'लाल सिंह चड्ढा' का स्क्रीनप्ले लिखने वाले अतुल कुलकर्णी ने कुछ दिन पहले एक इंटरव्यू में कहा था कि फिल्म की रिलीज के बाद पूरी टीम गर्व से थिएटर्स के बाहर खड़ी होगी और सीना चौड़ा कर कहेगी 'देखो हमने ये फिल्म बनाई है!' अतुल, डायरेक्टर अद्वैत चंदन और पूरी टीम को अब ऐसा करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
आमिर खान, करीना कपूर, मोना सिंह, नागा चैतन्य और मानव विज स्टारर 'लाल सिंह चड्ढा' बहुत लोगों की, बहुत उम्मीदों से कई गुना बेहतर फिल्म है. 2018 में आमिर ने जब अनाउंस किया कि वो दुनिया की सबसे आइकॉनिक और पॉपुलर फिल्मों में से एक 'फॉरेस्ट गम्प' का रीमेक बनाने वाले हैं, तभी से कुछ लोगों को शिकायत हो गई थी कि रीमेक क्यों? कुछ ऑरिजिनल क्यों नहीं?
ऐसे लोगों की शिकायत 'लाल सिंह चड्ढा' पूरी तरह दूर कर देगी. ऑस्कर जीत चुकी हॉलीवुड स्टार टॉम हैंक्स की फिल्म 'फॉरेस्ट गम्प' का भारतीय वर्जन इससे बेहतर शायद नहीं हो सकता था. और जब फिल्म से पहली उम्मीद सिर्फ एंटरटेनमेंट की होती है, तो सबसे ज्यादा जोर उसी पर रखना चाहिए. पिज्जा का चिली पनीर वर्जन अपना कर उसका भारतीयकरण कर डालने वाले हम लोग वैसे भी अपने स्वाद को लेकर क्लियर रहते हैं. उस हिसाब से 'लाल सिंह चड्ढा' में एंटरटेनमेंट और इमोशन का स्वाद भरपूर है.
शिकायत की बात निकली है, तो इसी से बात आगे बढ़ाते हैं... रिलीज से कुछ ही दिनों पहले जिस तरह 'लाल सिंह चड्ढा' के बॉयकॉट की अपील सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने लगी, या फिर लोग फिल्म से अलग-अलग भावनाओं को आहत करने की उम्मीद जताने लगे, फिल्म देखने के बाद आप वो सब भूल जाएंगे.
'लाल सिंह चड्ढा' शुरू होने से पहले एक बहुत लंबा सा डिस्क्लेमर अतुल कुलकर्णी के एकदम सटीक हिंदी उच्चारण में आपको मिलता है. किसी और हिंदी फिल्म में इतना लंबा डिस्क्लेमर याद तो नहीं आता. लेकिन पूरी फिल्म देखने के बाद ऐसा लगता है जैसे ये डिस्क्लेमर, एक समाज के तौर पर हम लोगों की उलझी हुई सोच पर एक व्यंग्य था. क्योंकि फिल्म और आमिर का किरदार वाकई बहुत सुलझा और सादा है.
कहानी
फिल्म शुरू होती है ट्रेन के एक सफर से. इधर सफर शुरू होता है, उधर लाल की कहानी. लाल सिंह चड्ढा (आमिर खान) एक कंडीशन के साथ पैदा होता है जिसकी वजह से उसकी समझ बाकी लोगों से थोड़ी अलग है. समझदारी की लिमिटेड हदों में रहकर गढ़े गए 'सामान्य' से, थोड़ा भी अलग होने पर जैसा कि अक्सर किया जाता है, वैसे ही लाल को भी अधिकतर लोग 'कमजोर' मान कर चलते हैं.
लेकिन उसकी मां (मोना सिंह) उसे बचपन से ट्रेनिंग दे देती है कि वो किसी से कम नहीं है. लाल को बचपन में चलने में भी समस्या रहती है. लेकिन एक दिन वो भागता है. और ऐसा भागता है कि लगता है हवा से तेज दौड़ रहा हो. लाल के बचपन की दोस्त है रूपा.
मां के अलावा लाल को सिर्फ रूपा ने ही प्यार दिया है. लाल की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, वो देश की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का गवाह बनता जाता है. हालांकि, उसकी अपनी समझ में इन घटनाओं का असर वैसा नहीं है, जैसा आपको महसूस होगा. बल्कि इन घटनाओं पर जब लाल रिएक्ट करता है तो आप हैरान हो कर खुद से पूछ बैठते हैं कि क्या सच में जिसे हम समझ कहते हैं, उससे दुनिया का कुछ भला हुआ है?
