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Film Review: वाह भई 'मस्तराम'

नया डायरेक्टर, नया कॉन्सेप्ट इन दिनों बॉलीवुड का फंडा है. ऐसे ही नए डायरेक्टर हैं अखिलेश जायसवाल. वे इरॉटिक राइटर मस्तारम का काल्पनिक जीवन लेकर आए हैं. उनकी फिल्म मस्तराम का रिव्यू:

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फिल्‍म मस्‍तराम का पोस्‍टर
फिल्‍म मस्‍तराम का पोस्‍टर

स्टारः 3.5 स्टार
कलाकारः राहुल बग्गा और तारा अलिशा बेरी
डायरेक्टरः अखिलेश जायसवाल
बजटः 2 करोड़ रु. (प्रोडक्शन लागत)
नए डायरेक्टर और उनके नए कॉन्सेप्ट्स ने बॉलीवुड को एकदम अनूठी फिल्में देने का जैसे बीड़ा उठा लिया है. फिल्म के राइटर-डायरेक्टर अखिलेश जायसवाल ने 1980-90 के दशक के इरॉटिक राइटर मस्तराम की काल्पनिक जिंदगी को बड़े ही बेहतरीन ढंग से पेश करने की कोशिश की है. फिल्म में हर वह चीज है जो इसे देखने लायक बनाती है: बेहतरीन कहानी और इरॉटिक कॉन्टेंट का छौंक. वैसे भी मस्तराम उत्तर भारत का सबसे ज्यादा लोकप्रिय और छिपकर पढ़ा जाने वाला लेखक हो सकता है. जिसके प्रतिबंधित संसार में सबकुछ संभव है.

यह उस दौर की हकीकत है, जिस समय मनोरंजन के साथ रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर बिकने वाली पीली पन्नी की किताबें ही हुआ करती थीं. उस दौर के किशोरों का इरॉटिक दुनिया से वास्ता मस्तराम के जरिए ही पड़ता था. अखिलेश जायसवाल ने बड़ी सेंसिबिलिटी के साथ काल्पनिक कहानी के जरिये हकीकत को पेश किया है.

कहानी में कितना दम
राजाराम (राहुल बग्गा) बैंक में क्लर्क नौकरी करता है लेकिन उसकी हसरत लेखक बनने की है. लेकिन ठंडे किस्म के उपन्यास लिखने की वजह से प्रकाशक उसे छापते नहीं हैं. फिर एक प्रकाशक राजाराम को सलाह देता है कि छपना और बिकना है तो इनमें मसाला डालना होगा. काफी सोच-विचार के बाद राजाराम को मसाला मिलता है और वह भी मस्त वाला. तो वह बन जाता है मस्तराम. उसके बाद तो पड़ोस की आंटी, भाभी और काम वाली सभी उसकी कहानियों की पात्र बनती जाती है, मस्तराम की लोकप्रियता बढ़ती जाती है. फिल्म एक लेखक की दुविधा और समाज के दोमुंहेपन की बेहतरीन तस्वीर पेश करती है. कहानी बांधे रखती है, कहीं-कहीं बोल्डनेस थोड़ी ज्यादा हो जाती है लेकिन कहानी की दरकार है, वैसे भी फिल्म को ए सर्टिफिकेट मिला है तो ज्यादा दिक्कत है नहीं.

स्टार अपील

राहुल बग्गा कमाल हैं. उनके राजाराम से मस्तराम बनने का सफर मजेदार है और एक लेखक के छपने की पीड़ा को बयान करता है, जो राहुल ने परदे पर बखूबी उतारी है. वह राजाराम से लेकर मस्तराम तक के किरदार में एकदम फिट बैठे हैं. तारा ने भी राजाराम की बीवी का किरदार अच्छा निभाया है. लेकिन फिल्म की कहानी और डायरेक्टशन लाजवाब हैं, जिनकी वजह से सभी सहयोगी कलाकार भी फिल्म में जमते हैं.

कमाई की बात
फिल्म की प्रोडक्शन लागत दो करोड़ रुपये बताई जाती है. अभी तक कम बजट वाली इरॉटिक फिल्मों का अच्छा रिकॉर्ड रहा है. चाहे वह लव सेक्स और धोखा हो या रागिनी एमएमएस या फिर बी.ए. पास, इन फिल्मों ने दर्शकों को खींचा है. फिर मस्तराम तो हिंदी पट्टी का पोर्न “स्टार” राइटर रहा है. उम्मीद तो बनती है और फिल्म का कम बजट होना की यूएसपी सिद्ध हो सकती है.

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