देश के हर दूसरे घर की नमक. अचार और फलों से सजी डाइनिंग टेबल पर ये सीन दोहराया जाता है. नीतू पूछती है कैसा बना है, संजू बोलता है...हमममम क्या. नीतू बोलती है खाना और क्या. संजू जवाब देता है, नमक कम है...ये आउटकम सुनते ही नीतू के चेहरे की चमक कम हो जाती है और संजू, बेचारा अपराधियों सी खामोशी फिर ओढ़ लेता है.यह ट्रैजिक सीन जब दूसरों के साथ घटता है, तो सबको हंसी आती है...
हंसी जिसका दावा राजकुमार गुप्ता अपनी फिल्म घनचक्कर में करते हैं. टाइटल से ही. फर्स्ट हाफ में फिल्म खूब हंसाती भी है. मगर सेकंड हाफ में नमक कुछ कम हो जाता है. ऐसा लगता है कि सीन की देगची चढ़ाकर डायरेक्टर अल्ताफ राजा के आइटम सॉन्ग में मसरूफ हो गए और एडिटर आरती बजाज भी गुम हो गईं.
नतीजतन फिल्म लंबी हो गई. पब्लिक इस दौरान अपने व्हाट्सएप और फेसबुक के अपडेट चेक कर सकती है. मगर क्लाइमेक्स एक बार फिर फिल्म का टेस्ट दुरुस्त करता है. अगर तब तक बहुत देर न हो गई हो. सब्र के इंतजार की तो.
घनचक्कर जिसे राजकुमार पहले रपचिक रोमांस के नाम से बनाना चाह रहे थे कई हिस्सों में रपचिक है. इसे अपनी चिक चिक से मजेदार बनाते हैं संजय आत्रे यानी इमरान हाशमी, नीतू यानी विद्या बालन और इन दोनों पर एक्टिंग के मामले में सवा शेर साबित हुए दो शेर राजेश शर्मा उर्फ पंडित और नमित दास उर्फ इदरीस. फिल्म देखने जाएं तो फर्स्ट हाफ में आंख पर्दे पर टिकाए रखें और सेकंड हाफ में अगल बगल बैठे लोगों के अजूबा एक्सप्रेशन पर. पॉपकॉर्न लेकर आराम से लौटें और क्लाइमेक्स जरूर देखें. अगर नहीं देखने जाते, तो कोई बात नहीं. कुछ ही महीनों में फिल्म ब्रेक से भरे शिड्यूल में टीवी पर दिखेगी, तब घर में टांगें पसारकर भी देख सकते हैं. मिस करेंगे तो लंका नहीं लग जाएगी आपके एफके की. एफके यानी फिल्मी नॉलेज.
तो क्या है कहानी का हिसाब किताब
कहानी सुनने को आप बेताब हैं, हम भी देखने को थे. मगर उससे पहले सरप्राइज एलिमेंट की बात कर लेते हैं. फिल्म में अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र और उत्पल दत्त ने शानदार गेस्ट अपीयरेंस दिया है. जब ये तीनों होते हैं, तो फिल्म बेतरह हंसाती है. तीनों जाते हैं एक बैंक लूटने. और वहां गार्ड के साथ, पुलिस वालों के साथ और आपस में जो बातचीत करते हैं, वह उसी तरह की हंसीन याद भरती है, जैसी जाने भी दो यारों के महाभारत मंचन के दौरान हुई थी. चौंकिए मत फिल्म में ये तीनों सुपर एक्टर नहीं हैं. दरअसल बैंक लूट के दौरान सीसीटीवी की पकड़ से बचने के लिए संजू, पंडित और इदरीस ये मुखौटे लगाते हैं.