लेकिन कहानी सिर्फ लाल की नहीं है, रूपा (करीना कपूर) की भी है. लाल के दिल में रहने वाली रूपा के खुद के मन पर जितना वजन है, वो देखकर आपको उसके लिए खराब भी लगेगा और सिम्पथी भी होगी. लेकिन ये किरदार ऐसा है कि अगर आपको रूपा कभी रियल लाइफ में मिले, तो आप उसे शायद बुरी तरह जज करें. या हो सकता है कि आप ऐसा कर भी चुके हों!
फिल्म की एक खासियत ये भी है कि एक सतही समझ में नेगेटिव या ग्रे समझे जाने वाले किरदार को यहां बहुत बेसिक इंसानियत और सिम्पथी के साथ दिखाया गया है. जो शायद आजकल रियल लाइफ में कम होता जा रहा है. ऐसा ही एक कैरेक्टर मानव विज ने निभाया है, जिसे आप थिएटर में ही देखें तो मजा आएगा.
लाल की कहानी में उसे एक और दोस्त भी मिलता है बालराजू बोदी उर्फ बाला. अंडरगारमेंट्स को लेकर बाला सनक की हद तक क्रेजी है. ऐसा क्यों है इसके पीछे भी एक वजह है, जिसे स्क्रीन पर देखकर आपको हंसी भी आएगी.
फिल्म में क्या है खास
'लाल सिंह चड्ढा' की सबसे बड़ी खासियत इसके इमोशंस हैं. ये फिल्म कई जगह पर इतने खूबसूरत और प्यारे मोमेंट से भरी है कि इन्हें देखते हुए आपका दिल बागबाग हो जाएगा. एक ऐसा इंसान जिसे आम तौर पर कम समझ वाला माना जाए, इमोशंस को लेकर उसकी समझ कितनी सटीक और सरल है ये आपको हैरान करता रहेगा. और ये इमोशन सिर्फ स्क्रीन पर ही नहीं दिखते, आपको अपने अंदर भी उमड़ते-घुमड़ते महसूस होंगे. लाल और उसकी मां के सीन हों या फिर लाल और रूपा के, ये आपको अंदर तक हिट करेंगे.
शुरू होने के पहले आधे घंटे के अंदर ही कम से कम दो ऐसे मोमेंट्स हैं जिनपर थिएटर में खूब तालियां बजने वाली है. इनमें से एक शाहरुख खान का कैमियो है जिसे देखकर सीटियों की बौछार और जमकर शोर मचने की गारंटी है. करीना ऑनस्क्रीन कई लव स्टोरीज का हिस्सा रही हैं, जिनमें 'जब वी मेट' जैसी आइकॉनिक फिल्म भी है. मगर 'लाल सिंह चड्ढा' में आमिर के साथ उनकी लव स्टोरी और केमिस्ट्री लोगों को बहुत लम्बे समय तक याद रहेगी.
लाल के किरदार के जरिए फिल्म कुछ बड़ी राजनीतिक घटनाओं को जिस तरह से दिखाती है वो बहुत सेंसिटिव है. इन घटनाओं ने लोगों की सोच, उनकी जिंदगी पर कितना असर किया है ये सोशल मीडिया पर आपको आराम से दिख जाएगा. लेकिन फिल्म का हीरो कोई भी व्यू लेकर नहीं चलता और इन घटनाओं के बीच मौजूद होते हुए भी जैसे अनछुआ रह जाता है.
लाल अपनी इस मासूमियत से दुनिया की हर घटना पर मिनटों के अंदर सोशल मीडिया पर रियेक्ट कर देने की जल्दी में बैठे लोगों पर सवाल खड़ा कर देता है. 'लाल सिंह चड्ढा' में थीम की तरह यूज किए गए गाने 'कहानी' में एक लाइन है जो इस सवाल को शक्ल देती है- 'है, तेरी मेरी समझदारी समझ पाने में, या इसको ना समझना ही समझदारी है?'
एक्टिंग परफॉरमेंस
'लाल सिंह चड्ढा' के ट्रेलर में आमिर खान को देखकर कई लोगों को ऐसा लगा कि वो 2014 में आई अपनी फिल्म 'पीके' जैसी एक्टिंग कर रहे हैं. उन्हें बस एक सलाह है कि फिल्म देखकर तय करें. 'लाल सिंह चड्ढा' एक बार फिर से हमें वो आमिर दिखाती है जिसके परफेक्शन की मिसालें दी जाती हैं.
रोल के हिसाब से शरीर को ढाल लेना, लुक बदल लेना, ये सब एक्टिंग का फिजिकल हिस्सा है और इसमें आमिर बहुत पहले से एक्सपर्ट हैं. लेकिन इस बार इमोशनल सीन्स में आमिर दिखाते हैं कि अपनी क्राफ्ट में वो और बेहतर ही होते जा रहे हैं. फिल्म के अंत में आमिर का एक सीन तो आपको रुला भी सकता है, रुमाल तैयार रखिएगा.
