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Sirf Ek Banda Kafi Hai Review: मामूली वकील और हाई प्रोफाइल केस, बेहद दमदार है मनोज बाजपेयी का ये कोर्टरूम ड्रामा

'द फैमिली मेन' के श्रीकांत तिवारी अब पीसी सोलंकी के रूप में धमाल मचा रहे हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं मनोज बाजपेयी की ताजा फिल्म 'सिर्फ एक बंदा काफी है' के बारे में.

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Sirf Ek Banda Kafi Hai Review
Sirf Ek Banda Kafi Hai Review
फिल्म:ड्रामा, एक्शन
3/5
  • कलाकार : मनोज बाजपेयी, अदिति सिन्हा
  • निर्देशक :अपूर्व सिंह कार्की

'द फैमिली मेन' के श्रीकांत तिवारी अब पीसी सोलंकी के रूप में धमाल मचा रहे हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं मनोज बाजपेयी की ताजा फिल्म 'सिर्फ एक बंदा काफी है' के बारे में. पीसी सोलंकी के नाम से ही साफ हो जाता है कि ये कहानी कबकी है और किसके बारे में है, हालांकि इस फिल्म में किसी भी किरदार का नाम साफ रूम से नहीं लिया गया है. तो आइए जानते हैं दमदार कहानी के बारे में.

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दिलचस्प है कहानी 

कहानी दिल्ली के एक थाने से शुरू होती है जहां एक नाबालिग लड़की किसी धर्म के प्रचार करने वाले बाबा के खिलाफ रेप का आरोप लगाती है और यह बाबा कोई छोटे-मोटे बाबा नहीं बल्कि अच्छी खासी जनता के दिलों में राज करने वाले बाबा होते हैं. धीरे-धीरे कहानी दिल्ली से राजस्थान की तरफ शिफ्ट हो जाती है और कहानी में एंट्री होती है पीसी सोलंकी यानी कि मनोज बाजपेयी की.

मनोज बाजपेयी नाम ही काफी है

मनोज बाजपेयी तो वैसे सिर्फ नाम ही काफी है लेकिन फिल्म देखने के बाद हर बंदा मनोज बाजपेयी का फैन तो फिर से हो ही जाएगा. पीसी सोलंकी के किरदार को जिस बखूबी के साथ मनोज बाजपेयी ने निभाया है वह बहुत ही काबिले तारीफ है. खैर फिल्म की पूरी कहानी बहुत ही इमोशनल और एक ऐसे मुद्दे को उठाती है जिस मुद्दे के साथ हम हर रोज और हर पल जी रहे हैं. यह कहानी है उस 5 साल लंबी लड़ाई की जो एक नाबालिग लड़की एक बहुत ही शक्तिशाली बाबा के खिलाफ लड़ती है. ना जाने कितने गवाह कितने लोगों की इस केस में जान भी चली जाती है लेकिन पीसी सोलंकी यहां पर वह वकील है जो बहुत सारी Threat calls और जानलेवा हमलों के बाद भी इस केस का साथ नहीं छोड़ते हैं और अदिति सिन्हा यानि नू को न्याय दिलाने में लगे रहते हैं. 

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फिल्म में साफ दिखाई देता है कि कैसे जब किसी धर्म से जुड़े व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो मानो आफत सी आ जाती है. क्योंकि वो सीधे जनता के दिल में जगह बना चुका होता है और इस सब की आड़ में ही वो कुकर्म करता चला जाता है. लेकिन लोगों ने आज अंधविश्वास की ऐसी पट्टी बांध रखी है कि उन्हें सारे सबूतों के बाद किसी बात पर यकीन नहीं होता. धर्म एक ऐसी चीज है जो इंसान से कुछ भी करवा सकती है. लोग अंधविश्वास के कारण भूल जाते हैं कि क्या सही है और क्या गलत. 

स्टोरी में कहां रह गई कमी 

फिल्म पर लौटें तो दो घंटे की इस फिल्म को थोड़ा और लंबा किया जा सकता था. क्योंकि दो घंटे में कैसे कोई 5 सालों का सार बता सकता है. खैर इस एक कमी के अलावा पूरी फिल्म बहुत दमदार है और इसका सेट भी काफी रियलिस्टिक लगता है. फिल्म में उस मामूली वकील का दर्द भी झलकता है जो हाई प्रोफाइल केस में होने कारण अपनी फैमिली की जान जोखिम में डालता है. रेप केस के आरोपी बाबा के वकील एड़ी चोटी का दम लगा देते हैं. यहां तक कि देश के सबसे ऊंचे वकील बाबा को बेल दिलाने की कोशिश करते हैं लेकिन वे हर बार इसके फेल हो जाते हैं. चूंकि बाबा की साइड के वकील धर्म के नाम पर केस लड़ते हैं तो आखिर में पीसी सोलंकी भी धर्म का ही हवाला देकर इतना तगड़ा ज्ञान देते है कि कोर्टरूम में मौजूद लोगों के कान खड़े के खड़े रह जाते हैं. लेकिन अंत में केस का जजमेंट ही कहानी के साथ न्याय करता है. 

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