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Shamshera Review: बॉलीवुड इज बैक! हिंदी सिनेमा के लिए संजीवनी बनेगा शमशेरा, रणबीर कपूर-संजय दत्त का शानदार काम

Shamshera Review: बॉलीवुड को जिस संजीवनी की जरूरत थी, रणबीर कपूर और संजय दत्त की फिल्म वो लेकर हाजिर हो गई है. डायरेक्शन की बात करते हैं. करण मल्होत्रा का काम गजब का कहा जाएगा. जिस स्केल की ये फिल्म थी, जितना बड़ा बजट था, एग्जीक्यूशन पर ही सब कुछ निर्भर था. फिल्म देखने के बाद कह सकते हैं कि करण को इस मामले में ए ग्रेड देना पड़ेगा.

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Shamshera Review: Ranbir Kapoor
Shamshera Review: Ranbir Kapoor
फिल्म:शमशेरा
3.5/5
  • कलाकार : रणबीर कपूर, संजय दत्त
  • निर्देशक :करण मल्होत्रा

बॉलीवुड कुछ नया क्यों नहीं करता है, वहीं पुरानी घिसी-पिटी कहानी पर चल रहा है. साउथ की फिल्में बहुत आगे निकल गई हैं....बॉक्स ऑफिस पर तो उनकी फिल्में धमाल मचा रही हैं. ये हम नहीं आपके दिल की आवाज है. पिछले कुछ महीनों में ये लाइन आपने अपने दोस्त से सुनी होगी....किसी फिल्म क्रिटिक ने भी टिप्पणी कर दी होगी, या आप भी ऐसी राय रखते होंगे. हम भी रखते थे, लेकिन अब नहीं. बॉलीवुड को उसका शमशेरा मिल गया है. बॉलीवुड अपने पुराने रंग में वापस आ गया है....उत्साह बढ़ रहा है ना?? आइए रणबीर कपूर की इस नई फिल्म शमशेरा का रिव्यू करते हैं

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कहानी

आजादी से कई साल पहले खमेरा जाति के लोग सीना तानकर चला करते थे. छोटी जाति के थे, इसलिए उनके संघर्ष जरूर थे, लेकिन एकता ऐसी कि कोई उन्हें डिगा नहीं पाया. लेकिन फिर मुगलों का शासन आया और खमेरा जाति के लोगों को अपना घर-बार सब छोड़कर जाना पड़ गया. यहां भी उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ और अंग्रेसों ने भारत पर कब्जा जमाया. उनके आते ही खमेरा के बुरे दिन शुरू हो गए. खमेरा का सरदार था शमशेरा (रणबीर कपूर). ये लोग डकैती करते थे, कहते थे- कर्म से डकैत, धर्म से आजाद. ये इनकी जाति का मूल मंत्र था. अब डकैत तो ये बने रह गए लेकिन अंग्रेजों ने इनकी आजादी छीन ली. धोखा देकर उन्हें बंदी बना लिया. काजा का कोई किला है, जहां इन सभी खमेराओं को पकड़ कर रखा गया. कैसे आए, क्यों आए, वो कहानी का ऐसा हिस्सा जो यहां नहीं बता सकते.

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इतना जान लीजिए शमशेरा और उसकी जाति वालों को कैद करने का काम शुद्ध सिंह (संजय दत्त) ने किया था. इन्हें आप सही मायनों में अंग्रेजों के जमाने का जेलर कह सकते हैं. बल्कि उनके पालतू थे, खून हिंदुस्तानी था, लेकिन जेब अंग्रेजी हुकूमत भर रही थी. ये शुद्ध सिंह खमेराओं को नीच जाति का बताता था. उनके साथ ऐसा बर्ताव करता था कि मानों इंसान नहीं जानवर हैं. एक तरफ उसके अत्याचार बढ़ रहे थे तो दूसरी तरफ खमेराओं की आजादी को लगातार चुनौती दी जा रही थी. यही है मूल कहानी....और भी काफी कुछ है जो बड़े पर्दे पर फिल्म देख ही पता चलेगा.

बॉलीवुड बैक विद बैंग!

शमशेरा ने बॉलीवुड में फिर जान फूंक दी है. वो सारा मसाला, वो सारा ड्रामा, वो कहानी...वो सस्पेंस....वो थ्रिलर...वो अदाकारी....जो भी कुछ आप मिस कर रहे थे, हिंदी सिनेमा को शमशेरा ने दे दिया है. यशराज फिल्म्स की ये पेशकश बॉलीवुड के लिए संजीवनी साबित हो सकती है. कहानी इतनी टाइट रखी गई है कि बोर होने का आपको मौका नहीं मिलेगा. पहले हाफ में सेकेंड हाफ की भूमिका तैयार की गई है. हर किरदार को सेट होने का टाइम दिया गया है. जिस तरह के विजुल्स परोसे गए हैं, देखते ही दिल खुश हो जाएगा.