करीना की स्क्रीन प्रेजेंस जितनी बांध के रखने वाली है, उनका काम भी उतना ही जानदार है. रूपा का रोल एक अलग गंभीरता और उदासी चाहता था, जो करीना के काम से बखूबी दिखता है. मोना सिंह हमेशा से अपने छोटे से छोटे काम में बहुत दमदार लगती आई हैं लेकिन 'लाल सिंह चड्ढा' में आखिरकार उन्हें अच्छा स्क्रीन टाइम मिला.
एक डिफरेंटली एबल्ड बच्चे की मां में समाज के आगे उसके लिए खड़ा होने में जो दृढ़ता होती होगी, मोना उसका चेहरा हैं. बाला के रोल में नागा चैतन्य की कास्टिंग और उनका काम दोनों बहुत बेहतरीन हैं. उनकी स्क्रीन प्रेजेंस भी दमदार है. मानव विज के रोल के बारे में बताना स्पॉयलर होगा, मगर ये उनके सबसे बेहतरीन कामों में गिना जाएगा. उनकी आंखें और अपीयरेंस इस रोल को बेहतरीन सूट करता है.
डायरेक्शन, म्यूजिक और सिनेमेटोग्राफी
अद्वैत चंदन ने अपनी डेब्यू फिल्म 'सीक्रेट सुपरस्टार' में ही दिखा दिया था कि इमोशंस पर उनकी पकड़ कितनी टाइट है. 'लाल सिंह चड्ढा' के इमोशन बिल्कुल वहीं जा कर हिट करते हैं जहां पहुंचने चाहिए थे. अद्वैत के काम में लाल की लाइफ के एक इवेंट से दूसरे इवेंट पर जाने की हड़बड़ी नहीं दिखती.
सत्यजीत पांडे की सिनेमेटोग्राफी फिल्म का मजबूत पार्ट है. जहां एक तरफ पंजाब, लद्दाख, दिल्ली और कई लोकेशंस की खूबसूरती बराबर दिखती है, वहीं घर-कमरों के सीन्स में भी लाल के कैरेक्टर की तरह फ्रेम्स में एक ईजी स्पेस रहता है. कारगिल युद्ध के सीक्वेंस में एक इमोशनल सीन के बीच आमिर के चेहरे पर जिस एंगल से कैमरा टिका है वो ध्यान खींचता है.
तनुज टिकू के म्यूजिक स्कोर के बिना 'लाल सिंह चड्ढा' की बात भी नहीं की जा सकती. स्कोर में एक मिठास है और ये कहीं भी सीन के इमोशन को बढ़ा नहीं रहा बल्कि उसके साथ एक परफेक्ट सिंक में है. प्रीतम के कम्पोज किए हुए गाने पहले ही खूब वायरल हो चुके हैं, लेकिन फिल्म देखते हुए तो 'कहानी' गाने का फील ही बहुत अलग है. इसका सोनू निगम वर्जन फिल्म के अंत में आता है और वो भी उतना ही प्यारा है जितना मोहन कन्नन का गाया वर्जन.
आमिर-करीना के लव स्टोरी पर प्रीतम की धुनें, अमिताभ भट्टाचार्य के लिरिक्स, सोनू निगम और अरिजीत सिंह की आवाज एक जादू सा तैयार कर देते हैं जिसमें फिल्म देखते हुए आप पूरी तरह खोए रहते हैं.
कमियां
'लाल सिंह चड्ढा' में एक्टर्स की उम्र को डिजिटली घटाने पर जो काम हुआ है, उसमें कहीं-कहीं थोड़ी कमी लगती है. VFX वाले सीन्स में थोड़ी और सफाई होनी चाहिए थी. जैसे- दिल्ली में आमिर के कॉलेज वाले सीन में जब वो भागते हैं तो VFX थोड़ा ज्यादा विजिबल लगता है. कुछेक जगह ऐसा लगा जैसे कॉमेडी या लाइट मोमेंट दिखाने की कोशिश हुई, मगर वो निकलकर नहीं आया. इंटरवल के बाद सेकंड हाफ में फिल्म थोड़ी सी खिंची हुई लगती है.
कुल मिलाकर 'लाल सिंह चड्ढा' एक ऐसी प्यार भरी फिल्म है जिसकी इस समय बहुत जरूरत है. इसे न देखने के 101 कारण आपको सोशल मीडिया पर आराम से मिल जाएंगे, लेकिन फिल्म देखने के बाद ये यकीन से कहा जा सकता है कि इसमें से एक भी कारण वैलिड नहीं है. बल्कि 'लाल सिंह चड्ढा' ट्रेडमार्क आमिर स्टाइल में एक एक्सपीरियंस है जिसका असली मजा थिएटर में है. वरना बाद में आप जब भी इसे टीवी या ओटीटी पर देखेंगे, तो बड़ी स्क्रीन पर ना देखने का अफसोस जरूर होगा.