रेटिंगः 3.5 स्टार
डायरेक्शनः राम माधवानी
कलाकारः सोनम कपूर, शबाना आजमी, शेखर रावजियानी और योगेंद्र टिक्कू
5 सितंबर, 1986 को हाइजैक हुई पैन एम फ्लाइट-73 की घटना भारत के इतिहास के पन्नों में दर्ज है, और नीरजा भनोट की बहादुरी की कहानी कहने के लिए काफी है. एक ऐसी लड़की जिसके कुछ ख्वाब थे जो मॉडल थी और एयर हॉस्टेस भी. लेकिन वह फ्लाइट के दौरान ऐसे हालात की शिकार हुई जिसमें बहादुरी के साथ दिमाग और संयम दोनों की दरकार होती है और उसने इन सब के सही मिश्रण का परिचय देते हुए ऐसा कारनामा कर दिखाया जो हर किसी के बूते का नहीं होता. लगभग दो दशक बाद इस लड़की को याद करना वह भी बड़े परदे पर, कोई आसान काम नहीं है. लेकिन डायरेक्टर राम माधवानी ने इस काम को बखूबी निभाने की कोशिश की है. वह 1980 के दौर के माहौल को भी बखूबी दिखाने में सफल रहे हैं. डायरेक्टर ने नीरजा के कई आयाम दिखाए हैं और वह भारत की बहादुर बेटी के जीवन को रोचक अंदाज में दिखाने में सफल भी रहे हैं. यह एक अच्छी बायोपिक बन पड़ी है.
कहानी में कितना दम
नीरजा की कहानी बुहत लोग जानते हैं और जो नहीं जानते हैं, उनके लिए फिल्म आ गई है. फिल्म में नीरजा के जीवन के अलग-अलग शेड्स देने की कोशिश की गई है. नीरजा यानी सोनम कपूर मॉडल है और एयर हॉस्टेस बनती है. वह राजेश खन्ना की फैन है. उसके हर फैसले में उसके माता-पिता उसका साथ देते हैं. लेकिन उसकी फ्लाइट हाइजैक हो जाती है और वह ऐसे हालात में फंस जाती है जहां उसे अपने बारे में सोचने से पहले दूसरे लोगों के बारे में सोचना होता है. अगर एक-आध जगह छोड़ दिया जाए तो कहानी ठीक चलती है. हालांकि शबाना आजमी का पूर्वाभास वाला सीन थोड़ा चुभता है. फिर हाइजैक वाले प्रकरण में थोड़ी गहराई और होनी चाहिए थी. हाइजैक की वजह और उससे जुड़ी बातों को थोड़ा उथला रखा गया है.
स्टार अपील
अगर एक्टिंग की बात करें तो सोनम कपूर ने ठीक-ठाक ही काम किया है. कई सीन्स में वह शानदार रही हैं, लेकिन अधिकतर फिल्म में उनकी एक्टिंग पहली फिल्मों जैसी ही रही है. वह नीरजा के किरदार को जितना अच्छा कर सकती थीं, उन्होंने किया है. शबाना आजमी ने नीरजा की मां का रोल बेहतरीन ढंग से निभाया है और उन्होंने भावनात्मक क्षणों को परदे पर बखूबी उकेरा है. पिता के रोल में योगेंद्र टिक्कू ने भी अच्छा काम किया है.
कमाई की बात
नीरजा का बजट 21 करोड़ रु. बताया जा रहा है. यानी फिल्म लो बजट है और असल जिंदगी की कहानी है. फिल्म में वह हर मसाला है जो इसे दर्शकों से जोड़ने का काम करता है, चाहे वह देशभक्ति का जज्बा हो, एक लड़की की साहसपूर्ण जिंदगी हो या फिर आतंकवाद. फिल्म आंखें नम करने का काम भी करती है. वैसे भी पिछले हफ्ते और इस हफ्ते भी प्रेम को लेकर बहुत ही कमजोर फिल्में रिलीज हुई हैं और प्रेम का उफान-सा आ गया है. ऐसे में इसमें कोई दो राय नहीं कि नीरजा सही समय पर रिलीज हुई है और सही नीयत से बनाई गई फिल्म है.