इस दौरान डायलॉग इनके सुनाई देते हैं और चेहरे नजर आते हैं धरम-गरम, एंग्री यंगमैन और हैरान परेशान उत्पल दा के. यहां पर डायरेक्टर राजकुमार की कल्पनाशीलता उम्मीद जगाती है. उम्मीद जो आगे इतनी खिंचती है कि टूटने में ही अपनी जान बचा पाती है. संजू और नीतू लव डवी कपल हैं. नीतू फैशन मैगजींस की मारी है और उसे देख पढ़ के ऐसे भयानक मिडल क्लास फैशन करती है कि लगता है कि जैसे कपड़ों की दुकान पर सेल चल रही थी, इसलिए सब रंग लाद दिए गए. उन्होंने तय कर रखा है कि अब संजू गलत काम नहीं करेगा. संजू का गलत काम है तिजोरी खोलना.
मगर फिर आता है पंडित का फोन और लालची मन हमेशा की तरह तय करता है, कि बस ये आखिरी बार है. रात के मुसाफिर बैंक लूटते हैं और पइसा संजू को दे दिया जाता है. क्योंकि वह ग्रहस्थी वाला समझदार बालक जो है. फिर तीन महीने बाद जब ये तिकड़ी मिलती है, तो झोल शुरू हो जाता है क्योंकि संजू का दावा है कि एक्सिडेंट में उसकी याददाश्त चली गई. अब मुसीबत ये है कि संजू को उस सूटकेस की याद नहीं, जिसमें पैसे भरे थे. इसके बाद प्यार, दुत्कार, धमकी और मनुहार का दौर शुरू होता है. जिसके बीच इमरान के ट्रेडमार्क किसिंग सेशन, विद्या का डर्टी पिक्चर की याद दिलाता रेट्रो सेक्सी अवतार और पंडित के रावणनुमा शकल के सीरियस से पल में कॉमिक होते चेहरे नजर आते रहते हैं. क्लाइमेक्स में कई विकेट गिरते हैं. संजू मैच जीतता है, मगर ट्रॉफी लेने की सुध नहीं रख पाता. समझदार के लिए इतने संकेत काफी हैं.
चमकते हुए पलों का हिसाब
- फिल्म का पहला गाना लेजी लैड सैंया आता है कास्टिंग के ब्यौरों के दौरान. बचपन की याद दिलाती लकीरें कुछ कार्टून नुमा लाइन बनाती हैं. झगड़ा, पप्पी झप्पी के बीच कुछ मियां बीवी सीक्वेंस चलते हैं और फिल्म शुरू हो जाती है. गाने के बोल पत्नियों को राहत देंगे, जो पतियों को वीकएंड पर झोला थमाते हुए भी खीझी रहती हैं, उनके सुस्त रवैये पर. और पतियों को आहत करेंगे कि ससुरा एक छु्टटी मिलती है, उसमें भी रामू काका बना दिया.
- जब भी संजू खाना खाता है, मां का फोन आता है. बेटा खाना खाया, उस चुड़ैल ने कुछ बनाया या आज फिर से बाहर से मंगा दिया. ये हर उस मां की शाश्वत अमर चिंता है, जिसका बेटा मां से दूर बहू के साथ गुजर कर रहा है.
- एक भाई साहब हैं. तोंद से भरे, सब्जी से लदे. रात में विरार फास्ट लोकल ट्रेन पकड़ते हैं. हर बार इदरीस से टकराते हैं और बैंगन-गाजर देकर जान बचाते हैं. जब भी पर्दे पर आते हैं हंसाते हैं.
- ये बात पुरुषों को कभी समझ नहीं आई कि दिन के अंत में उनकी पत्नियां बेड पर बैठकर मॉश्चराइजर क्यों पोतती हैं. क्यों लोशन ले लेकर कभी गाल तो कभी पैर पर बाबा रामदेव नुमा योगाभ्यास करती रहती हैं. संजू भी यही समझने की कोशिश करता हुआ दिखता है. ऐसे ही कई घरेलू सीन हैं, जो घर की याद दिलाते हैं.
- विद्या के फैशनेबल कपड़े. ये कपड़े आपको बस में, मेट्रो में या सड़क पर जब तब नजर आते रहते होंगे, और मां कसम जब भी दिखते हैं नजर बंध जाती है. लगता है जैसे फैशन की बेमेल दुकान सजी जा रही हो.