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रणबीर शानदार, संजय दत्त ने कहर ढाया

एक्टिंग डिपार्टमेंट में भी ये फिल्म पूरे नंबर पाती है. रणबीर कपूर ने क्या कमाल का काम किया है. मतलब फिल्म रिलीज से पहले उनके लुक ने सभी को हैरत में डाल दिया था. फिल्म देखने के बाद उनकी अदाकरी भी कुछ ऐसा ही महसूस करवा रही है. ऐसा लग रहा है कि शमशेरा के किरदार में रणबीर पूरी तरह डूब गए हैं. उनका तो वैसे भी डबल रोल है, ऐसे में दूसरा वाला किरदार भी पूरा मजा दे गया है. हर सीन में उन्होंने इस स्क्रीन पर खुद को फिर साबित किया है. फिल्म में विलेन बने संजय दत्त भी जबरदस्त फॉर्म में नजर आए हैं.

मेकर्स ने उनके किरदार को एक अलग अंदाज दिया है, अलग तरीके से ढाला है. उसका असर दिखता है, ऐसा कोई सीन नहीं है जहां पर ये लगे कि रणबीर, संजय पर भारी पड़े या संजय, रणबीर से आगे निकल गए. दोनों ही सुपरस्टार्स ने एक दूसरे को पूरा सपोर्ट किया है और उस वजह से दर्शकों का डबल मनोरंजन हुआ है. सौरभ शुक्ला को भी एक बेहतरीन किरदार निभाने का मौका मिला है. फिल्म में वे धूत सिंह के रोल में हैं. उनका किरदार उनके डायलॉग्स की वजह से याद रखा जाएगा. कभी शायराना अंदाज, कभी भारी आवाज, मतलब आधे से ज्यादा ड्रामा तो उनके डायलॉग्स ने क्रिएट कर दिया है. वाणी कपूर भी फिल्म में अहम किरदार निभा रही हैं. शुरुआती सीन्स में उनका किरदार कमजोर लग रहा था, लेकिन सेकेंड हाफ के बाद मेकर्स ने बड़ी ही चालाकी से उनके किरदार को भी मतलब दिया. रोनित रॉय का भी फिल्म में छोटा रोल है. जितना भी स्क्रीन टाइम उन्हें मिला, उन्होंने उसका फायदा उठाया.

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विजुअल्स ने मजा दोगुना किया

शमशेरा का ट्रेलर देखकर लगा था कि इसमें एक्शन की भरमार होने वाली है. उसका एक ओवरडोज देखने को मिलेगा. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. इस फिल्म में आपको कही भी बिना सिर पैर वाला एक्शन नहीं दिखने वाला है. खुशी की बात ये है कि साउथ की तरह यहां हवा में ज्यादा लोग उड़ भी नहीं रहे हैं. बड़ा सॉलेड सा एक्शन रखा गया है जिसे देख मजा आता है. एक सीन है जहां पर बनी (रणबीर का डबल रोल वाला किरदार) और एक अंग्रेस अफसर की लड़ाई होती है, जिस तरीके से उसे फिल्माया गया है, एक्शन के साथ-साथ पैसा वसूल डायलॉगबाजी हुई है. फिल्म में कई सारे शानदार विजुअल्स भी देखने को मिले हैं. इसका पूरा श्रेय अने गोस्वामी को जाता है जिन्होंने सिनेमेटोग्राफी की कमान संभाली है.

डॉयरेक्टर का 'बैंग बैंग' परफॉर्मेंस

डायरेक्शन की बात करते हैं. करण मल्होत्रा का काम गजब का कहा जाएगा. जिस स्केल की ये फिल्म थी, जितना बड़ा बजट था, एग्जीक्यूशन पर ही सब कुछ निर्भर था. फिल्म देखने के बाद कह सकते हैं कि करण को इस मामले में ए ग्रेड देना पड़ेगा. फिल्म की लेंथ लंबी काफी है, लेकिन पतानी शुरुआत से लेकर अंत तक एक कनेक्शन सा बन गया था. सबकुछ इस तरीके से बांधकर रखा गया कि आप बस देखते रह गए और फिल्म खत्म हो गई. शमशेरा में गाने भी कई सारे हैं. पहले हाफ में भी भरमार है और सेकेंड हाफ में भी. चलिए कह सकते हैं कि ये बस एक अकेला ड्रॉबैक है. टाइटल ट्रैक और बैकग्राउंड स्कोर को छोड़कर कोई गाना आपको थिएटर से बाहर निकलने के बाद याद नहीं रहेगा.

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लेकिन...लेकिन....लेकिन, ये बॉलीवुड की वापसी है. क्रिटिक के नजरिए से नहीं कह रहे हैं, दर्शक के नजरिए से आपको दो टूक बात बता रहे हैं. साउथ की हाल की फिल्मों को देखकर तालियां बजाई थीं, रणबीर की शमशेरा को भी सेवा करने का एक मौका जरूर दीजिएगा.

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