बॉलीवुड की खासियत रही है ड्रामा मूवीज. हिंदी ऑडियंस को ड्रामा जमकर पसंद आता है. हिंदी फिल्मों में स्वाभाविक तौर पर इतना ड्रामा तो होता ही है कि जब हैपी एंडिंग के बाद मूवी खत्म हो तो फिल्म का शोरगुल दर्शकों के दिमाग में कुछ देर तक घूमता रहे. उसका जिक्र हो. उसपर बात करने का मन करे. मगर किसी फिल्म में अगर ड्रामा भरपूर हो, कॉमेडी भी हो, रोमांस भी हो मगर फिल्म देखने के बाद ऐसा लगे कि यार, कहीं कुछ कमी रह गई, तो मतलब समझ लेना चाहिए कि बात बन नहीं पाई. फिल्म हम दो हमारे दो में सब कुछ है, मगर सब छूटा-छूटा सा लगता है. दिग्गज अभिनेताओं से सजी फिल्म, दो घंटे से ज्यादा लंबी फिल्म, मगर फिर भी सब कुछ होते हुए भी क्या मिसिंग रह गया आइये उस पर बात करते हैं.
कहानी-
फिल्म की कहानी बाल प्रेमी (राजकुमार राव) नाम के एक अनाथ बच्चे की है, उसकी आकांक्षाओं की है, दुनिया के प्रति उसके नजरिए की है और खुद अपने दम पर उसके खड़े होने के संघर्ष की, कभी हार ना मानने वाले जुनून की है. बाल प्रेमी से ध्रुव बनने वाले एक लड़के की है. एक 12-13 साल का लड़का अपने मुंहबोले चाचा का ढाबा छोड़कर एक रात निकल पड़ता है अपनी मंजिल खुद तलाशने. वो इसमें सफल भी होता है. अपने जादू से सभी को चकित कर देने वाला दुनिया को वर्चुअल सुख देता है. खुद का एक ऐप बनाता है. सबको कल्पना के एक जहां में ले जाता है. मगर इसी के साथ अपने खुद के जीवन में भी अपनी कल्पनाओं को साकार होते देखना चाहता है जिसे उसने वर्षों से संजोकर रखा है. उसके मन-मस्तिष्क में एक लालसा बचपन से रही है. एक परिवार हो. वो एक लड़की के प्यार में भी पड़ता है. आन्या (कृति सेनन) नाम की लड़की से. बात शादी तक पहुंच जाती है.
Sardar Udham Review: दर्दभरी खूबसूरत कहानी में छा गए विक्की कौशल, रोंगटे खड़े कर देगी फिल्म
मगर शादी हो कैसे? उसका तो परिवार है ही नहीं. ना मां-बाप का पता, ना रिश्तेदारों का ठिकाना. और जिस लड़की से वो प्यार करता है उसकी इच्छा है कि वो जिस घर में भी जाए उसे भरा-पूरा परिवार मिले. इसकी सबसे बड़ी वजह ये होती है कि आन्या के मां-बाप बचपन में ही गुजर जाते हैं और उसकी परवरिश बड़े लाड़-प्यार से उसके चाचा-चाची करते हैं. ऐसे में आन्या को अनाथ होते हुए भी कभी मां-बाप की कमी महसूस नहीं हुई. बस आन्या की यही इच्छा है कि वो जिस घर में जाए उसे मां-बाप जैसे सास-ससुर मिलें. अब आन्या की यही इच्छा ध्रुव के लिए सिरदर्द साबित होती है. और इसी सिरदर्द के इर्द-गिर्द घूमता है फिल्म का पूरा ड्रामा. इसमें उसकी मदद उसका दोस्त सेंटी (अपारशक्ति खुराना) और उसे मुंहबोले चाचा (परेश रावल) करते हैं.
