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Thalaivi Review: कंगना की शानदार एक्टिंग, लेकिन जयललिता की शख्सियत के साथ अधूरा न्याय

Thalaivi Review: जयललिता की जिंदगी पर बनी फिल्म थलाइवी देखनी है या नहीं...कंगना का काम बढ़िया रहा या औसत, हम आपको बता देते हैं सबकुछ...पढ़िए फिल्म थलाइवी का हमारा रिव्यू.

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थलाइवी में कंगना रनौत
थलाइवी में कंगना रनौत
स्टोरी हाइलाइट्स
  • थलाइवी में कंगना की शानदार एक्टिंग
  • फिल्म का डायरेक्शन कमजोर
  • क्या कमी-क्या खूबी, सबकुछ जानिए
फिल्म:थलाइवी
2.5/5
  • कलाकार : कंगना रनौत, अरविंद स्वामी
  • निर्देशक :एल विजय

जयललिता....तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री. तमिलनाडु की राजनीति में अलग ही अध्याय लिखने वालीं मजबूत राजनीतिक शख्सियत. किसी पहचान की मोहताज नहीं, जनता के दिलों पर हमेशा राज करने वालीं. लेकिन फिर भी कोई जयललिता के बारे में सबकुछ पता होने का दावा कोई नहीं कर सकता. मीडिया से दूर रहना, पार्टी कार्यकर्ताओं संग भी सीमित संवाद रखना, ऐसे में उनकी निजी जिंदगी या कह लीजिए पसंद-नापसंद के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता. उस अधूरेपन को पूरा करने का प्रयास किया है डायरेक्टर एल विजय ने जो लेकर आ गए हैं कंगना रनौत संग फिल्म 'थलाइवी'. जयललिता की जीवनी है....कितनी अधूरी कितनी पूरी, हम बताते हैं-

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कहानी

राजनीति में आने से पहले जयललिता ने फिल्मों में खूब एक्टिंग की थी. पहले मां ने अभिनेत्री बन उस फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा, फिर परिवार की जरूरतों ने अम्मू ( जयललिता) को भी उस ओर ढकेल दिया. जिस उम्र में जयललिता ने फिल्मों में दस्तक दे दी, तब बच्चे अपनी पढ़ाई या कह लीजिए सिर्फ खेलने-कूदने के बारे में सोचते थे. लेकिन परिवार को सहारा देना था, ऐसे में जयललिता ने वो समझौता कर लिया. लेकिन फिर वो समझौता धीरे-धीरे उनकी जिंदगी बना और फिर उस जिंदगी ने उन्हें MJR (असल में नाम MGR है, लेकिन फिल्म में उन्हें MJR कहा गया है) से मिलवा दिया. एक महान कलाकार, शानदार वक्ता और तमिलनाडु की राजनीति में सशक्त शख्सियत. 

कहते हैं कि MGR के जयललिता संग काफी मजबूत रिश्ते थे, लेकिन कभी भी उस 'रिश्ते' की सटीक परिभाषा नहीं की जा सकी. ना कभी खुद MGR ने इस बारे खुलकर बात की और ना ही जयललिता ने अपना पक्ष रखा. लेकिन पार्टी के अंदर सुगबुगाहट हमेशा रहती थी. दोनों के बीच एक ऐसी केमिस्ट्री थी जिसे क्या नाम दिया जाए, ये कोई कभी नहीं समझा. थलाइवी के अंदर भी उस उलझन को दिखाया गया है. मेकर्स ने भी अपनी तरफ से कोई राय नहीं बनाई है.

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अब थलाइवी में जयललिता के फिल्मी सफर की बात है, MGR संग रिश्तों पर भी रोशनी डली है, लेकिन इसके अलावा काफी लाइमलाइट तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि को दी गई है. उनकी MGR संग राजनीतिक पारी, फिर टकराव के बाद अलग हो जाना. इस पहलू को थलाइवी के मेकर्स ने काफी विस्तार से समझाने का प्रयास किया है. इन सभी कहानियों के बीच जयललिता की निजी जिंदगी और उनसे जुड़े कुछ किस्सों को मेकर्स ने एक फिल्म में पिरोने का काम किया है.

