कई फिल्में ऐसी होती हैं, जिन्हें बनाने के लिए बना लिया जाता है. देसी कट्टे भी कुछ इसी तरह की फिल्म है. फिल्म देखने पर सिर्फ ऐसा लगता है कि कई हिंदी फिल्मों का मसाला जोड़कर फिल्म बना ली गई है. लेकिन फिर भी कहानी नहीं बन पाती है. कहानी में न तो दम है और न ही कोई नयापन ही. स्टारकास्ट के मामले में भी फिल्म कोई बड़ा अट्रेक्शन नहीं हैं. सुनील शेट्टी लंबे समय बाद बड़े परदे पर नजर आ रहे हैं.
फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के कानपुर की है, जहां बचपन के दो दोस्त जय भानुशाली और अखिल को कानपुर में अपराध की दुनिया में काफी आगे जाना है. वे डॉन आशुतोष राणा के संपर्क में आते हैं. फिर सुनील शेट्टी की एंट्री होती है, जो उन्हें शूटिंग चैंपियन बनाने के लिए मेहनत करता है. यहां अच्छाई और बुराई का आगाज होता है. बस इसके बाद दो दोस्तों की राहें जुदा हो जाती हैं. ऐसा बॉलीवुड की कई फिल्मों में देखा जा चुका है. और इस तरह की दोस्ती या कहें ब्रोमांस की झलक कुछ समय पहले गुंडे में भी देखी गई थी.
ऐक्टिंग के डिपार्टमेंट में भी फिल्म के पास कोई खास जमा पूंजी है नहीं. जय भानुशाली की यह दूसरी फिल्म है. हेट स्टोरी-2 में वे आए थे, लेकिन उसमें सारा काम सुरवीन चावला का था. इसमें काफी सारा काम जय भानुशाली के पास था, फिर भी वे कुछ चमत्कार नहीं कर सके. कमजोर कहानी और इस तरह के रोल में वे मिस फिट नजर आते हैं. अखिल कपूर को अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है. सुनील शेट्टी की ऐक्टिंग वैसी ही है, जैसी हमेशा होती है. आशुतोष राणा ही एकमात्र ऐसे ऐक्टर हैं जो कुछ अपील करते हैं, और जिनकी ऐक्टिंग अच्छी लगती है.
फिल्म किसी भी मोर्चे पर मजबूत नहीं है. फिल्म में हीरोइनों के नाम पर साशा आगा और टिया वाजपेयी हैं. यह समझ नहीं आता कि साशा की कौन-सी मजबूरी थी कि उन्होंने औरंगजेब के साथ करियर शुरू करने के बाद इस तरह की कमजोर फिल्म चुनी. कहानी और बाकी सब बातों की तरह फिल्म का म्यूजिक भी बहुत ही कमजोर है.
फिल्म को लेकर कोई खास उम्मीद नहीं है. वैसे भी इस हफ्ते छोटी फिल्मों की लंबी कतार है. इस तरह की कमजोर फिल्में आने से अगले हफ्ते आ रहीं बैंग बैंग और हैदर के लिए माहौल अच्छा ही बनने वाला है.