रेटिंग: 3.5 स्टार
कलाकार: कंगना रनोट, आर. माधवन, दीपक डोबरियाल और स्वरा भास्कर
डायरेक्टर: आनंद एल राय
2011 में एक कंगना नजर आई थी लेकिन इस बार दो हैं. चुलबुली. बिंदास. हरफनमौला. नौटंकीबाज. खिलाड़ी. बेबाक. किसी को भी फंसाने में माहिर. दिल जीत लेने में कामयाब और अपनी शर्तों पर जीने वाली लड़की. यानी मजा दोगुना है. फिल्म 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' देखकर यह कहने में एक सेकंड नहीं लगता कि फिल्म कंगना के कंधों पर है. फिर दो कंगना के आने से ध्यान कहानी से काफी हद तक बंट जाता है. शायद आनंद एल राय इस बात को बखूबी समझते थे. इसलिए उन्होंने कहानी को काफी कुछ पिछली बार जैसा ही रखा है, सिर्फ कुसुम सांगवान नाम का नया कैरेक्टर डाल दिया है. कई बातें खटकती हैं, जैसे जिमी शेरगिल और माधवन की किस्मत का फिर से टकराना. तनु का रिक्शे वाले से फ्लर्ट. तनु का वही पुराना अंदाज. अधेड़ शादीशुदा आदमी का कॉलेज की हरियाणवी कन्या से गुडी-गुडी वाला प्रेम और एक बेनतीजा प्रेम कहानी. और भी काफी कुछ है लेकिन यह कुसुम और तनु ही हैं, जो अपने स्वैगर से फिल्म को बखूबी आगे धकेलती हैं. कुल मिलाकर यह प्रेम के बाद शादी और शादी के बाद प्रेम के भूत उतरने की कहानी है. जिसे चुटीले संवादों और अच्छे संगीत के साथ सजाया गया है.
कहानी में कितना दम
कहानी की शुरुआत माधवन और कंगना (तनु) की शादी से होती है. दोनों फिर लंदन चले जाते हैं. बिदांस तनु और सीधे मनु के बीच मन-मुटाव बढ़ने लगता है. दोनों मनोचिकित्सक के पास जाते हैं और मनु को गुस्से की वजह से पागलखाने में डाल दिया जाता है. फिर कंगना वापस लौट आती है. मनु भी भारत आता है तो यहां उसकी मुलाकात कुसुम सांगवान से होती है जो तनु जैसी दिखती है. पुराने प्रेम की पीड़ा जाग जाती है. उधर, तनु फिर से अपनी फ्लर्ट लाइफ जीने लगती है, फिर उसे पता चलता है कि मनु का अफेयर चल रहा है तो कहानी पलट जाती है. आनंद जिस काम में सफल हो सके हैं, वह कुसुम के जरिए समय बांधने में क्योंकि कहानी एवरेज है. कुसुम तनु पर भारी पड़ती है और वह एवरेज कहानी को अपनी ऐक्टिंग से बुलंदियों पर पहुंचा देती है. एडिटिंग कसावट भरी है. उत्तर भारत और खासकर हरियाणवी अंदाज फिल्म को खास बनाते हैं.
कंगना जिस तरह की ऐक्टिंग करती हैं, वह बॉलीवुड के कई सितारों के लिए मिसाल है. कंगना एवरेज कहानी को भी अपने अंदाज से पंख लगा देती हैं. ऐसा लगता है कि कुसुम और तनु दो अलग-अलग इनसान हैं. क्वीन के बाद कंगना का यह एक और यादगार रोल है. माधवन ठीक-ठाक हैं. लेकिन उन्हें थोड़ा अपने वेट पर कंट्रोल करना चाहिए. वे अपनी मुसकराहट और खामोशी से काफी कुछ कह जाते हैं. जिमी शेरगिल और स्वरा भास्कर भी पहले जैसे ही हैं. दीपक डोबरियाल गुदगुदाते हैं.
कमाई की बात
इसमें कोई दो राय नहीं कि फिल्म को लेकर अच्छा क्रेज है, और कंगना ऐसे ढेरों मौके देती हैं, जब सीटियां बजती हैं और हॉल में जमकर शोर होता है. फिल्म देखते हुए मन किसी को तलाशता है तो वह कुसुम सांगवान ही है. दिल को जीत लेती है. गहराई तक उतर जाती है और वह बता देती है कि उसके जैसा कोई नहीं. फिल्म का संगीत अच्छा है. शादी का माहौल भी है. उत्तर भारतीय कनेक्ट भी है. फिर इसका बजट लगभग 50 करोड़ रु. बताया जाता है. फिल्म घाटे का सौदा कतई नहीं रहने वाली है क्योंकि कंगना इसे बॉक्स ऑफिस पर काफी आगे तक ले जाने की कूव्वत रखती हैं.