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ये 'फितूर' नहीं आसाँ , कमजोर कहानी है

यह कहानी कश्मीर में शुरू होती हैं जहां बेगम हजरत (तब्बू) अपने बड़े बंगलो में रहा करती हैं, बेगम के साथ विश्वासघात होता है जिसकी वजह से उनका प्यार से विश्वास उठ जाता है.

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फिल्म फितूर में कटरीना कैफ
फिल्म फितूर में कटरीना कैफ

फिल्म का नाम: फितूर
डायरेक्टर: अभिषेक कपूर
स्टार कास्ट: आदित्य रॉय कपूर, कटरीना कैफ, तब्बू , लारा दत्ता भूपति ,अदिति राव हैदरी, राहुल भट, तुनिशा शर्मा
अवधि: 2 घंटा 11 मिनट
सर्टिफिकेट: U

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डायरेक्टर अभिषेक कपूर ने रॉक ऑन और काय पो छे जैसी फिल्में डायरेक्ट की हैं,उनकी फिल्म बनाने की कला को काफी सराहा भी जाता है. अभिषेक ने चेतन भगत की नॉवेल से प्रेरित होकर 'काय पो छे' बनायी थी और अब मशहूर लेखक चार्ल्स डेकन की नावेल 'द ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स ' से प्रेरित होकर उन्होंने फितूर फिल्म बनायी है. हालांकि इस नॉवेल के प्लाट को कई बार अंग्रेजी फिल्मों में प्रयोग किया गया है, लेकिन पहली बार इस पर आधारित हिंदी फिल्म बनायी गयी है, क्या यह फिल्म दर्शकों को थिएटर तक खींच पाने में सक्षम है? आइये समीक्षा करते हैं -

कहानी
यह कहानी कश्मीर में शुरू होती हैं जहां बेगम हजरत (तब्बू) अपने बड़े बंगलो में रहा करती हैं, बेगम के साथ विश्वासघात होता है जिसकी वजह से उनका प्यार से विश्वास उठ जाता है, उनकी बेटी फ़िरदौस (कटरीना कैफ) को बचपन में ही नूर (आदित्य रॉय कपूर) के रूप में एक काम करने वाला दोस्त मिल जाता है, नूर अपने दीदी रुखसार और जीजा जुनैद के साथ रहता है, नूर एक आर्टिस्ट भी है जिसे फ़िरदौस से बचपन में ही मोहब्बत हो जाती है, लेकिन बेगम को नूर का फ़िरदौस से मिलना कतई बर्दाश्त नहीं होता, जिसकी वजह से बेगम, फ़िरदौस को पढ़ाई के लिए लंदन भेज देती हैं, नूर अकेला पड़ जाता है, फिर कहानी आगे बढ़ती है और इस लव स्टोरी को एक अंजाम मिलता है, जिसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

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स्क्रिप्ट
फिल्म की कहानी कश्मीर की वादियों में बसी हुई है जिसमें वहाँ के लहजे और संवादों को अच्छे ढंग से परोसा गया है. एक तरफ अपने फैसले पर अडिग बेगम हैं तो वहीँ दूसरी तरफ वादी में पनपता प्यार, एक तरफ मुल्क की आजादी का सवाल है तो वहीं इश्क पर लगने वाली पाबंदियां भी दर्शायी गई हैं लेकिन पूरी फिल्म में स्क्रीनप्ले और कहानी नदारद है, सब कुछ बड़ा ही फोर्सफुल सा दिखाई देता है, फिल्म में अजय देवगन को लिया तो गया है लेकिन उन्हें सही तरह से प्रयोग में नहीं ला पाए हैं, तब्बू की अदाकारी तो है लेकिन झटके से उनकी किशोरावस्था का किरदार अदिति राव हैदरी निभाती हुई नजर आती हैं जो बड़ा ही अचंभित करने वाला किस्सा नजर आता है. सिर्फ कश्मीर की वादियों को देखना सबसे अच्छा लगता है और ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपको अपन ओर आकर्शित कर पाए. इस कहानी में क्लाइमेक्स भी बहुत ही ढीला है.

फिल्म में बेगम के किरदार में तब्बू ने बहुत ही उम्दा अभिनय किया है और किसी भी पल लगने ही नहीं दिया की वो एक्टिंग कर रही हैं, काफी रीयल से भाव पर्दे पर दिखाई दिए. वहीं आदित्य रॉय कपूर और कटरीना ने भी सहज अभिनय किया है. फिल्म में अदिति राव हैदरी, लारा दत्ता भूपति, ने भी ठीक ठाक काम किया है लेकिन बचपन के आदित्य रॉय कपूर का किरदार निभाते हुए चाइल्ड आर्टिस्ट ने बहुत ही अच्छा अभिनय किया है.

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संगीत
फिल्म की सबसे अच्छी बात इसका संगीत है. अमित त्रिवेदी ने बेहतरीन गाने बनाए हैं, पश्मीना, फितूर, बतियाँ सभी कहानी के साथ रचते हैं. साथ ही हितेश सोनिक ने बैकग्राउंड स्कोर भी मौके की नजाकत से सही बनाया है.

कमजोर कड़ी
फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसकी उल्टी-पुल्टी स्क्रिप्ट है, किरदारों को पूरी तरह से कैश कर पाने में यह कहानी नाकाम सी दिखाई पड़ती है, इसे और भी बेहतर बनाया जा सकता था, कश्मीर की वादियाँ बेइंतहाँ खूबसूरत हैं लेकिन कहानी फीकी सी दिखाई पड़ती है.

क्यों देखें
अच्छे लोकेशंस, आदित्य रॉय कपूर, कटरीना कैफ, तब्बू के अभिनय के दीवाने हैं, या अमित त्रिवेदी का संगीत पसंद है, तो यह फिल्म जरूर देखें.

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