फिल्म रिव्यूः चल गुरु हो जा शुरू
एक्टरः हेमंत पांडे, ब्रजेंद काला, ब्रजेश हीरजी, संजय मिश्रा, चंद्रचूड़ सिंह, टीकू तलसानिया
डायरेक्टरः मनोज शर्मा
ड्यूरेशनः 1 घंटा 56 मिनट
रेटिंगः आधा स्टार
सर्टिफिकेटः यू
फिल्म 'चल गुरु हो जा शुरु' देश के तमाम ढोंगी बाबाओं की पोल खोलने का दावा करती है. मगर इसे देखते हुए सबसे पहले आपके धैर्य की पोल खुलती है. अगर आपको लगता है कि आप किसी भी चाट फिल्म को झेल सकते हैं तो इसे देखकर नए सिरे से अपने धैर्य का इम्तहान लीजिए. फिल्म में इधर इंडस्ट्री की रवायत की तर्ज पर कई अच्छे एक्टर्स को कमजोर और अतार्किक कहानी के झोल में बर्बाद किया गया है. इसमें कहीं-कहीं फूहड़ डायलॉग भी हैं और आखिर में एक महानैतिक मगर अंसभव सा अंत भी.
'चल गुरु हो जा शुरू' देश के तमाम विवादित बाबाओं के किरदार से अपनी आत्मा, शरीर और ऊर्जा हासिल करती है. सबसे ज्यादा साम्य रेप के आरोप में जेल में बंद आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं से नजर आता है. इसके अलावा निर्मल बाबा समेत तमाम दूसरे शूरवीर भी झलक मारते हैं केंद्रीय किरदार हरिया बाबा में. फिल्म की कहानी कुछ यूं है कि हरिया और बिरजू दो स्ट्रगलिंग एक्टर हैं. दर दर की ठोकर खाने के बाद एक बाबा से प्रेरित हो वह धर्म की दुकान खोल लेते हैं और ये चल निकलती है. पैसा और प्रभाव आता है तो इन बाबाओं की अय्याशियों को एक ठौर-ठिकाना मिल जाता है. फिर आखिर में इनका भंडाफोड़ होता है और सबको ज्ञान की रौशनी में नहला दिया जाता है.
फिल्म की नीयत अच्छी थी. देश को वाकई इस तरह की फिल्मों की जरूरत है, जो अंधविश्वासों में घिर ढोंगी बाबाओँ की जयकारा लगाने वाले, उन्हें अपना सर्वस्व सौंपने वाले और उनकी हित रक्षा के लिए कुछ भी कर गुजरने वालों की आंख खोल सके. मगर फिल्म सबसे पहले एक फिल्म है. उसकी कहानी मजबूत होनी चाहिए, कचरे का कॉकटेल नहीं. उसके संवाद चुटीले होने चाहिए. उसमें एक्टर्स की मंझी हुई एक्टिंग होनी चाहिए. मगर 'चल गुरु हो जा शुरू' इसमें से एक भी खाने पर टिक नहीं लगाती है.
हरिया बाबा के लीड रोल में हेमंत पांडे हों या उनके सहयोगी बाबा के रूप में ब्रजेश हीरजी. सब के सब नौटंकी की तर्ज पर तेज हावभाव और आवाज में संवाद अदायगी करते और अपने ही जोक्स पर लहालोट होते नजर आते हैं. बाबा के सहयोगी बिरजू महाराज के रोल में ब्रजेंद्र काला जरूर एक बार फिर अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाते नजर आते हैं. बाकी सब एक्टर्स खानापूर्ति करते हैं. फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर हो या सेट्स या फिर सिनेमैटोग्राफी, सब की सब सतही है. डायरेक्टर मनोज शर्मा इस फिल्म में बेतरह निराश करते हैं. इस फिल्म को बहुत कम स्क्रीन मिली हैं. ऐसे में उम्मीद है कि ज्यादा दर्शक इसकी मार से पीड़ित नहीं होंगे. आधा स्टार उस पोल खोल की सोच के लिए, जो महज 10 फीसदी ही असलियत पा सकी.