लीक से हटकर फिल्में करने वाले आयुष्मान खुराना की फिल्म 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' समलैंगिक फिल्मों के मामले में मील का पत्थर साबित हो सकती है. बॉलीवुड में इससे पहले कई बार समलैंगिक रिश्तों को दिखाया गया है लेकिन ज्यादातर फिल्मों में या तो इसे काफी हल्के और मसखरे अंदाज में स्टीरियोटाइप किया गया या फिर फायर, अलीगढ़ जैसी फिल्मों में किसी समलैंगिक इंसान की जिंदगी को काफी गंभीरता से दिखाया गया. हालांकि आयुष्मान की ये फिल्म इस अंदाज में अलग है कि ना सिर्फ ये गे रिलेशनशिप्स को छोटे शहरों में सामान्यीकरण करने की कोशिश करती है बल्कि इसे लेकर समाज में फैली धारणाओं को काफी फनी अंदाज में दिखाती है.
कहानी
शंकर त्रिपाठी (गजराज राव) एक वैज्ञानिक है और वो काली गोभी बनाने का आविष्कार करता है जिसके चलते उसके घर पर किसानों के प्रोटेस्ट भी होते रहते हैं. वही उसका बेटा अमन दिल्ली में काम कर रहा है और कार्तिक (आयुष्मान) के साथ रिलेशनशिप में है. शंकर का भरा-पूरा परिवार है. उसका छोटा भाई चमन एक वकील है और चमन की बेटी गॉगल की शादी के लिए पूरा परिवार इकट्ठा होता है.
चाचा की लड़की की शादी के लिए अमन कार्तिक के साथ पहुंचता है. नाचने गाने के दौरान ट्रेन में दोनों किस करते हैं जिसे देखकर शंकर को उल्टियां होने लगती हैं. इसके बाद पूरे परिवार को पता चल जाता है कि अमन समलैंगिक है. पहले तो त्रिपाठी फैमिली इसे बीमारी समझती है और अमन को समझाने की काफी कोशिश करती हैं लेकिन अंत में अमन कैसे अपने परिवार को ही समझाने में कामयाब रहता है, यही फिल्म की कहानी है.
डायरेक्शन
टैबू सब्जेक्ट, छोटे शहर की आबोहवा और कॉमेडी के सहारे गंभीर मुद्दे को दर्शकों के सामने परोसना. आयुष्मान ने पिछले कुछ समय में अपने इसी फॉर्मूले के सहारे दर्शकों के बीच लोकप्रियता पाने में कामयाबी पाई है. हालांकि इस फिल्म में स्क्रिप्ट के स्तर पर उनसे थोड़ी चूक हो गई लगती है.
हितेश केवल्या द्वारा निर्देशित ये फिल्म यूं तो समलैंगिकता के स्टीरियोटाइप्स तोड़ने में कामयाब रहती है लेकिन फिल्म में आपको पता चल जाता है कि आगे क्या होने वाला है और इस मामले में ये फिल्म किसी भी स्तर पर आपको हैरान नहीं करती है जिसके चलते फिल्म में थोड़ी नीरसता फील होती है. फिल्म के फर्स्ट हाफ में आयुष्मान का अति उत्साह भी समझ से परे लगता है और फिल्म में कुछ सीक्वेंस भी ऐसे आते हैं जहां आपको एहसास होता है कि ये फिल्म रियैल्टी से दूर जा रही है लेकिन फिल्म की इंप्रेसिव स्टार कास्ट और जबरदस्त कॉमिक डॉयलॉग्स काफी मनोरंजक हो जाते हैं. अगर इस फिल्म की एडिटिंग में थोड़ा और पैनापन होता तो ये फिल्म काफी शानदार बन सकती थी.
एक्टिंग
आयुष्मान खुराना एक एफर्टलेस कलाकार हैं और इस फिल्म में वो ऐसा ही करते दिखाई देते हैं. हालांकि फिल्म के फर्स्ट हाफ में उनकी ओवरएक्साइटमेंट समझ नहीं आती है वही जितेंद्र कुमार एक परेशान युवक के तौर पर जंचते हैं. हालांकि इस फिल्म में लीड स्टारकास्ट से ज्यादा फिल्म के बाकी कलाकारों पर नजरें टिकी रहती हैं.
ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों के माफिक इस फिल्म में सभी कलाकारों को काफी स्पेस मिला है और वे इस मौके का पूरा फायदा उठाने में कामयाब रहे हैं. शंकर त्रिपाठी के तौर पर गजराज राव और उनकी पत्नी के तौर पर नीना गुप्ता 'बधाई हो' के बाद एक बार फिर अपनी केमिस्ट्री से दर्शकों का काफी मनोरंजन करते हैं. वही मनुऋषि चड्ढा ने चाचा के तौर पर और सुनीता राजवर ने चाची के तौर पर गजब कॉमेडी की है. सुनीता राजवर तो कई सीन्स में बाकी सभी कलाकारों पर भारी पड़ती हैं और उनकी कॉमिक टाइमिंग लाजवाब है. फिल्म में कई सीक्वेंस ऐसे हैं जहां दोनों भाईयों के बीच होती बहस यादगार सीन्स में तब्दील हो जाती है.
फिल्म क्यों देखें
आयुष्मान खुराना के फैन हैं और निजी जीवन में आप होमोफोबिक भी हैं तो इस फिल्म के सहारे अपनी शंकाएं को काफी मनोरंजक अंदाज में दूर कर सकते हैं. इसके अलावा ये एक मनोरंजक फैमिली एंटरटेनर है जहां लगभग सभी सितारे बढ़िया एक्टिंग से समां बांध देते हैं.