'लस्ट स्टोरी 2' फिल्म में सेक्स की बातों की इतनी अती हो गई है कि वो सेंशुअल के बजाए महज एक बी ग्रेड स्टाइल की फिल्म तक सिमट कर रह जाती है. बॉम्बे टॉकीज, अजीब दास्तां, अनपॉस्ड, मॉर्डन लव जैसी एंथोलॉजी फिल्मों के ट्रेंड ने इंडियन व्यूवर्स का ध्यान अपनी ओर खींचा. डायरेक्टर्स के इस एक्सपेरिमेंट को सिनेमालवर्स द्वारा खूब पसंद भी किया जा रहा है. ऐसे में कई बड़े एक्टर्स व डायरेक्टर्स भी इस जॉनर को जमकर एक्सप्लोर कर रहे हैं. यही पॉप्युलैरिटी का नतीजा है कि इनके सीक्वल्स भी धड़ाधड बनाए जा रहे हैं.
पार्ट 1
'लस्ट स्टोरी 2' अपने थीम के अनुसार ही चार कहानियों को एक साथ लेकर आई है. पहली कहानी नीना गुप्ता, मृणाल ठाकुर और अंगद बेदी जैसे स्टारकास्ट से शुरू होती है. फिल्म को डायरेक्ट किया है आर बाल्की ने. वेदा- (मृणाल) और अर्जुन (अंगद)आज के युवा हैं. छ महीने पहले मिले वेदा और अर्जुन एक दूसरे को परफेक्ट लगते हैं और अपने इस रिश्ते को आगे बढ़ाते हुए शादी के बंधन में बंधने की प्लानिंग कर रहे हैं. जब परिवार वाले शादी की बात करने आते हैं, तो यहां मृणाल की दादी (नीना गुप्ता) का पहला सवाल होता है कि क्या ये दोनों बेड में एक दूसरे के साथ कंपैटिबल हैं. घर की बुजुर्ग महिला का यूं बेबाकी से ऐसे सवाल करने से एक ओर जहां पैरेंट्स शर्मिंदा हो जाते हैं, वहीं इन यंगस्टर्स को वो कूल लगती हैं.
बेशक आर बाल्कि ने इस फिल्म के जरिए शादी के रिश्ते में सेक्स की महत्व को समझाने की कोशिश की है लेकिन लगातार नीना गुप्ता का उन बातों में जोर देते रहना और उसे ड्रैग्ड करता जाना उबाऊ सा लगने लगता है. वो कूल नहीं बल्कि इरीटेट करता जाता है. कपल की प्राइवेसी में उनकी दखलअंदाजी एक हद तक बर्दाश्त लगती है, बाकि बनावटीपन सा प्रतीत होता है. हालांकि आर बाल्कि यहां केवल यंग जनरेशन को ही 'टेस्ट ड्राईव' का मेसेज नहीं दे रहे हैं बल्कि वो वेदा के पैरेंट्स का भी चित्रण करते हुए बताते हैं कि किस तरह एक मीडिल क्लास फैमिली में अधेड़ उम्र के कपल की सेक्स लाइफ एक ड्राई स्टेट पर पहुंच जाती है. उनकी सेक्स की इच्छाओं पर शायद ही किसी ने कभी कोई बात की होगी. बाल्कि मेसेज, तो अच्छा देना चाहते थे,लेकिन स्क्रीनप्ले बहुत ही नीरस तरीके से लिखा होने के कारण नीना गुप्ता भी इसे बचा नहीं पाती हैं. मृणाल और अंगद का काम भी उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाता है.
पार्ट 2
तिलोत्मा शोमे और अमृता सुभाष कहानी के दूसरे भाग में आती है. हाई सोसायटी से आती इशिता( तिलोत्मा) एक दिन अपने कमरे में अपनी हाउस हेल्प अमृता को इंटीमेट होते हुए छिपकर देख लेती है. पहले शॉक हुई तिलोत्मा की अब यह रोजाना रूटीन बन जाती है. कहानी में ट्वीस्ट यह है कि उनकी हाउसहेल्प को भी इस बात की खबर होती है और इस चीज को वो इंजॉय भी करती है.
