फिल्म: मिस टनकपुर हाजिर हो
डायरेक्टर: विनोद कापड़ी
स्टार कास्ट: ओम पुरी, अन्नू कपूर, रवि किशन ,हृषिता भट्ट, राहुल बग्गा, संजय मिश्रा , कमलेश गिल
अवधि: 135 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 3 स्टार
डायरेक्टर विनोद कापड़ी ने 20 साल से भी ज्यादा समय तक पत्रकार रहे हैं. इस दौरान उन्होंने 100 से भी ज्यादा डॉक्युमेंट्री फिल्में बनाई हैं. इनमें से एक फिल्म को इसी साल नेशनल अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है. अब विनोद सच्ची घटना पर आधारित फीचर फिल्म 'मिस टनकपुर हाजिर हो' लेकर आए हैं.
हिंदी फिल्मों में जानवरों का इस्तेमाल बहुत पहले से चलता चला आ रहा है. जैसे 'मैंने प्यार किया' का हैंडसम कबूतर, 'सनम बेवफा' का घोड़ा सुल्तान और 'कुली' में अमिताभ का बाज 'अल्ला रखा'. कुछ साल पहले साउथ के डायरेक्टर एस एस राजमौली ने एक पूरी फिल्म 'मक्खी' के ऊपर बना दी थी. इस बार भैंस और उसे किरदार बना एक सामाजिक मुद्दे पर व्यंग्य के रूप में बनायी गई है फिल्म 'मिस टनकपुर हाजिर हो.'
कहानी
यह हरियाणा के एक गांव 'टनकपुर' की कहानी है, जिसका प्रधान सुआलाल (अन्नू कपूर) है. 'खाप' से मिली ताकत के दम पर सुआलाल का पूरे टनकपुर में सिक्का चलता है. वह वहां के पुलिस प्रशासन के साथ साथ जमीन के नियमों को भी अपने हिसाब से चलाता है. उसकी पत्नी माया (हृषिता भट्ट) उससे कम उम्र की, सीधी साधी और बड़े सपने देखने वाली महिला है. माया को उसके हमउम्र अर्जुन (राहुल बग्गा) से प्यार हो जाता है और जानकारी पाते ही सुआलाल अपने मित्रों के साथ अर्जुन को प्रताड़ित करना शुरू कर देता है. बात यहां तक पहुंच जाती है कि अर्जुन पर टनकपुर की सबसे अच्छी भैंस से रेप करने का भी इल्जाम लगाया जाता है. फिर कहानी में कई मोड़ आते हैं जो आप फिल्म में ही देखें तो बेहतर है.
स्क्रिप्ट और एक्टिंग
डायरेक्टर विनोद कापड़ी ने राजस्थान की एक घटना को जहन में रखते हुए यह फिल्म बनाई है. इस तरह की अनोखी घटनाएं सुनने में भी आती हैं. फिल्म में सुआलाल का किरदार निभा रहे अन्नू कपूर ने उम्दा एक्टिंग की है. पंडित के रूप में संजय मिश्रा, भीमा बने रवि किशन और पुलिस वाले के किरदार में ओम पुरी ने अपने अपने अभिनय को शत प्रतिशत निभाया है. अपने आप में यह एक अनोखी कहानी है और इस तरह के विषय को अपनी पहली ही फिल्म में उठाकर विनोद कापड़ी ने आंखें खोलने का काम किया है. फिल्म के संवाद कई बार आपको हंसने पर मजबूर करते हैं.
क्यों देखें
अगर जमीनी हकीकत को जांचना-परखना चाहते हैं, यह समझना चाहते हैं कि अपने देश में ऐसा भी होता है और राजनीतिक व्यंग्य का आनंद उठाना चाहते हैं तो इस फिल्म को जरूर देखें.
क्यों न देखें
अगर आप सामाजिक मुद्दों पर बनी हुई फिल्म से और देश के गांव में चल रही गतिविधियों से इत्तेफाक नहीं रखते तो इसे न देखें.