पीएम नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में एक बार फिर ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. हर तरह मोदी-मोदी की गूंज है, इस बीच सिनेमा के पर्दे पर भी पीएम मोदी की बायोपिक रिलीज हो गई. फिल्म को डायरेक्टर ओमंग कुमार ने बनाया है. ये फिल्म एक ऐसी शख्सियत पर बनी है जिससे हम बीते कई सालों से देख रहे हैं. जिसका नाम है मोदी. इसलिए फिल्म में देखने को कुछ नया नहीं है, हां वो सब है जो हम जानते हैं.
कहानी
फिल्म की कहानी मोदी के चाय बेचने से लेकर देशसेवा करने तक और फिर प्रधानमंत्री बनने तक के सफर को दिखाती है. फिल्म की कहानी का अंत साल 2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम पद की शपथ लेने पर होता है. फिल्म को देखकर लगता है कि विवेक ओबेरॉय और उनकी टीम ने चंद महीनों का इंतजार किया होता तो वो साल 2019 की झलक भी फिल्म में दिखा सकते थे.
एक्टिंग
विवेक ओबेरॉय ने पीएम नरेंद्र मोदी की बायोपिक को अपनी फिल्मों में कमबैक के लिए चुना. लेकिन उनकी अदाकारी फिल्म में निराश करने वाली है. उन्हें देखकर ये कहीं से नहीं लगता कि वो पीएम नरेंद्र मोदी की भूमिका में हैं. पीएम जैसा आत्मविश्वास विवेक ओबेरॉय की एक्टिंग में कहीं नजर नहीं आता. जबकि मोदी के संवाद तरीका बहुत प्रभावी है. इसी कला के जरिए मोदी देश की जनता के दिल को छूते हैं. लेकिन विवेक ओबेरॉय अपनी फिल्म में मोदी के व्यक्तित्व की इस खासियत को छू भी नहीं पाए हैं.
पीएम मोदी बायोपिक बनाने की जिम्मेदारी ओमंग कुमार के कंधों पर थी. जो इसके पहले मैरी कॉम की बायोपिक में शानदार हुनर दिखा चुके हैं. लेकिन इस बार उन्होंने नरेंद्र मोदी की बायोपिक में निराश कर देने वाला काम किया है. फिल्म के दूसरे कलाकारों की अदाकारी पर नजर डालें तो बोमन ईरानी, बिजनेसमैन रतन टाटा के छोटे रोल में भी इम्पैक्टफुल हैं.
दर्शन कुमार ने बिकाउ पत्रकार का रोल किया है जो ठीक-ठाक है. वहीदा वहाब ने हीराबेन का रोल किया है जो नॉट बैड टाइप है. एक लाइन में कहे तो किसी किरदार ने यादगार छाप नहीं छोड़ी है. फिल्म एक पावरफुल पर्सनालिटी पर बनाई गई है लेकिन पूरी कहानी में कोई पावर नजर नहीं आता है.