तिलोत्तमा का किरदार रहा अनएक्स्प्लोर्ड
कोंकणा सेन शर्मा की कहानी में उनका टच बखूबी दिखता है. जिस तरह से वे अपनी फिल्मों में क्लास डिफरेंस जैसे इश्यूज का इस्तेमाल करती रही हैं, वो इसमें भी नजर आता है. इसके साथ ही कोंकणा ने एक दो ऐसी विपरीत मानसिक अवस्था को भी दर्शाया है, जिसे मेडिकल टर्म में कई नाम दिए गए होंगे. मसलन कोई अगर सेक्स को लाइव देखकर उत्तेजित होता है, तो वहीं ऐसी भी मानिसकता है, जिसे एक्साइटमेंट किसी के देखे जाने पर होती है. बहुत ही खूबसूरती से दोनों ही स्थितियों को अपने फ्रेम में दर्शा जाती हैं. हालांकि यहां कोंकणा अपने लीड किरदार इशिता को एक्सप्लोर करने में चूक कर जाती हैं. इशिता की बैकड्रॉप स्टोरी न होने की वजह से उनके स्टेटस का समझ नहीं आता है. हालांकि दोनों ही एक्ट्रेसेज ने एक्टिंग इतनी बेहतरीन की है कि यह ऐपिसोड देखते वक्त कब वक्त निकल जाता है, उसका एहसास नहीं होता है.
पार्ट 3
फिल्म के तीसरे हिस्से की कहानी विजय वर्मा और तमन्ना भाटिया को डेडिकेट है. यहां विजय का कार एक्सीडेंट होता है और वो बाहर इलाके से भागता हुआ एक कस्बे की ओर पहुंचता है. जहां उसे अपनी एक्स वाइफ शांती (तमन्ना) मिलती है. शांती पिछले दस साल से गुमशुदा है. विजय जब उससे मिलता है, तो उससे उसके अचानक से गायब हो जाने का कारण पूछता है. ऐसे में शांती बताती है कि उसकी प्रेजेंट वाइफ का हाथ है. जिससे सुनकर विजय शॉक्ड हो जाता है और अपनी वाइफ से बदला लेने की ठानता है. हालांकि इसके बाद भी एक जबरदस्त ट्वीस्ट आता है.
अपने कहानियों में सस्पेंस व ट्विस्ट के लिए पहचाने जाने वाले डायरेक्ट सुजॉय घोष की कहानी इंट्रेस्टिंग हो सकती थी लेकिन उसके एग्जीक्यूशन में लापरवाही साफ झलकती है. फिल्म सस्पेंस से भरा जरूर है लेकिन वो एक्साइटमेंट व थ्रिल नहीं ला पाता है. बहुत ही लचर अंदाज में कहानी लिखी गई है और उसके प्रेजेंटेशन में भी खासा ध्यान नहीं दिया गया है. मसलन यह पार्ट मस्तराम की किसी कहानी की तरह प्रतीत होता है. न ही इसे विजय की एक्टिंग बचा पाती है और न ही तमन्ना भाटिया का ग्लैमरस अंदाज. औसत में सिमट कर कहानी रह जाती है.
पार्ट 4
उदयपुर के एक राजा के घर में ब्याही काजोल का पति कुमुद मिश्रा से परेशान है. रोजाना पीकर आकर गालियां देना, मारपीट करना और जबरन सेक्स करने से परेशान हो चुकी हैं. काजोल की ख्वाहिश है कि वो अपने बेटे को लंदन ले जाकर पढ़ाना चाहती हैं. हालांकि उनकी इस ख्वाहिश में पति रोढ़ा बनता है. ऐसे में वो अपने पति से छुटकारा पाने के लिए एक गहरी साजिश रचती है. अब वही चाल काजोल को कैसे उलट पड़ जाती है, ये फिल्म देखकर ही पता चल पाएगा.
काजोल जैसी जहीन अदाकारा ने जब लस्ट स्टोरी 2 का हिस्सा बनने की अनाउसमेंट की थी, तो उनके फैंस चौंक गए थे. ऐसी उम्मीद जताई जा रही थी कि काजोल एक ऐसे अवतार में होंगी, जो शायद सभी को शॉक्ड कर दें. लेकिन डायरेक्टर काजोल की अदायगी को ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पाए. फिल्म में काजोल का रोल में कुछ नयापन नहीं दिखता है. बल्कि यहां बाजी कुमुद मिश्रा मारते हैं. कुमुद जी की अदायगी इतनी नैचुरल है कि आप उनसे नफरत करने लगते हैं. उनके हवस भरी निगाह ही स्क्रीन पर सबकुछ कह जाती है. हालांकि इस फिल्म का क्लामैक्स जिस मोड़ पर आकर खत्म होता है, उसकी उम्मीद किसी ने नहीं की होगी. वो एक पूरी सीरीज का हाई पॉइंट होता है. वो कहते हैं न, सेव लास्ट फॉर द बेस्ट. बस इसी तर्ज पर शायद इस ऐपिसोड को सबसे आखिर में रखा गया था.