scorecardresearch
 

Movie Review: जानें कैसी है फिल्म 'वॉर छोड़ न यार'

एक कर्नल खान हैं. सस्ती मेंहदी के शिकार. कत्थई दाढ़ी और उसी रंगत के बाल. बेचारे स्पीक टु मी को ऐसे बोलते हैं कि लगता है कि सफीक टमीम बोल रहे हैं.

Advertisement
X
फिल्म वार छोड़ न यार का पोस्टर
फिल्म वार छोड़ न यार का पोस्टर

फिल्म- वॉर छोड़ न यार
डायरेक्टर- फराज हैदर
एक्टर- शरमन जोशी, सोहा अली खान, जावेद जाफरी, संजय मिश्रा, दिलीप ताहिल, मनोज पाहवा
ड्यूरेशन- 1 घंटा 59 मिनट
स्टार- 5 में 3

Advertisement

एक कर्नल खान हैं. सस्ती मेंहदी के शिकार. कत्थई दाढ़ी और उसी रंगत के बाल. बेचारे स्पीक टु मी को ऐसे बोलते हैं कि लगता है कि सफीक टमीम बोल रहे हैं. अपनी सरकार यानी पाकिस्तान से परेशान हैं कि खाने को देते हैं दाल गोश्त, मगर उसमें न दाल होती है, न गोश्त. उनका कैप्टन है कुरैशी, जिसे सीमा पार के जवानों से अंताक्षरी खेलने का शौक है. उसके वजीर हैं, जो बस चीन से हथियार और अमेरिका से डॉलर चाहते हैं. एक जनरल है, जो लड़ाई के नाम पर बस वीडियो गेम में धांय धांय करता है.

पढ़ें: फिल्म 'फटा पोस्टर निकला हीरो' का रिव्यू

अब सीमा पार करते हैं. यहां सब कुछ नॉर्मल है. मगर...एक नेता जी हैं. जिन्हें हथियार लॉबी से कट भी चाहिए और देश के सामने चौधरी बनने का मौका भी.उधर मीडिया है, जिसे एक न फटे बम को भी स्क्रीन पर बार बार फटा दिखाने में और उस उन्माद से अपना अस्तित्व बचाने में ही सुख मिलता है.मगर आखिरी में हंसी हारती नहीं है. दोनों मुल्कों को समझ में आता है कि लड़ने में किसी का फायदा नहीं. पाकिस्तान का तो कतई नहीं.

Advertisement

पढ़ें: फिल्म 'द लंच बॉक्स' का रिव्यू

फिल्म वॉर छोड़ न यार इस प्लॉट पर गुदगुदी कहानी गढ़ती है.फिल्म में जबरन हंसाने की कोशिश नहीं है. सब कुछ सिचुएशनल है. मगर खिलखिलाहट है कि रुकने का नाम ही नहीं लेती.डायलॉग मस्त हैं. लेकिन फिर हिंदी फिल्मों की महान परंपरा की तरह रोमैंस और उसके खिलने के लिए यूरिया का काम करते गाने आते हैं. इस दौरान सिनेमा हॉल में स्मार्ट फोन की रौशनी के जुगनू चमकने लगते हैं. इस हिस्से को छोड़ दें, तो वॉर छोड़ न यार फिट्टम फिट कॉमेडी है. मजा आता है इसके साथ हंसने में आखिरी तक.

कहानी ये है कि भारतीय नेता (दिलीप ताहिल) और उनके पाकिस्तानी भाई चाहते हैं कि सीमा पर तनाव बढ़े. नेता जी पहुंच जाते हैं सीमा पर एडवांस में अपनी पिक्चर बनवाने और हौसला बढ़ाने. साथ में जाती हैं रिपोर्टर रूप दत्ता (सोहा अली खान). मंत्री जी लौट जाते हैं, रूप का पत्रकार कीडा़ उनको असल रिपोर्टिंग के लिए वहीं रोक लेता है. मेहमाननवाजी के लिए हाजिर हैं कैप्टन राणा (शरमन जोशी). रूप चाहती हैं तनाव समझना, मगर यहां तो उसका इलाज मिलता है. दूसरी तरफ कैप्टन कुरैशी (जावेद जाफरी) और उनकी पलटन है. अमेरिकी कच्छे बने. मगर उम्दा खाने और हथियारों को तरसती. दोनों तरफ सब प्यार मुहब्बत से चल रहा है, तब तक, जब तक ऊपर के लोगों को जंग की जरूरत नहीं लगती. फिर हंसी के बीच धमाके शुरू होते हैं, मगर आखिरी में सबको सच समझ आ जाता है.

Advertisement

फिल्म में शरमन जोशी हीरो हैं और सोहा हीरोइन. मगर इनका काम एवरेज ही है. धुंआधार काम किया है कर्नल खान बने संजय मिश्रा ने. जावेद जाफरी भी संजीदा दिखे हैं. भारी आवाज और बिगड़े उच्चारण में.सीमा पार अंताक्षरी वाले सीन में भी जावेद ने खूब भाव दिखाए. दिलीप ताहिल को तीन अलग अलग रूपों में दिखाना यही बताता है कि हर तरफ हुक्मरान एक ही मोटी चमड़ी के बने होते हैं.

फिल्म में कॉमेडी के लिए सहज ढंग से मौके तलाश लिए गए हैं और सब कुछ नए तर्ज पर है. पंजाबी में मशीन के सहारे बोलता चाईनीज इसका एक नमूना है. रोमैंस की जरूरत क्यों लगी डायरेक्टर फराज को ये वही जानें. अब ये कोई जरूरी तो नहीं कि लड़का-लड़की मिलें, तो प्यार पनपे ही.दोस्ती भी कोई चीज है जनाब. बहरहाल, फिल्मी दबाव रहा होगा शायद. मगर आप कोई प्रेशर न लें.गानों का खौफ भी न पालें. क्योंकि वे इतने अझेल नहीं हैं. और उनके आगे-पीछे हंसी के पंच बैग तो हैं ही. फिल्म वॉर छोड़ न यार बड़े दावे नहीं करती. मगर एक औसत सी कहानी को बहुत आरामदेह ढंग से बयान करती है. परिवार के साथ जाएं और दो घंटे हंसकर लौटें.

Advertisement
Advertisement