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फिल्‍म समीक्षा: 'चश्मेबद्दूर' एक बार देखनी तो बनती है

डेविड धवन की 'चश्मेबद्दूर' रिलीज हो गई है. फिल्म 1981 की सई परंजपे की चश्मेबद्दूर की रीमेक है. आइए फिल्म की समीक्षा में जानते हैं कि कॉमेडी किंग डेविड धवन कहानी को सही ढंग से कहने में किस हद तक सफल रहे हैं.

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फिल्म: चश्मेबद्दूर
बजट: लगभग 40 करोड़ रु.
डायरेक्टर: डेविड धवन
कलाकार: अली जफर, दिव्येंदु शर्मा, सिद्धार्थ, तापसी पन्नू, ऋषि कपूर और लिलेट दुबे

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अगर आप 'चश्मेबद्दूर' देखने जा रहे हैं तो एक बात याद रखें कि इसकी तुलना पुरानी फिल्म से कतई न करें. सई परांजपे की 1981 की 'चश्मेबद्दूर' एक क्लासिक फिल्म है और उसका रीमेक बहुत मुश्किल है. इसीलिए डेविड धवन ने 1980 के दशक की कहानी को मौजूदा परिदृश्य में रखकर पिरोया है. बेशक फिल्म बहुत मजबूत नहीं है लेकिन इसे डेविड की समझदारी ही कहेंगे कि उन्होंने साजिद खान की तरह नहीं किया. पिछले हफ्ते रिलीज हुई उनकी फिल्म जीतेंद्र की 'हिम्मतवाला' का जस का तस रूप थी. अगर डेविड ऐसा करते तो शायद उनका हश्र साजिद से भी बुरा होता. इस मामले में वे बाल-बाल बचते नजर आ रहे हैं.

कहानी में कितना दम
तीन दोस्तों अली जफर, (सिड), जय (सिद्धार्थ) और ओमी (दिव्येंदु शर्मा) की कहानी है. तीनों गोवा के एक छोटे से मकान में रहते हैं. ओमी और जय मस्तमौला हैं, सिड थोड़ा संजीदा है. फिर इनके पड़ोस में रहने आती है तापसी पन्नू. यहां से शुरू होती है लड़की को पटाने की कवायद. दो असफल प्रेमी दोस्त, अपने दोस्त की हंसती-खेलती कहानी में आग लगाने का काम करते हैं.

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इस सबके बीच ऋषि कपूर का किरदार बड़ा ही मजेदार है. वह कैफे चलाते हैं, और तीनों का यहां उधार चलता है. फिल्म पूरी तरह डेविड धवन स्टाइल है. चुटीले वन लाइनर्स, दो अर्थ वाले डायलॉग और ओमी की सड़क छाप शायरी. ऋषि कपूर और लिलेत दुबे की ट्यूनिंग भी जमी है. कहानी में कुछ नयापन नहीं है. लेकिन कुल मिलाकर अच्छी लगती है. लेकिन डेविड धवन शोला और शबनम, आंखें और राजा बाबू जैसी धमाल फिल्में दे चुके हैं, ऐसे में उनसे कहानी में कुछ खास टिवस्ट की उम्मीद थी.

स्टार अपील
अली जफर हमेशा की तरह अच्छे ही हैं. विलक्षण नहीं. दिव्येंदु शायरी करते हुए मजेदार लगते हैं. कहीं-कहीं थोड़े लाउड हो जाते हैं. लेकिन उनकी कुछ शायरी पर हंसे बिना नहीं रहा जाता. सरप्राइज पैकेज तापसी हैं. तेज मिजाज बाला. कॉन्फिडेंस से लबरेज. सिद्धार्थ कहीं-कहीं हलके पड़ जाते हैं. लेकिन कोशिश अच्छी रही है. ऋषि कपूर औऱ लिलेत दुबे काफी जमते हैं. ऋषि कपूर का एक्सपीरियंस किसी भी रोल की ऊंचाई को सातवें आसमान पर ले जाता है. कुल मिलाकर फिल्म में सभी कैरेक्टर्स मिलकर ही रंग भरते हैं.

कमाई की बात
दर्शकों के लिए फिल्म काफी हद तक पैसा वसूल है. इससे किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद नहीं है लेकिन कम लोकप्रिय स्टारकास्ट को देखते हुए, वर्ड ऑफ माउथ पर काफी कुछ टिका है. वैसे भी डेविड धवन की फिल्में एक खास तबके को तो पसंद आती ही हैं, इसके अलावा यूथ भी इसे एक बार जरूर देखेगा. फिल्म की टेंशन फ्री और दिमाग पर ज्यादा जोर देने के लिए मजबूर न करने वाली कॉमेडी इसकी यूएसपी है.

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