी (पूजा हेगड़े) की एंट्री होती है. भाग्या और भाईजान धीरे-धीरे एक दूसरे को पसंद करने लगते है. अब समय आ गया है कि भाग्या, भाईजान को अपने अन्नाया (वेंकटेश) से मिलवाए, यहीं आता है कहानी में ट्विस्ट. भाग्या के अन्नाया बालाकृष्णा गुंडामानेनी के पीछे एक गैंगस्टर पड़ा है. इस गैंगस्टर की बैक स्टोरी आप ना ही जानो तो बेहतर है. तो हां, लॉन्ग स्टोरी शॉर्ट, क्योंकि भाग्या की फैमिली भाई की फैमिली है, इसलिए वो गैंगस्टर की पुंगी बजाने को तैयार हैं.

इस कहानी में बहुत सारे ट्विस्ट एंड टर्न्स हैं. डायलॉग पर डायलॉग आपको सुनने मिलेंगे, जिनमें से मेरा और भाईजान का फेवरेट है- 'सही का होगा सही, गलत का गलत, दुआओं में हैं बड़ा, वंदे मातरम.' ये डायलॉग आपको कई बार फिल्म में सुनने को मिलता है. और वंदे भाईजान के डायलॉग में वंदे मातरम हमेशा उनके आस पास के लोग ही बोलते हैं. अपनी पुरानी फिल्मों के रेफेरेंस भी सलमान खान ने 'किसी का भाई किसी की जान' में दिए है. उन्हें 'मैंने प्यार किया' के अपने पहले प्यार और दोस्ती के उसूल भी याद दिलाए जाते हैं. 

Advertisement

भाग्या, भाईजान को अहिंसावादी मानती है. लेकिन जब भाईजान उसके नाम से खंजर मार-मारकर गुंडों की जान लेते हैं तब उसे पता चलता है कि भाईसाब यहां तो सीन ही अलग है. सिर्फ भाईजान ही नहीं बल्कि उनके लव, इश्क और मोह नाम के भाई भी हाथापाई में आगे हैं. नॉन वायलेंट भाई की बहन भाग्या के होश तो उड़ने ही थे. अरे वो आदमी बहुत कुछ कर सकता है. एक हाथ से जीप उठना, भारी-भरकम डंबल से लोगों के सिर फोड़ना उसके लिए आम बातें हैं.

इस फिल्म का फर्स्ट हाफ ठीकठाक है. लेकिन आपको जोड़कर रखने की शक्ति नहीं रखता. फिल्म के शुरुआती पहले घंटे में ही आपको ढेरों गाने सुना दिए जाते हैं. इसके बीच में भाग्या और भाईजान का रोमांस सहन कर पाना काफी मुश्किल चीज है. फिल्म की कहानी जब दिल्ली से भाग्या के घर हैदराबाद शिफ्ट होती है तो कहानी में साउथ इंडियन ट्विस्ट आता है. यहीं आपको येंतम्मा और बठुकम्मा जैसे गाने सुनने को मिलते हैं. फिल्म का सेकंड हाफ बेहद स्लो है. इंटरवल के बाद ही फिल्म में असली ट्विस्ट आता है. यहीं से दुश्मन और हीरो के बीच लड़ाई होनी है. लेकिन फिल्म की रफ्तार ऐसी धीमी है कि एक्शन सीन्स के दौरान आप बस घर जाकर सोने के बारे में ही सोचते हैं. कम से कम मेरे साथ तो यही हुआ था. थिएटर के दूसरे लोग भी उबासियां ले रहे थे.

Advertisement

फिल्म का विलेन नागेशवर (जगपति बाबू) काफी फालतू बैक स्टोरी लेकर आया है. लेकिन अपनी हरकतों से भाईजान के आंसू जरूर निकाल देता है. एक सीन में तो वो 'गेम ऑफ थ्रोन्स' सीरीज की आर्या स्टार्क भी बन जाता है. बिल्कुल आर्या के स्टाइल में वो भाईजान पर चाकू से वार करता है. अभी तक आपको समझ आ गया होगा कि फिल्म की कहानी में कुछ खास नहीं है. इसके एक्शन सीन्स में काफी दम है, लेकिन फिल्म की रफ्तार उनके असर को हल्का कर देती है. कई बेवकूफियों भरी चीजें आपको इस फिल्म में देखने को मिलेंगी. जैसे गोलियों की बौछार के बीच किरदारों का उन्हीं के सामने भागना. भाईजान और एमएलए का एक दूसरे से दूर खड़े होने के बावजूद एक दूसरे को चैलेंज करना (अरे तुम्हें एक दूसरे की बातें इतनी दूर से सुनाई कैसे दे रही है? बोल तो तुम इतनी धीरे रहे हो!).

फिल्म के गाने आप सुन चुके हैं. इसकी कहानी जो ट्रेलर में थी वही है. कुछ फन पार्ट्स इसमें दिखाए गए हैं, जिन्हें देखकर आपको हंसी आ जाती है. लेकिन उसके आगे ये फिल्म आपको कुछ नहीं देती. एक्टर्स के बारे में क्या कहा जाए. सलमान खान अपने उसी स्वैग के साथ वापस आए हैं. उनका काम अच्छा था. इस फिल्म में आपको एक इमोशनल भाईजान देखने को मिलेंगे. उनके भाई के किरदार में सिद्धार्थ निगम, राघव जुयाल और जस्सी गिल भी ठीक हैं. पूजा हेगड़े का काम कुछ खास नहीं. पलक तिवारी ने अच्छा काम किया है. उनके अलावा शहनाज गिल और विनाली भटनागर भी कुछ खास कमाल नहीं कर पाईं. अगर किसी फीमेल कैरेक्टर में ऐसी दम है तो वो हैं रोहिणी हट्टंगड़ी. उन्होंने अपने छोटे से रोल में कमाल किया है. जगपति बाबू और वेंकटेश की परफॉरमेंस भी अच्छी रही.

Advertisement

डायरेक्टर फरहाद समजी ने इस फिल्म को बनाने का फैसला क्यों किया था पता नहीं. लेकिन उनके डायरेक्शन में बिल्कुल दम नहीं है. सलमान खान चार सालों के बाद बड़े पर्दे पर वापस आए हैं. लेकिन उनकी इस फिल्म में कुछ अलग और खास मजेदार नहीं है. 'किसी का भाई किसी की जान' का थिएटर में रिलीज होना किसी आम फिल्म के रिलीज होने जैसा है. ना इस फिल्म को लेकर आपको खास उत्साह महसूस होता है और ना ही इसे देखने के बाद दिल खुश. आगे आपकी मर्जी.

 

Advertisement
Advertisement