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Sharmaji Namkeen Review: ऋषि कपूर को आखिरी सलाम...'शर्माजी नमकीन' ने साबित किया 'शो मस्ट गो ऑन'

हिंदी सिनेमा में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी एक्टर के निधन के बाद दूसरे दिग्गज ने उस बचे हुए सीन्स को पूरा किया है. ज्यादातर केस में या तो फिल्म बंद हो जाती है या फिर किसी दूसरी कास्ट के साथ पूरी फिल्म दोबारा शूट की जाती है. इन्हीं कारणों से शर्मा जी नमकीन एक अनोखी फिल्म साबित होती है. इस फिल्म के लिए कोई रेटिंग नहीं क्योंकि यह रिव्यू भी ऋषि कपूर को ट्रिब्यूट है.

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शर्मा जी नमकीन
शर्मा जी नमकीन
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ऋषि कपूर की आखिरी फिल्म है शर्माजी नमकीन
  • रिटायरमेंट के बाद की इनिंग्स को बयां करती है
फिल्म: शर्मा जी नमकीन 
/5
  • कलाकार : ऋषि कपूर, परेश रावल, जूही चावला, सुहैल नायर, सतीश कौशिक, ईषा तलवार 
  • निर्देशक : हितेश भाटिया 

फिल्म की शुरुआत होती है, ऋषि कपूर के बेटे रणबीर कपूर के एक वीडियो से, जहां रणबीर बताते हैं कि फिल्म की शूटिंग के दौरान ऋषि इस दुनिया से चले गए और रणबीर ने प्रोस्थेटिक का भी सहारा लिया ताकि फिल्म पूरी हो जाए लेकिन बात नहीं बनी. ऐसे में परेश रावल ने इस फिल्म से जुड़कर ऋषि कपूर के किरदार को कैरी फॉरवर्ड किया जिसके लिए वे परेश के तहे दिल से शुक्रगुजार हैं. 

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कहानी की शुरुआत होती है शर्मा जी (ऋषि कपूर) के रिटायरमेंट से जहां उन्हें दो साल पहले ही वीआरएस दे दिया जाता है. दो बच्चों के पिता शर्मा जी घर पर मां और बाप दोनों की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. खाना बनाने से लेकर बैंक व बिल भरने का सारा काम खुद शर्मा जी करते हैं. रिटायरमेंट के बाद भी शर्माजी खुद को बिजी रखना चाहते हैं. ऐसे में वो कभी जुम्बा क्लास जाते हैं तो कभी नौकरी की तलाश में दिन गुजारते हैं. शर्माजी के लिए कुकिंग एक आर्ट है, उनके बनाए खाने की तारीफ पूरे मोहल्ले में होती रही है. शर्मा इस पैशन से ही अपनी सेकेंड इनिंग की शुरुआत करते हैं और उन्हें पहला ऑर्डर मिलता है लेडीज किटी पार्टी का. हालांकि उनका यह पैशन उनके बच्चों के लिए इंबैरेसमेंट साबित होता है. परिवार में मजाक उड़ना, बच्चों की नजर में गुस्सा आदि झेलते हुए शर्माजी आखिर क्या फैसला लेते हैं, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी. 

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फिल्म डायरेक्टर हितेश भाटिया ने दिल्ली के बैकड्रॉप पर कहानी का ताना-बाना बुना है. दिल्ली की तंग सड़कें और वहां के रहन-सहन को बखूबी पर्दे पर पेश किया गया है. डायरेक्शन की बात करें, तो यह काफी मुश्किल होता है कि दर्शकों के बीच एक ही किरदार को दो अलग एक्टर्स के बीच ब्लेंड करना, इस एक्सपेरिमेंट में निर्देशक काफी सफल भी हुए हैं. परेश रावल की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने ट्रिब्यूट के तौर पर इस किरदार को परदे पर उतारा है, कोई ऐसा करता नहीं है. फिल्म की कहानी देखकर लगेगा कि मानो ये सब आपके साथ या आसपास हुआ है. रिलेटिबिलिटी की वजह से कहानी दर्शकों को बांधे रखती है. ऋषि कपूर की आखिरी फिल्म के नजरिये से देखें, तो आप इस फिल्म में ज्यादा लूप होल्स नहीं निकाल पाएंगे. कहीं न कहीं इमोशन हावी होता नजर आएगा. हंसाती-गुदगुदाती यह फिल्म फूड लवर्स को पसंद आएगी. वहीं कुछ डायलॉग्स जैसे बागबान को बच्चों के कोर्स में कंपलसरी कर देना चाहिए, ऋषि कपूर और जूही चावला के बीच की अंडरकंरट केमिस्ट्री आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर छोड़ जाती है. 

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उस दौरान कैंसर से लड़ रहे ऋषि कपूर की एक्टिंग ने फिर से साबित कर दिया कि चाहे परिस्थिति कैसी भी रहे शो मस्ट गो ऑन. स्क्रीन पर जब-जब ऋषि आते हैं, तो इस बात को कुबूल पाना मुश्किल हो जाता है कि वे अब इस दुनिया में नहीं रहे हैं. परेश रावल शुरुआत में एक्टिंग में काफी सर्तक नजर आते हैं लेकिन आगे उनकी सहजता दिखने लगती है. शर्मा जी के बेटे बने सुहैल नायर ने अपने रोल के साथ पूरा न्याय किया है. जूही चावला और किटी गैंग में शामिल आयषा रजा, शिबा चड्ढा ने टिपिकल दिल्ली हाउसवाइफ को बेहतरीन तरीके से परदे पर उतारा है. परमीत शेट्टी ने कम स्क्रीन स्पेस में अपनी छाप छोड़ी है. सतीश कौशिक एक पंजाबी दोस्त के रूप में सहज लगे हैं. 

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सिनेमा लवर्स इस फिल्म को ऋषि कपूर की आखिरी फिल्म का ट्रिब्यूट समझ देख सकते हैं. कहानी के इस इमोशनल राइड में आप कहीं भी बोर नहीं होंगे. आखिर में इस फिल्म के लिए कोई रेटिंग नहीं क्योंकि ऋषि कपूर की अदाकारी को समीक्षा के बंधन में नहीं बांधा जा सकता. 

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