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Film Review: 'मिस टनकपुर हाजिर हो' मजबूत विषय, कमजोर ट्रीटमेंट

'मिस टनकपुर हाजिर हो' आज रिलीज हो गई है. फिल्म भैंस के साथ बलात्कार को लेकर बनाई गई है. जानें कैसी है फिल्म.

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'Miss Tanakpur Hazir ho'  poster
'Miss Tanakpur Hazir ho' poster

रेटिंगः 2 स्टार
कलाकारः ओम पुरी, अन्नू कपूर, ऋषिता भट्ट, रवि किशन, संजय मिश्रा और राहुल बग्गा&
डायरेक्टरः विनोद कापड़ी

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सेक्स में अधूरेपन का एहसास. बीवी के सामने कमजोरी. प्रभावशाली शख्स की दबंगियत. कमजोरियों की पोटली को लेकर घूमते शख्स का हताशा में उठाया गया कदम. अंधविश्वास की गहरी जड़ें. खाप पंचायतों की तानाशाही. इंडिया को भारत दिखाने की कवायद. ऐसी है विनोद कापड़ी की पहली फिल्म 'मिस टनकपुर हाजिर हो' . वह  टीवी के पत्रकार रहे हैं तो ऐसे में उन्होंने किसी न्यूज चैनल पर एक दिन में आने वाले सभी मसाले जैसे राजनीति, अंधविश्वास और अपराध को मिलाकर 'मिस टनकपुर हाजिर हो' बना डाली या कहें टीवी पर दस मिनट में 100 खबरों की तर्ज पर बनाई गई फिल्म है 'मिस टनकपुर हाजिर हो' . ऐसी खबरें जो आपको दस मिनट में सारी जानकारी से लैस करने की कोशिश करती हैं.

कहानी में कितना दम
एक गांव है जिसका एक प्रधान अन्नू कपूर है. ऋषिता भट्ट उसकी बीवी है, जो उससे उम्र में काफी छोटी है. संबंधों में सूखापन है. ऋषिता के जीवन की सूखी धरती को भिगोने का काम करता है राहुल बग्गा. वह उससे प्रेम की पींगें भरता है और दोनों एक दिन धरे जाते हैं. यही दबंग प्रधान बेकाबू हो जाते हैं. वह 'मिस टनकपुर' रही फेमस भैंस से बलात्कार का आरोप राहुल पर लगा देते हैं. बस, इसके बाद कोर्ट कचहरी और पंचायतबाजी शुरू हो जाती है. इस तरह से विनोद भारतीय ग्रामीण समाज की कई विसंगतियों और बातों को दिखाने की कोशिश करते हैं. माहौल और उससे जुड़ी चीजें दिखाने के चक्कर में कहानी खिंच जाती है और कई मोर्चों पर दौड़ने लगती है.

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स्टार अपील
फिल्म में बॉलीवुड के एक्टरों को लिया गया है जो किन्हीं मायनों में स्टार नहीं हैं. अन्नू कपूर काम पिपासु और काइयां प्रधान के किरदार में जमे हैं. ओम पुरी (पुलिस अधिकारी), संजय मिश्रा (पंडित). हृषिता भट्ट (प्रधान की बीवी) और राहुल बग्गा (मस्तराम फेम) भी ठीक-ठाक हैं. कैरेक्टर्स और माहौल के मुताबिक सब ने बेहतरीन कोशिश की है.

कमाई की बात
विनोद कापड़ी की यह फिल्म लो बजट है. फिल्म का संगीत प्रभावी नहीं है. फिल्म सच्ची घटना को लेकर बनाई गई है लेकिन विनोद का डायरेक्शन में पहली बार आना फिल्म में झलकता है. इसमें कोई दो राय नहीं कि विनोद ने अच्छी कहानी उठाई, अच्छे किरदार लिए लेकिन कमजोर पटकथा, डबल मीनिंग डायलॉग और कसावट की कमी ने मजा किरकिरा किया है. यह अच्छे इरादे से गंभीर विषय पर बनाई गई ढीली फिल्म है.

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