फिल्म रिव्यूः क्रीचर 3डी
एक्टरः बिपाशा बसु, इमरान अब्बास नकवी
डायरेक्टरः विक्रम भट्ट
ड्यूरेशनः 2 घंटा 14 मिनट
रेटिंगः 5 में आधा स्टार
क्रीचर 3डी देखने के बाद आप होमो सैपिएंस नहीं रहेंगे. एक नए क्रीचर बन जाएंगे. आइए एक कहानी से समझते हैं कि ऐसा क्यों होगा.
मुंबई से एक लड़की जैसा दिखने की भरपूर कोशिश करती औरत अहाना हिमाचल प्रदेश आई है. उसने जंगल के बीच एक बुटीक होटल खोला है. पापा को होटल दिखा रही है. मगर ये क्या. पापा गायब हो जाते हैं. खैर, क्रिसमस पर होटल की बोहनी होनी है. पार्टी के लिए जिस ट्रक पर चंडीगढ़ से सरदार जी ने माल भेजा है. वह जंगल में खराब हो जाता है. एक छिपकली मानव उस पर हमला कर देता है. इंटरवल के बाद एक बाल की दुकान प्रोफेसर बताते हैं कि यह ब्रह्म राक्षस है. और इंटरवल तक ये गंदा लिजलिजा क्रीचर एक एक कर हमला करता रहता है. इन सबके बीच अहाना एक गिटारधारी नौजवान से प्यार भी करती हैं. खौफनाक हमलों से ब्रेक देने के लिए ये कुणाल नाम्ना नौजवान गिटार पर गाने भी गाता है. और इन्हें सुनते ही केलि क्रीड़ा को व्याकुल बिपाशा बसु राज के दिनों की याद दिलाती, होंठ फड़काती उसकी तरफ लपकती हैं. डायरेक्टर भट्ट एक्शन चिल्लाते हैं और रात के डर पर चुम्मी की रौशन गर्माहट पसर जाती है.
खैर, किस मिस करते हैं. आगे बढ़ते हैं. कुणाल के दोस्तों ने एक तेंदुए को मार दिया है. क्योंकि जंगल विभाग वाले बोल रहे थे कि कोई जानवर है जो आहना के होटल के आसपास हमला कर रहा है. पर फिर ये छिपकली मानव आहना पर भी हमला कर देता है. मार-भाग, फिसल-निकल चलता है और फिर आधुनिक ओझा यानी प्रोफेसर आ जाते हैं. समझाते हैं कि ये भटकी हुई आत्माएं हैं. हर खून के साथ इनका शरीर मजबूत हो रहा है. ये पीपल पर रहती हैं. लाल धागे से बंधी रहती हैं. डर और अंधविश्वास की दुकान खोली जाती है. पत्तों की राख से गोली की पूजा होती है. मगर आखिर में सब टांय टांय फिस्स. मगर नहीं. आहना नहीं जाएगी. फिर यहां पर एक कटिया और डाल दी जाती है कहानी में करंट लाने के लिए. और आखिर में तमाम कुर्बानियां और हबड़ तबड़ के बाद ब्रह्म राक्षस का नाश होता है.
ये कहानी तो सिर्फ ट्रेलर है. असली टॉर्चर तो क्रीचर 3डी देखने के बाद ही आएगा. और उसके बाद आप आम इंसान नहीं रह जाएंगे. फिल्म में बिपाशा बसु के चेहरे पर दुखी मन मेरे जैसे भाव नजर आते हैं. कुणाल का रोल करने वाले इमरान अब्बास नकवी को देखकर कान में सुरीली सीटी गूंजती है, मुंह तो बंद कर लो अंकल. फिल्म की बाकी स्टार कास्ट भी प्रभावी नहीं है. हनीमून मनाते कपल की हरकतें देखकर लगता है कि 100 बरस पुराने महा नौटंकीमय पारसी थिएटर को फिर शुरू कर देना चाहिए.
फिल्म में गाने हैं, जो ऑडियो में औसत और वीडियो में फूहड़ लग सकते हैं. और ये गाने फिल्म को हॉरर कॉमेडी से रोमैंटिक ट्रैक पर क्रीचर की तरह घसीटने की लिजलिजी कोशिश करते रहते हैं. विक्रम भट्ट ने भारतीय जनता को महामूर्ख समझकर एक बेहद कमजोर कहानी को अपने पुराने मसालों के साथ पेश किया है. फिल्म के थ्रीडी इफेक्ट्स भी कुछ खास नहीं हैं. अगर आपने यह फिल्म देखी, तो टिकट खिड़की पर गंवाए पैसे आपको अगले शुक्रवार तक डराएंगे. आधा स्टार, फिल्म क्रीचर की पूरी टीम की बहादुरी के लिए. आखिर घटिया फिल्म बनाने में भी दिन महीने साल तो खर्च होते ही हैं.