गरीबी...स्ट्रगल...ट्रेनिंग और फिर एक चैंपियन. कोई भी बॉलीवुड की स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म उठा लीजिए, दो घंटे में आपको अंतरराष्ट्रीय स्तर का बेहतरीन खिलाड़ी तैयार मिल जाएगा. ये एक सेट फॉर्मूला है जिस पर कई सालों से बॉलीवुड चल रहा है. अब राकेश ओम प्रकाश मेहरा भी एक बड़ा 'तूफान' लाए हैं. बॉक्सिंग की कहानी है और फरहान अख्तर को कास्ट कर लिया है. फिल्म को लेकर जितना विवाद रहा, शायद ये रिलीज से पहले ही नॉकआउट हो जाती. लेकिन ये तूफान अब अमेजन प्राइम पर चल पड़ा है. सही मायनों में तूफान है या फिर सिर्फ एक हवा का झोंका...ये हम बता देते हैं.
कहानी
मुंबई में अज्जू ( फरहान अख्तर) वसूली करता है. हर कोई उसे सलाम ठोकता है, लेकिन सिर्फ डर की वजह से. बढ़िया जिंदगी चल रही है, लोगों संग मारपीट हो रही है, मोटी कमाई भी हो जाती है और एक इशारे पर काम भी चल रहा है. लेकिन फिर भी अज्जू को इस बात का एहसास है कि कोई भी उसकी इज्जत नहीं करता है. ऐसे में इज्जत पाने के लिए वो अपनी राह बदल लेता है. उसके लिए फंडा सिंपल है- मार-धाड़ करता है, इसलिए बॉक्सिंग करने का फैसला ले लेता है. जो काम पहले सड़कों पर गाली-गलौज के साथ करता था, अब एक रिंग में कुछ नियमों के साथ करेगा.
अब इस बॉक्सिंग वाली राह से ना भटक जाए, इसलिए एक ऐसी लड़की को दिल दिया जो लगातार उसे मोटिवेट करती है. नाम अनन्या ( मृणाल ठाकुर) है और पेशे से डॉक्टर है. अनन्या सिर्फ एक बात बोलती है- ये अज्जू गैंगस्टर है...और ये अजीज अली द बॉक्सर, तुम्हें क्या बनना है. इस एक डायलॉग ने अज्जू को अजीज बना दिया और फिर वो एक तूफान में तब्दील हो गया. अब वो तूफान कोच नाना प्रभु ( परेश रावल) से ट्रेनिंग लेता है ( नाना प्रभु से कैसे मुलाकात होती है, वो फिल्म देख पता चल जाएगा) और बॉक्सिंग में बुलंदियों को छूने का सफर शुरू हो जाता है. अब उस सफर में कितने रोड़े आते हैं, अज्जू को किसका साथ मिलता-किसका साथ छूटता है, ये सारी डिटेल आपको 2 घंटा 40 मिनट में बता दी जाएगी.
कहानी काल्पनिक लेकिन सबकुछ प्रिडिक्टेबल
साल 2013 में राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने भाग मिल्खा भाग बनाई थी. फिल्म शानदार थी, लेकिन काफी लंबी रही. अब आठ साल बाद राकेश तूफान लेकर आए हैं. फिर फिल्म काफी लंबी है लेकिन इस बार शानदार के बजाय औसत रह गई है. मतलब अपग्रेडेशन की जगह डिग्रेडेशन हुआ है. इस सब के ऊपर तफान कहानी शुरू से लेकर एंड तक बिल्कुल प्रिडिक्टेबल है. आपको शुरुआत में बताया जरूर जाता है कि ये कहानी काल्पनिक है, लेकिन फिर भी मेकर्स ने कोई क्रिएटिव लिबर्टी नहीं ली है. कुछ नया या लीक से हटकर दिखाने की पेशकश होती ही नहीं दिखी.
डूबती नैया को एक्टिंग का सहारा
अब इस निराश कर देने वाली कहानी का सफल रेस्क्यू फिल्म की काबिल स्टारकास्ट ने कर दिया है. पूरी फिल्म में सबसे बेहतरीन अगर कुछ लगा है तो वो कलाकारों की एक्टिंग है. फरहान अख्तर ने जबरदस्त काम किया है. एक्टिंग तो बढ़िया की ही है, जिस अंदाज में अपने किरदार को पकड़ कर चले हैं, वो भी काबिले तारीफ है. इतना जरूरी है कि उनकी फिजीक पर मेकर्स ने जरूरत से ज्यादा मेहनत कर दी. दूसरे बॉक्सर्स की तुलना में फरहान की बाइसेप-ट्राइसेप ज्यादा हाइलाइट की गईं. ये पहलू कई मौकों पर खटक सकता है.
परेश रावल तो एक परिपक्व कलाकार हैं और किसी भी रोल में आसानी से ढल जाना उनकी आदत में शुमार माना जाता है. ऐसे में यहां भी उन्होंने कुछ अलग नहीं किया है. कोच की भूमिका में वे न्याय कर गए हैं. मृणाल ठाकुर को फिल्म में ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं दी गई है. लेकिन इस कलाकार ने कम समय में भी अपनी छाप छोड़ दी. फरहान संग उनकी केमिस्ट्री भी बढ़िया जमी है और कुछ अच्छे डायलॉग भी उनकी झोली में आए हैं. सह कलाकारों में हुसैन दलाल, सुप्रिया पाठक, विजय राज और दर्शन कुमार का काम भी देखने लायक कहा जाएगा.
डायरेक्शन और लव जिहाद वाला विवाद
राकेश ओम प्रकाश मेहरा की डायरेक्शन की बात करें तो इस बार उनसे कुछ चूक हो गई हैं. कहानी तो औसत रही है, फिल्म देख ऐसा भी लगा कि उन्होंने जबरदस्ती का विवाद पाल लिया. फिल्म में इंटरकास्ट मैरिज दिखाई गई और एक किरदार ने इसे 'लव जिहाद' का नाम तक दे दिया. जब फिल्म स्पोर्ट्स की है, कहानी बॉक्सिंग की चल रही है तो बीच में ये लव जिहाद वाला एंगल थोपा हुआ सा लगा जिसे आसानी से छोड़ा जा सकता था. इस विवाद को पीछे छोड़ें तो फिल्म का क्लाइमेक्स ठीक-ठाक कहा जाएगा. कहानी का अंत पहले से पता है, लेकिन फिर भी एक उत्साह सा रहता है. बॉक्सिंग मैच भी वास्तविकता के करीब लगते हैं और उन्हें देखने में मजा आता है.
ऐसे में अगर आप फरहान अख्तर की ये तूफान एक बार देख लेंगे, आपका औसत मनोरंजन तो हो ही जाएगा. वहीं अगर देखने का मन ना भी किया, तो भी आप कुछ बेहतरीन मिस नहीं करने वाले हैं.