रेटिंगः 3 स्टार
डायरेक्टरः सनी देओल
कलाकारः सनी देओल, टिस्का चोपड़ा, सोहा अली खान, ओम पुरी और नरेंद्र झा
बात 1990 की है. यह उदारीकरण की दुनिया में कदम रखने से पहले का साल था और दुनिया बहुत ही धीमी रफ्तार से चला करती थी. बाजारीकरण से बहुत दूर हुआ करती थी और इमोशंस दिल में दौड़ा करते थे. यह वह दौर था जब एक इनसान का कानून के हाथों चोट खाना बॉलीवुड का पसंदीदा विषय हुआ करता था, और इसे सिनेमाघरों में खूब जगह मिलती थी और बॉक्स ऑफिस पर कमाई भी खूब होती थी. इसी साल जब अजय मेहरा ने घायल से दस्तक दी तो युवाओं से लेकर इमोशन में डूबे परिवारों तक ने सिनेमाघर तक दौड़ लगाई और फिल्म उस साल की बेस्ट फिल्मों की फेहरिस्त में आ गई और सनी देओल ने अपनी एक्टिंग से बल्ले-बल्ले कर दी. यह वह दौर था जब पाइरेसी अपने शबाब पर नहीं थी और इंटरनेट ने हमारे जीवन में दस्तक नहीं दी थी.
आज 26 साल बाद पूरी दुनिया ही बदल चुकी है. आज समाज से लड़ने वाले हीरो अलग तरह के हो गए हैं. लार्जर दैन लाइफ हीरो स्क्रीन से कम होते जा रहे हैं और हमारे सरोकार भी पहले से बदल गए हैं. बेशक सिनेमा भी बदला है लेकिन सनी देओल की 'घायल वंस अगेन' आज भी उसी तेवरों और कहानी वाली फिल्म है जो 1980 या 1990 के दशक में आया करती थीं. बस उसे ताजा रंग देने के लिए युवाओं से जुड़ी चीजें डालने की कोशिश की है. सनी देओल ने ईमानदारी से ऐसा सिनेमा बनाने की कोशिश की है जिसमें बुराई और अच्छाई की लड़ाई है. लेकिन यही बात घायल में भी थी. दर्शक घायल से आगे की चीज चाहते थे जो फिल्म में मिस है.
कहानी में कितना दम
फिल्म की कहानी घायल से ही शुरू होती है और यह अच्छा कनेक्शन पॉइंट है कि फिल्म को सीक्वल बनाकर पीछे से शुरू किया जाता है. अब अजय मेहरा (सनी देओल) पत्रकार बन चुका है और समाज की बुराइयों पर परदा उठाना उसका काम है. इस बार बलवंत राय जैसा खलनायक नरेंद्र झा है जिसकी शहर पर हुकूमत चलती है. लेकिन एक दिन एक अपराध होता है और चार युवा उसके चश्मदीद बन जाते हैं. फिर उनके जीवन पर संकट के बादल छा जाते हैं. फिर सनी देओल एक बार फिर से अपने पुराने अवतार में आ जाते हैं और बदमाशों को छठी का दूध याद दिलाने लगते हैं. कहानी में थोड़ी कसावट और होती और सनी के पास घायल जैसे डायलॉग और होते तो कमाल तय था. वैसे सनी जहां भी थोड़े से गर्म होते हैं फिल्म में मजा आता है.
स्टार अपील
सनी देओल फिल्म में अजय मेहरा के तौर पर लौटे हैं लेकिन वह इमोशनल सीन्स में जमते नहीं हैं. जिस तरह के इमोशंस उन्होंने घायल में दिखाए थे वैसे इस बार मिसिंग है. उनको एक्शन करते देखना मजेदार लगता है. ऐसा एक्शन सिर्फ वही कर सकते हैं. फिल्म में खलनायक के तौर पर नरेंद्र झा जमते हैं और मजा भी दिलाते हैं. सोहा, टिस्का और बाकी सब ठीक है. चार युवाओं ने फिल्म में पूरी मेहनत करने की कोशिश की है.
कमाई की बात
सनी देओल की फिल्म है और उनके चाहने वालों की कोई कमी नहीं है. सनी देओल के चाहने वालों के लिए यह किसी ट्रीट से कम नहीं है. फिर उन्हें एक्शन अवतार में देखने वालों के लिए तो मजेदार है ही. लेकिन घायल से तुलना की तो जायका वहीं बिगड़ जाएगा. ठीक-ठाक एक्शन फिल्म के तौर पर घायल वंस अगेन निराश नहीं करती है. फिल्म को काफी टाइट भी रखा गया है. सिंगल स्क्रीन के लिए परफेक्ट.