फिल्म: फिल्मिस्तान (filmistaan)
एक्टर – शारिब हाशमी, इनामुल हक, कुमुद मिश्रा, गोपाल दत्त
डायरेक्टर – नितिन कक्कड़
ड्यूरेशन- 112 मिनट
रेटिंग- 5 में 4 स्टार
फिल्मों के दीवाने इस देश में 2012 का नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीतने वाली फिल्म फिल्मिस्तान को अब जाकर थिएटर नसीब हुए हैं. नितिन कक्कड़ की इस फिल्म ने कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं. और फिल्म देखने के बाद यकीन पुख्ता होता है कि फिल्मिस्तान वाकई इस कदर तारीफ की हकदार है.
एक लड़का है. सनी अरोड़ा नाम है उसका. फिल्में उसकी रगों में कतरा बन दौड़ती हैं खून की जगह. उसका चलना, उठना, बैठना, बोलना सब कुछ बिलात फिल्मी है. सनी मुंबई पहुंचता है हीरो बनने के लिए. मगर यहां उसके हाथ लगता है रिजेक्शन पर रिजेक्शन. फिर पापी पेट की खातिर वह एक विदेशी यूनिट का हिस्सा बन जाता है. उसके जिम्मे काम आता है असिस्टेंट डायरेक्टर का. फिल्मों के जानकार जानते हैं कि इस पदवी का सिर्फ नाम ही वजनी है, बाकि काम स्पॉट बॉय सरीखे करने पड़ते हैं. कैमरा ढोने से लेकर वैनिटी वैन से स्टार्स को बुलाने और उन्हें डायलॉग याद कराने सरीखे काम. बहरहाल, सनी इस विदेशी यूनिट के साथ राजस्थान के सीमा से लगे इलाके में शूटिंग को पहुंचता है. यहां पाकिस्तानी आतंकवादी हमला करते हैं. उनकी योजना विदेशियों को बंधक बना अपनी मांगे मंगवाने की थी. मगर अंधेरे की गफलत में वह कैमरे समेत सनी को उठा लाते हैं.
यहां से शुरू होता है सनी का दूसरा सफर. जिस घर में उसे बंधक बनाकर रखा गया है, वह आफताब का है. आफताब भारतीय फिल्मों की पाइरेटेड सीडी बेच पेट पालता है और सनी की तरह ही फिल्मों का जबरदस्त दीवाना है. दोनों की जोड़ी जमती है और उधर सनी को बंधक बनाने वाले आतंकवादी महमूद और जव्वाद उसका किडनैपिंग वीडियो बना भारतीयों पर दबाव बनाने की तैयारी में जुट जाते हैं.
इस दौरान सनी का न सिर्फ आफताब, बल्कि महमूद, जव्वाद और उस सीमावर्ती गांव वालों के साथ भी एक आत्मीय रिश्ता जुड़ने लगता है. हिंदी फिल्मों की मशहूरियत सरहदों के फासले को बेमानी साबित करने लगती है. मगर सिर्फ इतने से ही तो जिंदगी नहीं कट सकती न. सबके अपने अपने मकसद हैं. आफताब को फिल्में बनानी हैं, सनी को वापस लौटना है. जव्वाद को अपना जेहाद पाना है तो महमूद को मिशन पूरा करना है. क्या सनी अपने मुल्क वापस लौट पाएगा. इस काम में उसकी कौन मदद करेगा. पाकिस्तान में उसे किस तरह के ऐहसास हासिल होंगे, इसी की कहानी है फिल्मिस्तान.
फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह फिल्मों के बारे में बात करते हुए भी बहुत शोर पैदा नहीं करती. क्या पुराने क्या नए सभी एक्टर्स की मिमिक्री होती है, फिल्मों के प्रसंग का जिक्र होता है, अनिवार्य हो चला क्रिकेट मैच भी आता है, मगर सब कुछ सुरमयी और सरल रहता है. फिल्म उस दर्शन को नए सिरे से आबाद करती है कि दोनों मुल्क एक ही संस्कृति और सरोकार की जमीन पर खड़े हैं और धर्म या राष्ट्रवाद की कथित दीवार उनके बीच फासला पैदा नहीं कर सकती.
फिल्म में सनी के रोल में शारिब हाशमी ने कमाल का काम किया है. बिल्कुल भोंदू सा दिखता बंदा कैमरा देखते ही चौकन्ना चीता बन जाता है और अपनी हरकतें दिखाने लगता है. आफताब के रोल में इनामउल हक ने भी खूब काम किया है. सीडी बेचने वाले के अरमान भी होरी बनने के हो सकते हैं. बॉलीवुड के मुकाबले लॉलीवुड (पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री) को खड़ा करने के मंसूबे पाले आफताब कभी दयनीय तो कभी दोस्ती के भाव खूब दिखाता है. आतंकवादियों के सरगना बने कुमुद मिश्रा को पहली मर्तबा एक ग्रे शेड वाले रोल में देखा. उन्होंने अपनी इंसानियत के पानी को जब तब उलीचा, मगर आखिरी में मिशन की पत्थर सी कठोरता को चेहरे पर पसारे अपने काम को अंजाम दिया. जव्वाद के रोल में गोपाल दत्त नजर आए. उन्हें इससे पहले हमने कॉमिक शेड वाले रोल में ही देखा था. मगर यहां पैसों के फेर में जवानी गंवा जेहाद की कैद में फंसे युवा आतंकवादी के रोल में वह पूरा न्याय करते हैं अपने रोल के साथ. कहना न होगा कि फिल्म की कास्टिंग बहुत प्रभावी है.
भारत-पाकिस्तान की फिल्मों की टोन या तो बहुत तीखी होती है या फिर जबरन दोस्ती कराने के आडंबर में लिपटी. मगर फिल्मिस्तान इन दोनों से ही खुद को तसल्लीबख्श ढंग से मुक्त रखती है. डायरेक्टर राइटर नितिन कक्कड़ ने फिल्म में कहीं भी अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी. तनाव, हंसी और संवेदनशीलता के धागों को थामे उनकी सिलाई लगातार जटिल लेकिन मनोहर क्राफ्ट बुनती रहती है. फिल्म की लोकेशन और बैकग्राउंड म्यूजिक भी इसकी प्रामाणिकता को मजबूत करने का काम करता है.
इस फिल्म को जरूर देखा जाना चाहिए. फिल्म का अंत खुले सिरे की तरह है. जिन्ना और नेहरू की आवाज दर्शकों को भी इतिहास के उस दोराहे पर ला खड़ा करती है, जहां एक लकीर ने एक मुल्क को दो दुश्मनों में तब्दील कर दिया. उस रास्ते पर गड़े मील के पत्थरों को नए सिरे से पहचानने का नाम है फिल्मिस्तान.