तो फिर फिल्म के स्टार क्यों कटे
जो विद्या के पंखे हैं, उनके ये पढ़कर कंडेसर फुंक जाएंगे. मगर यही सच है यारा. विद्या बोर करती हैं. वही कहानी और डर्टी पिक्चर का मिला जुला भाव. राजकुमार गुप्ता ने उनका वजन बढ़वाया कि पंजाबी भाभी जी लगें, मगर सिर्फ वजन से क्या. जबान तो अक्सर आयातित ही लगती है. जब इन सबसे काम नहीं चलता तो एक घिसा पिटा सीन डाल दिया जाता है. नीतू नाइट ड्रेस में, क्लीवेज नजर आती और पंडित इदरीस उसे घूरते.
इमरान हाशमी कहीं से भी खोई याददाश्त वाले बालक नहीं लगते. ऐसा लगता है कि उनका पेट गुड़गुड़ कर रहा है, पर बीवी को बता नहीं पा रहे और परेशानी में मरे जा रहे हैं. फिर उनकी जब तब जो ठुकाई पिटाई होती है, उसके बाद भी चेहरे के रंग नहीं बदलते. सिर्फ एक चोट का निशान आ जाता है. एक्टिंग तो की है राजेश शर्मा ने. उनकी सिनेमा में जोरदार एंट्री भी राजकुमार की पिछली फिल्म नो वन किल्ड जेसिका के इंस्पेक्टर के रूप में हुई थी. फिर लव शव ते चिकन खुराना के बकवास मत कर टीटू में उन्होंने अपना नाम काम रजिस्टर करवाया. यहां भी वे दांत फाड़ मुस्कान से मोहित करते हैं. इदरीस बने नमित दास एवरेज से कुछ ऊपर रहे हैं. बस यही समझ नहीं आता कि मासूम सा ये चेहरा अपनी रिवॉल्वर जिसे वह छोटा चेतन कहता है, कभी दाग भी सकता है. इसी फेर में वह जब संजू की पिटाई करता है, तो यह समझ से परे लगती है.
इस कुलजमा कमजोर एक्टिंग के अलावा सेकंड हाफ में बेतरह खिंचती स्क्रिप्ट ने भी सितारे डुबाने में योगदान दिया है. आरती बजाज की एडीटिंग पर यहां सवालिया निशान उठते हैं. नीतू पर शक के लिए संजू के यार उत्तम की एंट्री हो या सूटकेस खोजने के लिए कभी बैंक तो कभी बगीचे में मशक्कत करते हीरो, सब जबरन के लगते हैं.
अब सुना भी दीजिए फाइनल वर्डिक्ट
कुछ बरस पहले राजकुमार गुप्ता से मुलाकात हुई थी. सीधे सच्चे डायरेक्टर से. उन्होंने बड़ी मार्के की बात कही थी. मैं वो नहीं बनाऊंगा, जिसकी पब्लिक मुझसे उम्मीद करने लगे. आमिर बनाने के बाद वैसे ही कोई थ्रिलर बनाता, तो जनता कहती, ओ हां ये फिल्म, ये तो वो बना ही लेता है.इसी दर्शन ने उन्हें नो वन किल्ड जेसिका के बाद कॉमेडी की तरफ मोड़ा. मगर इस बार वह नई उम्मीदें नहीं जगा पाए. फिल्म कॉमेडी और क्राइम सस्पेंस का बेमजा कॉकटेल बन गई है. कुछ पैच ठीक हैं, मगर इतने नहीं कि पूरी फिल्म का पेच दुरुस्त कर पाएं. फिल्म देखिए अगर इमरान, विद्या के फैन हैं और घर की डेली महाभारत के योद्धा हैं. नहीं भी देखेंगे तो ज्यादा नुकसान नहीं होगा. घरेलू महाभारत में टीवी भी तो होता है न. उस पर देख लीजिएगा आराम से सब्जी वगैरह लाने के बाद, कम नमक के खाने के साथ.