मजबूत पक्ष-
फिल्म का मजबूत पक्ष है उसकी स्टारकास्ट. क्या जबरदस्त स्टारकास्ट है. राजकुमार राव, कृति सेनन, परेश रावल, रत्ना पाठक, अपारशक्ति खुराना, मनु ऋषि, प्राची शाह और सानंद वर्मा. जब फिल्म की कास्ट ऐसी हो तो हाईवोल्टेज ड्रामे की और कॉमेडी की उम्मीद की जानी गलत नहीं है. मगर उम्मीद का क्या हुआ उसकी बात कमजोर पक्ष में करते हैं.
कमजोर पक्ष-
फिल्म का कमजोर पक्ष कई सारे पहलुओं पर टिका है. ना तो फिल्म की कहानी में कोई खास दम है और उस कमजोर कहानी को ढकने के लिए जो दमदार डायलॉग्स होने चाहिए थे वो भी फिल्म से नदारद हैं. दूर-दूर तक नहीं हैं. ऐसे में एक शानदार स्टारकास्ट भला क्या कर सकती है. फिल्म एकदम बेजान नजर आई है. इसमें राजकुमार राव और कृति सेनन के होते हुए भी रोमांस इस्टेब्लिश नहीं हो पाया है. इस फिल्म में 2-3 अच्छे गानों की तो बहुत जरूरत थी मगर एक भी गाना आपको सुकून नहीं दे पाएगा. फिल्म की स्क्रिप्ट पर और काम किया जा सकता था. फिल्म में उतार-चढ़ाव होते हुए भी अंत में आपको ये मूवी एकदम फ्लैट नजर आएगी. इसके अधिकतर सीन्स प्रेडिक्ट किए जा सकते हैं. ऐसे में फिल्म देखते वक्त वो क्यूरॉसिटी आप शायद ही महसूस कर पाएं.
एक्टिंग-
फिल्म का मजबूत पक्ष सिर्फ एक्टिंग ही है. कहानी के खराब प्रेजेंटेशन की वजह से फिल्म में राजकुमार राव, कृति सेनन और अपारशक्ति खुराना भी कोई खास असर नहीं छोड़ पा रहे थे. फिर वही हुआ जो आप हमेशा से देखते आए हैं. उस शख्स की एंट्री हुई जिसकी एंट्री ही काफी है. नाम है परेश रावल. फिल्म में परेश रावल के कैरेक्टर पुरुषोत्तम मिश्रा की एंट्री के बाद ऐसा लगता है कि फिल्म से उदासी दूर हो गई है और फिल्म ठहाके लगाकर हंसने भी लगी है और हंसाने भी. परेश का भरपूर साथ दिया है दिप्ति कश्यप के रोल में रत्ना पाठक शाह ने. इसके अलावा अपारशक्ति खुराना मनु ऋषि, प्राची पांड्या और सानंद वर्मा ने हमेशा की तरह शानदार अभिनय किया है जो आपको एंटरटेन भी करेगा.
आशा या निराशा?
कुल मिलाकर फिल्म से ज्यादा आशा रखना गलत होगा. बड़े नाम होने के बाद भी आपको ऐसा लग सकता है कि आप फिल्म का पूरा मजा लेने से वंचित रह गए. फिल्म का म्यूजिक भी कुछ खास नहीं है. सबसे ज्यादा इस फिल्म में अगर आप कुछ मिस करेंगे तो वो है कृति-राजकुमार का रोमांस. ऐसा लगेगा कि जैसे बस फॉर्मेलिटी के लिए दो दिलों को मिलाया गया है ताकि फिल्म आगे बढ़ सके. मगर एक भी रोमांटिक सीन ऐसा फिल्म में नहीं है जहां आपको एक पल को इमोशनल फील दे पाए. लेकिन एक परिवार की महत्ता क्या है ये आप को फिल्म में समझ में आएगी. परेश रावल, रत्ना पाठक शाह और राजकुमार राव के बीच खून का रिश्ता ना होते हुए भी जो बॉन्ड उनके बीच दिखाया गया है वो इस फिल्म की आत्मीय सुंदरता है. उससे आप जरूर जुड़ा महसूस कर सकते हैं. इसलिए एक बार इस फिल्म को देखा जा सकता है. जस्ट फॉर टाइम पास.