पंचायत सीरीज में रघुबीर यादव, नीना गुप्ता जैसे दिग्गजों के अभिनय के बीच जो किरदार अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहे उन्हीं में से एक हैं चंदन राय. चंदन वही जो अभिषेक सर को अविषेक सर और सड़क को सरक कहते नजर आते हैं. जी हां, बात हो रही है सचिव जी के सहायक विकास की.
विकास पंचायत से जुड़े दूसरे चंदन हैं. दरअसल सीरीज के राइटर भी चंदन कुमार हैं. इसलिए कई लोग चंदन राय को ही राइटर समझ लेते हैं. चंदन के किरदार में गांव की खूशबू है. उनकी एक्टिंग इतनी सरल और सहज है कि वो एक्टिंग लगती ही नहीं है.
चंदन कहते हैं, मैं थिएटर बैकग्राउंड से रहा हूं, लेकिन मुझे लाउड एक्टिंग ने कभी प्रभावित नहीं किया है. मैं मानता हूं कि एक्टिंग ऐसी होनी चाहिए, जैसे हम मां से बात कर रहे हैं या खाना मांग कर रहे हैं. मैंने सोच लिया था कि मुझे एक्टिंग नहीं करनी है. मैं बस विकास बन जाऊंगा. यही वजह है कि लोगों को बहुत नैचुरल लगा हूं. मैंने जब स्क्रिप्ट पढ़ी तो पता नहीं कैसे मुझमें ये कॉन्फिडेंस आया था कि विकास को मुझसे बेहतर कोई कर ही नहीं सकता है.
सीजन के दौरान विकास के किरदार का डायलेक्ट थोड़ा अलग है. वो अभिषेक को अविषेक और सड़क को सरक कहते दिखते हैं. इसके पीछे की वजह चंदन बताते हैं. वो कहते हैं जब मैं बिहार में रहता था, तो शुरू सुरू, कपड़ा को कपरा ऐसे ही कहा करता था. मुंबई आया तो इसे ठीक करने में लग गया. रघुबीर सर के साथ वर्तनी और डायलेक्ट की वर्कशॉप भी की है. मैं ठीक कर ही चुका था कि इसे बिगाड़ने के लिए पंचायत आ गया. फिर मैं वापस बिहार चला गया और गांव में महीनेभर रहा. वापस से भाषा बिगाड़ ली और साथ ही हाव-भाव भी वैसा ही कर लिया. लोगों को मेरा यही अंदाज पसंद भी आ गया.
वैसे विकास के लिए आज मिली सफलता आसान नहीं रही है. उन्होंने संघर्ष का लंबा रास्ता तय किया है. इस दौरान कई बार अपमान का घूंट पीया. खुद पर, हालात पर रोए भी. अपनी मुंबई की जर्नी पर चंदन कहते हैं, मैं 2017 में यहां आया था. मैं दिल्ली में दो साल तक जर्नलिस्ट रह चुका हूं. फिर वहां से थिएटर की शुरुआत हुई थी. मुंबई जब आया करियर बनाने तो कई पापड़ बेलने पड़े थे. सड़कों पर कितना रोया हूं, ये तो मैं और ये सड़कें हीं जानती है.
चंदन ने अपने संघर्ष के दिनों का एक किस्सा भी बताया जिसे याद करते हुए वे आज भी भावुक हो जाते हैं. दरअसल, उनको मुंबई आए हुए दस ही दिन हुए थे. तीन दोस्त थे. एक रिएलिटी शो के लिए कॉल आया और कहा कि आपको ढाई हजार देंगे. चंदन बताते हैं कि हम खुश हो गए कि ढाई-ढाई हजार तीनों को मिलेंगे. मैंने प्लान बना लिया था इन पैसों का मैं मैटरेस ले लूंगा और एक जूता भी खरीद लूंगा. मजा आ जाएगा.
वो कहते हैं कि हम अंधेरी ईस्ट स्टेशन सुबह के तीन बजे पहुंचे. मैंने अपनी बेस्ट ड्रेस पहनी थी. वहां देखा तो डेढ़ सौ लोग थे. को-ऑर्डिनेटर तू-तड़ाक कर रहा था. उसने हाथ में मुहर लगवा दी. वड़ा पाव पेपर में लपेट कर सबको बांटने लगा. मैंने सोचा शायद यही स्ट्रगल है. हमें एक अंधेरे हॉल पर बिठा दिया.
उस दिन सोनाक्षी सिन्हा आने वाली थीं. कहा गया कि सोनाक्षी जब कुछ कहे, तो जोर से ताली बजाना और हू हू हा ही चिल्लाना. इंस्ट्रक्शन के दौरान मां-बहन की गालियां दी जा रही थीं. खैर, उसके ढाई हजार मिल रहे थे, यही तसल्ली थी. जैसे-तैसे शाम हुई. फीस की लाइन में लगे तो देखा वहां सबको 250 रुपये मिल रहे हैं. उसमें भी 20 से 30 रुपये कमीशन काटकर 215 रुपये हाथ में आए. कॉर्डिनेटर से पूछा तो उसने कहा कि मैंने तो ढाई सौ ही कहा था. मैं वो पैसे लेकर बहुत रोया था. रोते-रोते सोच रहा था कि कहां पहुंच गया और क्या मुझसे हो पाएगा. यहां से मेरी कहानी शुरू हुई थी.
चंदन बताते हैं कि हालांकि अब स्ट्रगल खत्म हो गया है. अब तो कहानी को लेकर चूजी भी हुआ हूं. पैसे को लेकर मोल-भाव भी कर लेता हूं. ये बदलाव पंचायत के बाद आया है. मुफलिसी के दिन गुजर गए. पहले तो यह आलम था कि मैं स्क्रीन पर लाश तक बनने के लिए राजी था. कहीं चोर बन जाता, तो कहीं पुलिस बन जाता. हजार रुपये के लिए काम कर लेता था. मैं तो जूनियर आर्टिस्ट भी काम कर चुका हूं. मैं तो रोटी-चटनी, दाल-चावल खाकर ही गुजर बसर करता था. बहुत ज्यादा भूख लगती थी, तो दस रुपये में तीन केले खरीद लेता था.
चंदन ने बताया कि मैं तो चॉल में रहा हूं. तीन-तीन बार मुझे मेरे दोस्तों ने अपने रूम से बाहर निकाला. वजह थी कि मेरे पास डिपॉजिट भरने के पैसे नहीं होते थे. मैं खूब रोता. बस एक खासियत थी कि नशा नहीं करता था, तो नाजायज खर्च होते नहीं थे. अभी वर्सोवा में रहता हूं एक दोस्त के साथ लेकिन जल्द ही दूसरी जगह शिफ्ट करने का प्लान कर रहा हूं. जरूरत पड़ गई है कि थोड़ा अच्छी जगह घर ले लूं. क्योंकि कई बार कॉस्ट्यूम ट्रायल वगैरह के लिए लोग आते हैं, तो झिझक जाता हूं. जो बड़े अमीर टाइप्स दोस्त या कह लें इंडस्ट्री के लोग हैं, उन्हें घर बुलाने से बचता हूं. मेरा घर देखेंगे, तो शायद मुझे जज करें.
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