देश भर में करोना के बढ़ते केस जहां लोगों के मन में सिनेमा हॉल जाने के लिए डर पैदा कर रहे हैं, वहीं पर ‘रूहि’ की सफलता के बाद दो -दो फिल्में ‘मुंबई सागा‘ और ‘संदीप और पिंकी फ़रार’ कोशिश कर रही है कि लोग सिनेमा घरों में इन फिल्मों को देखें. लेकिन औसत कहानी और नयापन के अभाव में दर्शक बड़े पर्दे पर रुख करते दिखेंगे, मुश्किल लगता है.
बिखराव का शिकार हुई कहानी
‘इशकज़ादे ‘ में परिणीति चोपड़ा और अर्जुन कपूर ने एक साथ इंडस्ट्री में कदम रखा और पूरे 9 साल बाद दोनों फिर साथ में ‘संदीप और पिंकी फ़रार में नजर आ गए हैं. दिबाकर बनर्जी के निर्देशन में बनी ये थ्रिलर मूवी सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. आजकल की वेब सीरीज की तर्ज पर ये एक सोशल थ्रिलर है, जो सुस्त गति से एक लड़का और लड़की की कहानी को कहती है जिन्हें हालात एक साथ भागने पर मजबूर कर देते हैं. दिबाकर बनर्जी ने फिल्म में काफी अनोखे अंदाज में कहानी कही है लेकिन वे इस कहानी को एक सूत्र में नहीं जोड़ पाए.
हालिया फिल्म 'द गर्ल ऑन द ट्रेन' के बाद परिणीति ने एक बार संजीदा किरदार निभाया है. लम्बे समय के बाद अर्जुन भी रफ़ - टफ किरदार में नजर आ गए हैं. इस फिल्म में दोनों ने पुरजोर कोशिश की है कि वे अपने अभिनय का जादू चला पाएं, लेकिन कहानी के कमजोर प्रस्तुतीकरण के कारण ऐसा होता नहीं दिखा और दोनों का काम भी औसत बनकर रह गया.
एक ट्विस्ट भी है
वैसे इस फिल्म की ये खास बात रही कि पहली बार हीरोइन का नाम हीरो जैसा है और हीरो का नाम हीरोइन जैसा. जी हां फिल्म में संदीप परिणीति चोपड़ा हैं और पिंकी के रोल में अर्जुन कपूर. ट्विस्ट तो ये भी रहा है कि ये प्रेम कहानी ना होकर परिणीति और अर्जुन के हालातों पर फोकस करती है.
दिल्ली के इर्द-गिर्द घूमी कहानी
अपनी हिट फिल्म ‘ओए लकी लकी ओए ‘ की तरह निर्देशक दिबाकर बनर्जी ने एक बार फिर दिल्ली को अपनी कहानी का केंद्र चुना है. संदीप और पिंकी फ़रार में ‘ कहानी दिल्ली के एक बैंक की आला अधिकारी संदीप वालिया यानी परिणीति के अपहरण से शुरू होती है . जो पिंकी नाम का एक पुलिस वाला यानी अर्जुन कपूर अपने बॉस त्यागी (जयदीप अहलावत ) के कहने पर करता है. लेकिन हालात पिंकी और संदीप को एक साथ भागने पर मजबूर कर देते हैं.
फिल्म में क्या दिखाया गया?
पिंकी संदीप को मारना चाहता है लेकिन उसे पता चलता है की संदीप गर्भवती है और अपने बैंक की साज़िश का शिकार है. दोनों भागकर दिल्ली से पिथौरागढ़ पहुंच जाते हैं . वहां एक दंपत्ति के घर पेइंग गेस्ट रहते हैं . यहां पता चलता है कि संदीप वालिया को उसका बॉस और प्रेमी उससे बैंक की बचत योजना के तहत करोड़ रुपयों का घोटाला करा रहा था. पिंकी, संदीप की मदद करता है और दोनों बॉर्डर क्रॉस करके नेपाल जाने का फ़ैसला लेते हैं. लेकिन पिंकी का बॉस अपने लोग और त्यागी को उन्हें पकड़ने भेज देता है . पर इन सबको चकमा देकर संदीप अपने बैंक के घोटाले का भंडाफोड़ करती है जिसमें संदीप उसका साथ देता है .
फिल्म को लिखा है सेक्रेड गेम्स लिखने वाले वरुण ग्रोवर ने. फिल्म में हास्य की कमी बहुत खटकती है. केवल नीना गुप्ता और रघुबीर यादव ने फिल्म में अपने सहज अभिनय से कहानी को हल्का बनाने में मदद की है. इश्कजादे और इंडिया मोस्ट वांटेड की तर्ज़ पर अर्जुन ने एक देसी जाट बिना वर्दी वाले पुलिस वाले का किरदार फिर से निभाया है .
देखनी बनती है क्या?
परिणीति ने भी पूरी कोशिश की है कि वे एक सीरीयस अभिनय कर सके और कुछ दृश्यों में उन्होंने अच्छे अभिनय की मिसाल भी दे दी है. लेकिन इस सबके बावजूद भी फिल्म अपनी थ्रिलिंग कहानी से लोगों को बांध नहीं पाती. ‘पाताललोक ‘ के जयदीप अहलावत भी अपनी पहचान दर्ज कराने में नाकामयाब रहे . हां फिल्म में सिनेमेटोग्राफी जरूर बढ़िया रही और कैमरे के लेंस में शानदार सीन्स कैद किए गए. गाड़ियों के चेस सीक्वेंस और पीथौरागढ़ की ख़ूबसूरती भी बड़े पर्दे पर बेहतरीन अंदाज में दिखाई गई है. कुल मिलाकर संदीप और पिंकी फ़रार एक औसत फिल्म है जो एक चुस्त थ्रिलर बनते बनते रह गई.