अधूरी रह गई ये कहानी

थलाइवी को लेकर एक बात समझनी काफी जरूरी है. ये जयललिता के राजनीतिक सफर पर बनाई गई फिल्म नहीं है. ये कोई टिपिकल राजनीति से प्रेरित फिल्म भी दिखाई नहीं पड़ी है. ये सिर्फ और सिर्फ जयललिता के शुरुआती जीवन और उनके राजनीति में आने की कहानी है. ऐसे में अगर मेकर्स थलाइवी का सेकेंड पार्ट लाते हैं, तो हम इसे जरूर एक बॉयोपिक कह सकते हैं, लेकिन अभी के लिए ये सिर्फ एक अधूरी कहानी है जिसे बीच में ही छोड़ दिया गया है. 

फिल्म का पहला हाफ पूरी तरह थे जयललिता के फिल्मी सफर पर फोकस जमाता है. कुछ सीन्स बढ़िया लगे हैं, लेकिन काफी कुछ जरूरत से ज्यादा खींचा भी गया है. पहले हाफ में थलाइवी की पेस काफी धीमी है. वैसे भी जो एक मसालेदार और जबरदस्त डायलॉगबाजी वाली फिल्म की उम्मीद लगाकर बैठा है, उसे शुरुआती एक घंटा काफी बोर कर सकता है. दूसरा हाफ जरूर थोड़ा ज्यादा कसा हुआ सा लगता है. चुनावी प्रचार, जयललिता वाली तकरार जैसे पहलू कहानी को ठीकठाक रफ्तार दे देते हैं.

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कंगना की एक्टिंग कमाल, दूसरे कलाकार छाए

अब एक बार के लिए थलाइवी में जयललिता की शख्सियत के साथ अधूरा न्याय दिखाई पड़ा, लेकिन कंगना रनौत का काम आला दर्जे का रहा. फिर उन्होंने साबित कर दिया कि मुश्किल किरदारों का आसानी से निभा जाना उनकी फितरत है. फिल्म रिलीज से पहले तक तो सिर्फ उनके लुक की तारीफ हो रही थी, लेकिन फिल्म देखने के बाद उनके काम पर आपको बेहतरीन अभिनय की मोहर लगानी पड़ेगी.

कास्टिंग डिपार्टमेंट ने MGR के रोल में अरविंद स्वामी को कास्ट कर भी गजब का फैसला लिया है. स्क्रीन पर एक बार देख लीजिए, बता पाना मुश्किल है कि पर्दे पर अरविंद स्वामी दिख रहे हैं या फिर खुद MGR.

करुणानिधि के रोल में नसार ने भी दिल खुश कर दिया है. जिस बारीकी से उन्होंने कुरुणानिधि के हाव-भाव को समझा है, वो काबिले तारीफ है. भाग्यश्री, राज अर्जुन और मधू का काम भी बढ़िया कहा जाएगा.

कमजोर डायरेक्शन, कई सीन रह गए फीके

थलाइवी का एक्टिंग डिपार्टमेंट आपको जितना पसंद आ सकता है, डायरेक्शन उस लिहाज से निराश करता है. हम एक बार के लिए मान सकते हैं कि ये जयललिता के शुरुआती जीवन की कहानी है, लेकिन वहां भी कई किस्सों को नजरअंदाज कर दिया गया है. 1989 में सदन के अंदर जयललिता संग हुई बदसलूकी को जरूर दिखाया गया, लेकिन वो सीन भी स्क्रीन पर फ्लैट दिखाई पड़ा.

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उस सीन में कंगना जरूर छाईं लेकिन उस घटना को जल्दबाजी में खत्म कर दिया गया. इसी तरह फिल्म के कई दूसरे ऐसे सीन देखने को मिले जहां पर घटना तो बड़ी रही लेकिन उसको दिखाने का अंदाज थोड़ा फीका लगा. थलाइवी की एंडिंग भी आपको हैरान कर सकती है. ये एक ऐसी एंडिंग है, जिसमें अगर फिल्म का दूसरा पार्ट लाया जाए, तो जरूर इसे सही बताया जा सकता है, वरना इसे बीच में ही छोड़ दी गई फिल्म के तौर पर देखा जाएगा.

ऐसे में अगर आप कंगना के फैन हैं तो थलाइवी को एक बार देख डालिए. उनकी एक्टिंग दिल खुश कर जाएगी. लेकिन अगर राजनीति में जबरदस्त दिलचस्पी रखते हैं, तो उस पहलू पर ये फिल्म निराश कर जाएगी.

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