फिल्म का नाम: मांझी - द माउंटेन मैन
डायरेक्टर: केतन मेहता
स्टार कास्ट: नवाजुद्दीन सिद्दीकी, राधिका आप्टे, तिग्मांशु धूलिया, पंकज त्रिपाठी
अवधि: 124 मिनट
सर्टिफिकेट: U
रेटिंग: 3.5 स्टार
डायरेक्टर केतन मेहता, जो बायोपिक के स्पेशलिस्ट हैं, उन्होंने परेश रावल को लेकर 'सरदार', आमिर खान के साथ 'मंगल पाण्डे : द राइजिंग' जैसी प्रेरणाप्रद फिल्में बनाई हैं, अब वो बिहार के असल जिंदगी से ही प्रेरित कहानी लेकर आए हैं, जो दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित है. इसके बाद केतन मेहता कंगना रनोट के साथ रानी लक्ष्मीबाई की बायोपिक भी बनाने जा रहे हैं.
कहानी
असल जिंदगी से प्रेरित, मांझी: द माउंटेन मैन' कहानी है दशरथ मांझी की जिन्होंने प्यार के लिए पूरा का पूरा पहाड़ तोड़ डाला. दशरथ मांझी (नवाजुद्दीन
सिद्दीकी) एक निम्न वर्ग का इंसान है जो अपनी पत्नी फगुनिया (राधिका आप्टे) के साथ गांव में काफी दूर पहाड़ के पास रहता है और हर दिन अपनी
आजीविका के लिए कुछ ना कुछ करता रहता है. वह अपनी पत्नी से बेइंतेहा मोहब्बत करता है. एक दिन फगुनिया जब पानी भरकर वापस घर की तरफ
आती रहती है तभी पहाड़ के ऊपर से उसका पांव फिसल जाता है और वो पहाड़ से नीचे गिर जाती है, और शहर तक जाने के लिए पूरा पहाड़ पार करके
जाना पड़ता है जिसकी वजह से फगुनिया की मृत्यु हो जाती है, इस दुखद घटना के बाद दशरथ तय करता है की वो इस पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएगा
जिससे की किसी और का परिवार उस तरह की परेशानी को ना झेले जो दशरथ को झेलनी पड़ी है. सिर्फ हथौड़े और छेनी के साथ दशरथ पहाड़ को तोड़ने
लगता है, और पूरे 22 साल तक दशरथ इस पहाड़ को काटता रहा, और अंततः वह एक रास्ता बना पाने में समर्थ रहा. उसके इस जज्बे को पूरे देश ने
सलाम किया.
स्क्रिप्ट, अभिनय, संगीत
यह कहानी अपने आप में ही इतनी प्रेरणाप्रद है की इसे फिल्माने के लिए केतन ने सही लोकेशन का चयन किया है. साथ ही इस फिल्म में केतन ने
कास्टिंग का काम भी उम्दा किया है. जिस तरह से परेश रावल ने 'सरदार' की भूमिका, आमिर ने 'मंगल पांडे' के रोल के साथ शत प्रतिशत न्याय किया
था, वैसे ही इस बार दशरथ मांझी के किरदार को नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने जीवंत कर दिया है.
जब भी आप नवाजुद्दीन को फिल्म के अलग-अलग सीन में देखते हैं, आप उन्हें सिर्फ और सिर्फ दशरथ मांझी के ही किरदार में पाते हैं. नवाज ने एक बार फिर से सिद्ध कर दिया की उनके भीतर अभिनय की ललक कूट कूट के भरी हुई है जो पर्दे पर बखूब नजर आती है. चाहे वो पत्नी प्रेम हो या फिर पहाड़ काटने का जज्बा, नवाज ने लाजवाब काम किया है.
वहीं राधिका आप्टे ने फगुनिया के किरदार में खुद को घोल दिया है और एक पति के लिए पतिव्रता स्त्री के रूप में दिखाई देती हैं. साथ ही एक निर्भीक और कर्मठ स्त्री के रूप में अच्छा काम किया है. फिल्म में तिग्मांशु धूलिया और पंकज त्रिपाठी का काम भी काबिल ए तारीफ है. फिल्म आपको एक बात सोचने पर विवश जरूर करेगी की 'सच्चे प्यार की क्या अहमियत होती है.' फिल्म में गीतों का प्रयोग है लेकिन कुछ ऐसे दृश्य भी थे जहां अनावश्यक गीत पिरोए गए हैं, अगर वो ना होते तो फिल्म और भी करीब लगती.
क्यों देखें
अगर आपको सच्चा सिनेमा और बेहतरीन बायोपिक की तलाश है तो यह फिल्म देखना लाजमी है. नवाजुद्दीन की एक्टिंग के कायल हैं या राधिका आप्टे के
अभिनय को पसंद करते हैं तो यकीन मानिए यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी.
क्यों ना देखें
अगर आप कॉमर्शियल, लटके झटके, आइटम सांग वाले सिनेमा की तलाश में हैं तो यह फिल्म आपके लिए नहीं बनी है.