हमारे देश में कई ऐसे महान पुरुष हुए हैं, जिन्होंने अपनी बुद्धि और दृढ़ निश्चय से देश को आगे बढ़ाया है. ऐसे ही एक महापुरुष थे अटल बिहारी वाजपेयी. देश के 10वें प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में जितना काम किया है, उससे कई अधिक मेहनत अपनी जिंदगी में की थी. बचपन से लेकर जवानी और फिर बुढ़ापे तक उन्होंने देश के उद्धार की कामना की, देश को ही आगे रखा. हर मोड़ पर कोशिशें कीं और काफी हद तक सफल भी रहे. अटल सिर्फ एक प्रधानमंत्री, राजनेता और और राजनीति से जुड़े इंसान नहीं थे, बल्कि एक कवि, पत्रकार और जेंटलमैन भी थे.
अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी पर बनी फिल्म
पंकज त्रिपाठी, डायरेक्टर रवि जाधव के साथ मिलकर उन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक लेकर आए हैं. बड़े पर्दे पर आज, 19 जनवरी को रिलीज हुई इस फिल्म का नाम है- 'मैं अटल हूं'. ये फिल्म अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी के अलग-अलग और अहम पहलुओं को दर्शाती है. फिल्म की कहानी की शुरुआत साल 1999 से होती है, जहां प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी (पंकज त्रिपाठी), पाकिस्तान की हरकतों को लेकर तीनों सैन्य दलों के प्रमुखों से बात कर रहे हैं. कहानी आगे बढ़ती है और आप अटल जी के बचपन में पहुंच जाते हैं, जहां वो बच्चों और शिक्षकों के सामने कविता पढ़ने से डर रहे हैं. धीरे-धीरे अटल बड़े हुए और उनकी जिंदगी ने नए मोड़ लेने शुरू किए. इसी तरह उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत भी हुई.
'मैं अटल हूं' फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी के बचपन से लेकर उनके कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाने और परमाणु बम के पोखरण में हुए टेस्ट तक की कहानी को दिखाया गया है. इससे आपको जानने को मिलेगा कि अटल बिहारी वाजपेयी कैसे इंसान थे. उनके लिए जिंदगी और देश के मायने क्या थे. कैसे वो कविताओं के माध्यम से अपने मन की बाहर लोगों तक पहुंचाते थे. एक कवि, एक छात्र, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य के रूप में उन्होंने कैसी जिंदगी जी, इसकी झलक भी ये फिल्म आपको देती है.
अब सवाल ये है कि अटल बिहारी वाजपेयी की लंबी और बड़ी जिंदगी को दिखाने में ये फिल्म कामयाबी रही या नहीं? तो मेरे हिसाब से इसका जवाब होगा- नहीं. फिल्म में कई अहम पहलुओं जैसे- अटल जी के कॉलेज के दिन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में उनका योगदान, राष्ट्र धर्म पत्रिका के लिए उनका काम, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपध्याय संग उनके अच्छे रिश्ते, अखिल भारतीय जनसंघ का निर्माण, पंडित नेहरू संग उनकी मुलाकात, राम मंदिर विवाद और कारगिल युद्ध को ये फिल्म छूकर गुजरती है. लेकिन फिल्म में कोई ऐसा पल नहीं है, जो आपके मन में ठहरता है.
कैसा है पंकज त्रिपाठी का काम?
फिल्म 'मैं अटल हूं' का ट्रेलर अगर आपने देखा हो तो पंकज त्रिपाठी के अभिनय पर जरूर ध्यान दिया होगा. पंकज त्रिपाठी बॉलीवुड के इस वक्त के सबसे बेहतरीन कलाकारों में से एक हैं, लेकिन यहां उनका काम थोड़ा फीका लगा. वो अटल बिहारी वाजपेयी के किरदार को निभाने में उतने सफल नहीं हो पाए, जितनी की उम्मीद उनके कैलिबर वाले एक्टर से की जाती है. फिर भी कुछ सीन्स में वो अपनी आंखों से कमाल कर जाते हैं.
फिल्म में पंकज त्रिपाठी के अलावा पीयूष मिश्रा, एकता कौल, दया शंकर पांडे, प्रमोद पाठक, पायल नायर, राजा रमेशकुमार सेवक संग कई एक्टर्स ने अहम किरदारों को निभाया है. सभी अपने निभाए जा रहे किरदार के लुक से मेल खाते हैं, लेकिन कुछेक को छोड़कर किसी का काम बहुत कमाल का नहीं है. फिल्म में होने वाली डायलॉगबाजी थोड़ी अटपटी है. हिंदी में लिखे गए संवाद को सफलता से डिलीवर पंकज त्रिपाठी ही कर पाए हैं. बाकी एक्टर्स के लिए ये मुश्किल हो रहा था और वो फिल्म देखते हुए समझ आता है. बहुत ही नाटकीय अंदाज में किरदार बात करते दिखते हैं. ये देखना थोड़ा अटपटा लगता है.
ये भी है दिक्कत
डायरेक्टर रवि जाधव के कंधों पर अटल बिहारी वाजपेयी जैसे महान व्यक्ति की कहानी सुनाने का जिम्मा था. उन्होंने इसके लिए अपनी पूरी कोशिश भी की. उनकी कोशिश और रिसर्च पर्दे पर काफी हद तक नजर भी आती है. बस वो उतनी असरदार नहीं है जितनी होनी चाहिए थी. फिल्म में रफ्तार की काफी दिक्कत है. इसका पहला हाफ आपको काफी बोर करता है. दूसरे हाफ में मूवी रफ्तार पकड़ती है लेकिन फिर एक-एक सीन करके इसे दौड़ा ही दिया जाता है. कहानी के बहुत कम हिस्से को अच्छे से एक्सप्लोर किया गया है. डायरेक्टर के प्रयास इसमें दिखते हैं, लेकिन जैसा कि मैंने बताया असर कम है. फिल्म के गाने अच्छे हैं. बैकग्राउंड स्कोर भी ठीक है. इसकी सिनेमेटोग्राफी भी बहुत खास नहीं है.