फिल्म रिव्यूः वन बाई टू
एक्टरः अभय देओल, प्रीति देसाई, रति अग्रिनहोत्री, लिलिट दुबे, दर्शन जरीवाला
डायरेक्टरः देविका भगत
ड्यूरेशनः 2 घंटे 19 मिनट
स्टारः 5 में से 1.5
शुक्रवार को हर कोई पूछता है. कौन सी फिल्म देखी. कैसी है. मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ. मैंने ही पूछ लिया कि पूछा नहीं. तो पूछा सबने. मैंने बताया. वन बाई टू देखी. अब सुनिए क्या जवाब मिले. ये कौन सी फिल्म है. इंग्लिश फिल्मों का भी रिव्यू करने लगे क्या...तो साहिबान पेश ए खिदमत है अभय देओल और प्रीति देसाई की फिल्म वन बाई टू का रिव्यू, जिसके बारे में पब्लिक बज पोंपों यानी बहुत कम है. और फिल्म देखने के बाद मुझे यकीन है कि इसे जल्द ही अच्छी फिल्मों के साथ मुफ्त मिलने वाली डीवीडी की लिस्ट में शुमार कर दिया जाएगा.
वन बाई टू देविका भगत की फिल्म है. अब तक वह स्क्रीनप्ले औऱ कहानी लिखती थीं. शुरुआत बेहद शानदार थी उनकी, फिल्म ‘मनोरमा सिक्स फीट अंडर’ से. इसे ज्यादातर लोगों ने डीवीडी पर ही देखा, मगर फिर जमकर सराहा. उसके बाद देविका के खाते में आईं ‘आयशा’, ‘जब तक है जान’ जैसी कुछ फिल्में. इस लिस्ट को देखकर उम्मीद थी कि वन बाई टू आम मसाला फिल्मों की तरह नहीं होगी. कुछ फंडू होगी. मगर 90 फीसदी निराशा हाथ लगी. फिल्म में सिर्फ एक ही चीज हटकर है. कहानी सुनाने का पैटर्न, जो तयशुदा ढांचा तोड़ता है. अरसे बाद एक ऐसी फिल्म देखी, जिसमें हीरो हीरोइन को मिलाने की हड़बड़ाहट नहीं है. लेकिन इसके अलावा यह फिल्म तमाम गुंजाइशों से भरी, फिर भी बहुत आधी अधूरी सी लगती है.
ये कहानी है दो नौजवानों की, अमित शर्मा और समारा पटेल. अमित मुंबई का है. एक सॉफ्टवेयर प्रफेशनल है. कॉलेज के दिनों में हर कूल नौजवान की तरह गिटार बजाकर गर्लफ्रेंड को खुश करता था. अब बोरिंग जिंदगी जी रहा है, जिसमें गम भी जुड़ गया है क्योंकि उसकी गर्लफ्रेंड देविका डिच कर गई है. मतलब बुद्ध के दर्शन ‘जीवन में दुख है’ के लिए पूरी वजह है उनके पास. दूसरी ओर समारा है, कमाल की डांसर है. अपनी शराब पीने की लत की शिकार मां के साथ रहती है. लंदन में पली बढ़ी है, इसलिए हिंदी भी इंग्लिश लहजे में बोलती है.उसका एक ही सपना है. नाच की दुनिया में नाम कमाना. दोनों की जिंदगी के मकसद एक धुंध में घिरे हैं, जो आखिर में साफ होते हैं. इस दौरान दोनों जाने अनजाने एक दूसरे की लाइन काटते हैं और आखिरी में मिलन का चौराहा आता है.
ये दो कन्फ्यूज लोग हैं. इनके कुछ दोस्त हैं. कुछ निजी मुश्किलें हैं. जिनसे बहुत आहिस्ता आहिस्ता जूझते हैं. इतने सुस्त ढंग से कि फिल्म बैठ सी जाती है. चूंकि बालक गिटार बजाता है और नायिका डांस करती है इसलिए गानों और नाच के लिए संभावनाओं के द्वार खुले रहते हैं. और हंसी का कोटा पूरा करने के लिए टट्टी, पाद जैसे शब्दों का इस्तेमाल है.
अभय देओल पूरी फिल्म में किरदार निभाने के फेर में सुस्त और बोरिंग से लगे हैं. राम जाने उन्होंने ये फिल्म एक्ट और प्रॉड्यूस करने के लिए क्यों चुनी. उनकी गर्लफ्रेंड बताई जा रही ब्रिटिश इंडियन एक्ट्रेस प्रीति देसाई बहुत अच्छी डांसर हैं. बस इतना ही. आगे आप कम लिखे को ज्यादा समझें. साइड एक्टर्स में सिसिका या एसीपी मामा जैसे कुछ दिलचस्प किरदार हैं, मगर वे अपने दम पर फिल्म नहीं खींच सकते.
फिल्म के कुछ गाने सुरीले हैं, मगर वेस्ट से हुए लगते हैं. मसलन, शंकर महादेवन का गाया ‘खुशफहमियां’ और अरिजित सिंह का गाया ‘खुदा न खास्ता’. इन्हें ऑडियो पर जरूर सुनें. आय एम जस्ट पकाओड डेल्ही बेली के जा चुड़ैल की तर्ज पर बना और शूट हुआ है. काबूम भी जबरन ठूंस दिया गया है.
वन बाई टू देख सकते हैं, अगर सुस्त फिल्में देखने से परहेज नहीं है. अगर खाए पीए अघाए लोगों के उस दर्शन में रूमानियत महसूस होती है कि हम क्यों हैं. हैं तो ऐसे क्यों हैं और ऐसे हैं, तो लोग हमें कबूल क्यों नहीं कर पाते... फिल्म टुकड़ों में हंसाती है. समझती है. मगर फुल पैकेज इज जस्ट पकाओड.